क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
बाजार से लौट रही थी कि पड़ोस में रहनेवाली एक महिला मिली. पूछने लगी- पानी के देवता को क्या कहते हैं? मैंने कहा- बादलों के देवता यानी कि आकाश के पानी के देवता इंद्र हैं और धरती के जल यानी कि नदियों, झीलों, झरनों, तालाबों के देवता वरुण हैं.
फिर उसने कहा- जेनिस का मतलब क्या होता है? मैंने कहा- मुझे नहीं मालूम. मगर इतने नामों के बारे में क्यों पूछ रही हो? वह बोली- नाम पता कर रहे हैं. मेरी ननद का लड़का हुआ है. उसी का नाम रखना है. किसी ने बताया था कि नेट पर अच्छे नाम मिल जाते हैं, इसलिए बच्चों ने नेट पर देख कर जेनिस नाम बताया है. सोचा कि शायद आपको इसका अर्थ मालूम हो.मैंने पूछा- लेकिन आप तो पानी के देवता का नाम पूछ रही थीं? उसने उत्तर दिया- हां उसका नाम ‘प’ पर निकला है न, इसलिए.
लेकिन पानी के देवता का नाम भी ‘प’ से शुरू होगा, यह कैसे मान लिया- यह कह कर मैं हंसने लगी, तो वह भी हंस पड़ी.
हमेशा की तरह अधिकतर हिंदू परिवारों में आज भी बच्चे के जन्म के बाद पंडित को बुला कर हवन कराते हैं. पूजा-पाठ होता है. नाम दिखवाया जाता है. नाम किस अक्षर पर निकल रहा है, इसे पंडित बताता है.
आर्थिक स्थिति के अनुसार खान-पान भी होता है.
फिर राशि के अक्षर के आधार पर नाम खोजे जाते हैं. जान-पहचान वालों से पूछा जाता है. शब्द कोश देखे जाते हैं. नेट पर देख कर ऐसे नाम भी रख लिये जाते हैं, जिनका अर्थ मालूम नहीं होता. आजकल यह चलन बढ़ चला है. कियारा, किया, रियाना, रेहान, सायमीरा, न्यासा, विवान, रिया, टिया न जाने ऐसे कितने नाम हैं, जिनके अर्थ नहीं पता. फिल्मी सितारों के बच्चों के नामों पर भी खूब नाम रखने का रिवाज है.
पहले देवी-देवताओं, नदियों-पहाड़ों, झरनों, फसलों, त्योहारों, आभूषणों, पेड़-पौधों, राजा-महाराजाओं, अभिनेता-अभिनेत्रियों, गायकों, मशहूर पदों वाले लोगों आदि के नाम पर नाम रखे जाते रहे हैं.
पुराने समय में कई बार राशि का नाम, घर में पुकारा जानेवाला नाम और स्कूल के वक्त दाखिले में लिखवाया नाम तीनों अलग होते थे. यही नहीं बहुत से परिवारों में शादी के वक्त कार्ड पर बच्चे की राशि का नाम लिखते थे. जिसे सुन कर सब चकित रह जाते थे, क्योंकि वह नाम किसी को पता ही नहीं होता था. इसीलिए बहुत से लोग असली नाम के साथ कोष्ठक में राशि का नाम लिखते हैं, जिससे कि कोई कन्फ्यूजन न हो.
एक समय में नामों के अंगरेजीकरण का भारी और बहुप्रचलित रिवाज भी रहा है. बाहर के नाम कुछ और होते थे. और घर में स्वीटी, हैप्पी, जाॅय, टाॅम, बबली आदि नाम रखे जाते थे. आज भी रखे जाते हैं.
दुकानों, डिपार्डमेंटल स्टोर्स अदि के नामों का भी अंगरेजीकरण हुआ है. छोटी-मोटी दुकानों के नाम हिंदी में होते हैं, मगर बड़े फैशनेबुल स्टोर्स के नाम अंगरेजी में होते हैं. कस्बों में आज भी बहुत सी दुकानों के नाम हिंदी में दिखाई दे सकते हैं. मगर महानगरों में अंगरेजी ही हावी है.
अस्सी-नब्बे के दशक में नामों में एक भारी परिवर्तन दिखा. बच्चों के नाम कठिन हिंदी या संस्कृत में होते, जिन्हें बोलना भी कठिन था. बड़ी दुकानों के नाम भी ऐसे ही दिखते, जैसे कि दीक्षा, रुद्राक्ष, विविक्षा, नेत्र आदि. लेकिन, इन नामों के बावजूद अंगरेजी में नाम रखने में कोई कमी नहीं आयी. दरअसल, लोग सोचते हैं कि नाम ऐसा हो, जैसा पहले किसी ने कभी सुना न हो, एकदम एक्सक्लूसिव. उसका अर्थ भी बहुत कम को मालूम हो. नेट से खोजे जानेवाले नाम अक्सर ऐसे ही होते हैं. वैसे बार-बार दोहराया जाता है कि नाम को क्यों देखते हो, नाम में क्या रखा है? गर कुछ रखा है भी, तो वह काम में रखा है.