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विमर्श से बनी पुस्तक

-हरिवंश- संवाद, जीवन का शक्ति श्रोत है. समाज को जोड़ने की कड़ी. संवाद के बिना मनुष्य, समाज या देश की कल्पना संभव नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति कलाम और जैन दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ ने मिलकर ‘फैमिली एंड द नेशन ’ पुस्तक लिखी. (प्रभात खबर 18 जनवरी 2009.). यह अनमोल पुस्तक है. कलाम और आचार्य महाप्रज्ञ जैन […]

-हरिवंश-

संवाद, जीवन का शक्ति श्रोत है. समाज को जोड़ने की कड़ी. संवाद के बिना मनुष्य, समाज या देश की कल्पना संभव नहीं है. पूर्व राष्ट्रपति कलाम और जैन दार्शनिक आचार्य महाप्रज्ञ ने मिलकर ‘फैमिली एंड द नेशन ’ पुस्तक लिखी. (प्रभात खबर 18 जनवरी 2009.). यह अनमोल पुस्तक है. कलाम और आचार्य महाप्रज्ञ जैन मुनि मानते हैं, परिवार वह आधार भूमि है जहां से मनुष्य ‘विविधता में एकता’ का बुनियादी पाठ पढ़ता है.

वे कहते हैं कि परिवार में अलग-अलग लोग अलग-अलग सोचते हैं. साथ रहते हैं. यानी भिन्नता में एकता. अंगरेजी में इसे कोएक्जिसटेंस (सहअस्तित्व) कहते हैं. भारत विभिन्न संस्कृतियों, भाषाओं, जातियों, समुदायों और धर्मों का देश है. बहुलता में एकता, आधुनिक भारत का प्रतीक है. जैसे परिवार में अलग-अलग सोच, विचारधारा के लोग साथ रहते हैं, उसी तरह देश में अलग-अलग भाषाओं, संस्कृतियों, रंग, धर्म वगैरह के लोग साथ बसते हैं.

आज पूरी दुनिया ‘ग्लोबल विलेज’ के रूप में उभर रही है. पर अलग-अलग पृष्ठभूमियों के लोग कैसे साथ रहेंगे? यह दुनिया, संवाद (डायलॉग) की नींव पर ही ठहर, उभर और विकसित हो सकती है. लोग एक दूसरे को जाने-समझें. इसी क्रम में रामीन जहानबेगलु और आशीष नंदी के संवाद से 152 पेजों की यह किताब आयी है, ‘टॉकिंग इंडिया’(भारत पर विमर्श). इसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने छापा है. पुस्तक की कीमत है, 395 रुपये. प्रोफेसर आशीष नंदी जानेमाने नाम हैं. वह सेंटर फार द स्टडी आफ द डेवलपिंग सोसाइटी (सीएसडीएस) के सीनियर फेलो रहे हैं. डायरेक्टर भी. रामीन जहानबेगलु ईरान के दार्शनिक हैं. वह पेरिस के मशहूर सोरबोन विश्वविद्यालय से पढ़े. फिर हार्वर्ड में.

कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय में पढ़ाया. इन दिनों वह तेहरान (ईरान) के ‘कंटेंपरेरी थॅाट, कल्चरल रिसर्च ब्यूरो’ के हेड हैं. उन्होंने कई किताबें लिखीं है. वह गांधी के जानेमाने अध्येता है. उनकी हाल की और दो किताबें है. ‘द रेलिवेंस आफ गांधी’ (गांधी की प्रासंगिकता) और माडर्न डे वायलेंस (आधुनिक हिंसा). वह अपने एकांतबंदी (सॉलिटरी कनफाइनमेंट) के अनुभव पर भी लिख रहे हैं. उन्होंने भारत को समझने या भारत की व्याख्या की दृष्टि से कई किताबें लिखीं हैं. प्रख्यात भारतीयों के साथ या उनसे बात कर. टॉकिंग इंडिया पुस्तक जानेमाने आशीष नंदी से बातचीत पर आधारित है.

‘द स्पिरिट आफ इंडिया’ बीसवीं शताब्दी के भारतीय चिंतकों पर आधारित है. इंडिया रीविजिटेड :कनवरसेशन आन कंटेंपरेरी इंडिया पुस्तक में भारतीय राजनेताओं, उद्योगपतियों, कलाकारों और खिलाड़ियों से संवाद हैं. उनकी नयी और दो किताबें आयीं हैं. इंडिया एनलाइज्ड (आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस). यह इतिहासकार और मनोवैज्ञानिक विश्लेषक सुधीर कक्कड़ से संवाद पर आधारित है. बियांड वायलेंस (हरआनंद द्वारा प्रकाशित) पुस्तक में 21वीं सदी को लेकर चर्चा है. यह इटली के भारत स्थित राजदूत रोबटा टोस्केनो के साथ मिलकर लिखी गयी है.

ईरानी रामीन ने भारत को गहराई से समझने की कोशिश की है. वह गांधी से विशेष प्रभावित हैं. उनकी अधिकतर किताबें डायलॉग (संवाद) की देन है. यह संवाद, अलग-अलग मानस, संस्कृति, सोच पर आधारित लोगों से है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है, भारत से मेरा पहला संबंध गांधी, टैगोर व राधाकृष्णनन की पुस्तकों से बना. ये पुस्तकें उनके पिता की निजी लाइब्रेरी में थीं. जब वह फ्रांस के सोरबोन में पीएचडी कर रहे थे, तब अहिंसा के साहित्य में रुचि जगी. रामीन को लगा पश्चिम की सैन्य परंपरा के मुकाबले यही विकल्प है. फिर रामीन ने गांधी पर पीएचडी की. उनकी थीसिस का शीर्षक था, ‘गांधी एंड द वेस्ट’(गांधी और पश्चिम). बाद में टैगोर पर भी उन्होंने पर्शियन में किताब लिखीं. यूनेस्को के लिए.

उनकी पुस्तकें डायलॉग पर आधारित हैं. इस प्रसंग में वह कहते हैं, संवाद मेरे निजी संसार के केंद्र में है. मैं इसी तरह काम करता हूं. वह मानते हैं, दार्शनिक काम का निचोड़ है, द्वैत. संवाद करना और साथ ही स्वतंत्र ढंग से सोचने की आजादी रखना. एक डिसिडेंट (विरोधी) की तरह सोचना. आशीष नंदी के साथ उन्होंने धर्म और संस्कृति पर बात की है. सुधीर कक्कड़ से बातचीत में भारतीय नजरिये से सेक्स, धार्मिक जीवन के रहस्यमय पहलुओं के बारे में जानने की कोशिश की है. उन्होंने एक और पुस्तक तैयार की है, जो मशहूर बौद्धिक भिक्खु पारीख से बातचीत पर आधारित है. इसमें भारतीय संदर्भ में राजनीतिक दर्शन, बहुसंस्कृति और भिन्नता पर चर्चा है.

टॉकिंग इंडिया में रामीन के सवालों का आशीष नंदी ने जवाब दिया है. गहराई की दृष्टि से यह पुस्तक बौद्धिकों के लिए है. पर जो भारत को जानना- समझना चाहते हैं, उनके लिए भी. दो सृजनात्मक व्यक्तियों के बीच संवाद से भारत की समझ और दृष्टि संपन्न होती है. यह महज पूरब के दो बौद्धिकों का संवाद नहीं है, बल्कि अलग-अलग संस्कृतियों को, एक व्यापक ग्लोबल फलक पर देखा-परखा गया है. यह एक तरह से परस्पर सीखने, जानने की प्रक्रिया है. इस संवाद को गहराई से अर्थ देनेवाले दोनों विशिष्ट व्यक्ति मानते हैं कि सांस्कृतिक अतीत के प्रति हर एक को संवेदनशील होना पड़ेगा.

खुले मस्तिष्क से चीजों को सही परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. लीजेंड (किंवदंती), मिथ (पौराणिक), इपिक (महाकाव्य) की पृष्ठभूमि में. इस पुस्तक में रामीन ने छह लंबी बातचीत आशीष नंदी से की है. दार्शनिक सवाल, धर्म, सांस्कृतिक बहुलता और लोकतंत्र की पृष्ठभूमि में अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर नंदी के विचार इसमें हैं. भारत और पाकिस्तान की राजनीतिक संस्कृति, ग्लोबलाइजेशन, दक्षिण एशिया में लोकतंत्र का भविष्य, भारत की संस्कृति और परंपरा का अस्तित्व व गांधी पर विमर्श है. प्रो नंदी ने गांधी के बाद के औद्योगिक और टेक्नोलॉजी समाज के संदर्भ में भी बातचीत की है. उन्होंने राष्ट्र और राज्य की सीमाओं को भी रेखांकित किया है. पुस्तक से ही यह जानकारी मिली कि आशीष नंदी, हैं तो बंगाल के पर, पैदा हुए बिहार में. ‘द आइडिया ऑफ इंडिया’ अध्याय में नंदी कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि भारतीय राजनीति में धर्म, मुख्य भूमिका में है. अधिसंख्य भारतीय आज भी हिंदू या इसलाम के पुराने सांचे से बाहर जीते और रहते हैं. वह मानते हैं कि भारत को और अधिक विकेंद्रित होना चाहिए. राजनीतिक व्यवस्था और राजनीतिक संस्कृति के विकेंद्रीकरण में, भारत ने सकारात्मक रूझान दिखाया है.

एक जगह रामीन पूछते हैं, नेहरूयुगीन नीतियां लोकतंत्र, संस्थाओं का निर्माण, सेक्यूलरिज्म, गुट निरपेक्षता और समाजवादी अर्थनीति आज किस हाल में हैं? आशीष नंदी कहते हैं कि सिर्फ एक ही बचा है, जो फल-फूल पसर रहा है, वह है लोकतंत्र. जाति व्यवस्था की मौजूदा स्थिति पर भी चर्चा है. आशीष नंदी, प्रो रजनी कोठारी को उद्धृत करते हैं. कहते हैं, भारतीय राजनीति, जाति आधारित नहीं है, बल्कि जातियों का राजनीतिकरण हो रहा है.

अब जातियां संख्या के आधार पर राजनीतिक लड़ाई लड़ रही हैं. जाति के संदर्भ में एक जगह ब्राह्मणों का आशीष नंदी उल्लेख करते हैं. कहते हैं, ब्राह्मणवाद के खिलाफ देश में मानस बना. इसलिए ब्राह्मणों को सामाजिक, आर्थिक प्रगति के लिए दूसरा रास्ता तलाशना पड़ा. अमेरिका में भारतीय इन्फारमेशन टेक्नोलॉजी को सफलता मिली, क्योंकि खासतौर से दक्षिण के महत्वपूर्ण पदों से ब्राह्मण वंचित कर दिये गये. उन्होंने अमेरिका में यह नया अवसर ढूंढ़ा.

हिंसा के बारे में भी दिलचस्प संवाद है. आशीष नंदी मानते हैं कि दंगे करनेवाले या हिंसा करनेवाले धार्मिक आस्था के कारण, दंगे नहीं करते, बल्कि राजनीतिक लाभ-हानि के गणित के अनुसार काम करते हैं. प्रो नंदी कहते हैं कि ऐसे लोग एक चार्टेड एकाउंटेंट की तरह दंगों का प्लान करते हैं. उनके अनुसार अगर भारत या दक्षिण एशिया में दंगे करवाने हैं, तो पैसे खर्च करने होंगे या राजनीतिक संरक्षण देना होगा. इसे वह ‘डिजाइनर रायट’ (नियोजित दंगे) कहते हैं और हैदराबाद के एक मुसलिम और हिंदू नेता का हवाला देते हैं. जो अपने-अपने समुदाय को एकत्र कर दंगे प्रायोजित करने में माहिर है. पर दोनों हर सप्ताह मिलते हैं. साथ खाते हैं और अच्छे मित्र हैं. इसी संबंध में वह कल्याण सिंह का उदाहरण देते हैं, जो अब मौजूं हैं. बाबरी मसजिद ध्वंस के मुख्य आरोपियों में से कल्याण सिंह हैं. बाबरी मसजिद गिरी, तो वह यूपी के मुख्यमंत्री थे.

वह भाजपा से नाराज हुए तो मुलायम सिंह के साथ गये, जो खुद को सेक्यूलरवादियों का सिरमौर मानते हैं. फिर भाजपा को कल्याण सिंह सांप्रदायिक कहने लगे. मुलायम सिंह के मंत्रिमंडल में कल्याण सिंह के बेटे मंत्री हो गये. लोगों ने यह स्थिति कबूल कर ली. घोर सेक्यूलरिस्टों ने भी. फिर कल्याण सिंह भाजपा में लौट आये. अपने करीबी मंजू राय को भाजपा से राज्यसभा पहुंचाया. अब फिर भाजपा से नाराज हो गये हैं और अब पुन: मुलायम सिंह के खेमे में हैं. प्रो नंदी एक जगह कहते हैं कि ऐसा क्यों है कि गुजरे 50 वर्षों में हुए दंगों में जो मरे, उनमें से 96.4 फीसदी सिर्फ शहरों में मरे, जबकि भारत में आज भी एक-चौथाई लोग ही शहरों में रहते हैं.बदलते भारत को समझने और जानने की दृष्टि से यह अच्छी कोशिश है.

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