-हरिवंश-
पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में पंडित जसराज पधारे थे. भाषा परिषद (कोलकाता) का हाल भरा था. मंच पर पंडित जसराज, डॉ कृष्णबिहारी मिश्र वगैरह थे. हम भी थे. पंडित जसराज के पास बैठने का पहला अनुभव. अंग्रेजी में एक वाक्य सुना था. प्रजेंस स्पीक्स. हिंदी आशय है कि कुछ लोगों की उपस्थिति या मौजूदगी खुद अहसास कराती है. बोलती है. 79 वर्षीय पंडितजी के पास बैठ कर इस वाक्य का मर्म समझा. उन्हें सुनना, संस्कृत श्लोक पाठ, संगीत की पंक्तियां. उस अनुभव को शब्दों में बांधना मुमकिन नहीं है.
जो पवित्र है, पूजनीय है, सात्विक है, शुद्ध है, ईश्वरीय है, वही संगीत है. इसका अहसास ऐसे ही व्यक्तियों की मौजूदगी में संभव है. अवसर था, प्रमोद शाह जी की पुस्तक थॉटस आन रिलीजियस पालिटिक्स इन इंडिया (तीन खंड) के लोकार्पण का. एक-एक खंड लगभग 700 पेजों का. तीनों खंडों में कुल 2092 पेज. इसे तैयार करने के लिए प्रमोदजी ने दो सौ पुस्तकें पढ़ीं. 50 पत्रिकाएं, अखबार वगैरह. इसमें 150 पुस्तकों से संदर्भ हैं और 30 पत्रिकाओं से. मूल रूप से हिंदी में लिखे लेख, हिंदी में छपे हैं. अंग्रेजी में लिखे लेख, अंग्रेजी में हैं.
प्रमोदजी को वर्षों से जानता हूं. श्रद्धेय कृष्ण बिहारी जी के सौजन्य से. पेशे से चार्टर्ड एकांउटेंट. लिखने-पढ़नेवाले इंसान. गहरे सामाजिक सरोकार वाले. अतिशालीन और मृदुभाषी. अनेक सामाजिक संगठनों और लोकहित के कामों से जुड़े. उनका यही चेहरा जानता था. पर उनमें गंभीर अध्येता, संपन्न विवेक और सृजनशील रचनात्मक व्यक्तित्व है, गहराई है, अपनी साधना को तप, श्रम और निष्ठा से तराशा-निखारा है, तीन खंडों में प्रकाशित अद्भुत और अनोखे संकलन से ही उनका यह चेहरा समझा-देखा. अपने मूल पेशे (चार्टर्ड एकाउंटेंट) में सफल होकर गंभीर और जटिल क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा, स्वाध्याय और श्रम से पहचान बना लेना, असाधारण है.
शायद प्रमोदजी को यह प्रतिभा और रचनात्मक हनर, परिवार से विरासत में मिला. उनकी मां का नाम सरस्वती था. उनके परिवार में संगीत, कविता, कला की अनूठी परंपरा है. प्रमोदजी पांच भाई हैं. एक से बढ़ कर एक. उनके बड़े भाई रेवतीलाल शाह जी इलेक्ट्रॉनिक्स में एमइ थे. राष्ट्रपति सम्मानप्राप्त. पर उर्दू, फारसी, उपनिषद पर उनका गहरा अध्ययन था. अब वह नहीं रहे. दूसरे भाई नंदलाल जी सफल चार्टर्ड एकांउटेंट हैं. आर्थिक सवालों के मर्मज्ञ. तीसरे हैं, रतनलाल शाह जी. अपना व्यवसाय है, पर लेखन, अध्ययन और सामाजिक सरोकारोंवाले.
चौथे हैं डॉ शशि शेखर शाह. पति-पत्नी दोनों डाक्टर हैं. न्यूयार्क के मशहूर न्यूरोलाजिस्ट. इसके बाद हैं, प्रमोद जी. इनकी महत्वपूर्ण कृति सामने है. पुस्तक को प्रकाशित किया है, सोसाइटी फार नेशनल अवेयरनेस, कोलकाता ने. प्रस्तावना लिखी है जानेमाने विद्वान, विचारक व पूर्व राज्यपाल टीएन चतुवर्दी ने. डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र ने संस्तुति लिखी है. पुस्तक पर दशकों से काम कर रहे हैं प्रमोद शाह जी. पुस्तक में प्रमोदजी के ही शब्दों में ‘‘250 से अधिक संबोधन, भाषण, संसद की बहस, संसद का वक्तव्य, लेख, साक्षात्कार, वार्ताएं, चर्चाएं, संपादकीय, समाचार, स्तंभ, पत्र, डायरी, रिपोर्ट, प्रस्ताव, हिंदी-उर्दू की कविताएं इत्यादि शामिल हैं.
विभिन्न क्षेत्रों के करीब 200 व्यक्तियों के विचार संकलित हैं. इनमें राजनीतिज्ञ, चिंतक, पत्रकार, स्तंभकार, सरकारी अधिकारी, लेखक, दार्शनिक, संत, धार्मिक नेता, इतिहासकार, विधिवेत्ता, वैज्ञानिक, अवकाशप्राप्त सेनाधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, कलाकार, विदेशी लेखक, हिंदी-उर्दू कवि इत्यादि प्रमुख हैं.’’
तीन खंडों की इस पुस्तक में 16 अनुच्छेद हैं. 63 परिशिष्ट हैं. 1857 से 2008 के बीच के 151 वर्षों के उतार-चढ़ाव का यह संकलन है. भारत में धार्मिक राजनीति पर विचारों का इसमें संकलन है. महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं. भारत के बंटवारे की पृष्ठभूमि को समझने की कोशिश है. सांप्रदायिक घटनाओं के विवरण हैं. इसके पीछे की मानसिकता, मनोभावना और आवेग का ब्योरा है. तत्कालीन परिस्थितियों के संदर्भ में. यह प्रोजेक्ट 35 वर्षों के अध्ययन और पांच वर्षों के शोध का परिणाम है.
पहले खंड में 1857 से 14 अगस्त 1947 का ब्योरा है. आजादी की पहली लड़ाई से भारत के आजाद होने तक. दूसरा खंड है, 15 अगस्त 1947 से 1 दिसंबर 1989 तक का. इस कालखंड में एक ही पार्टी का दिल्ली में शासन रहा. तीसरे खंड में 2 दिसंबर 1989 से 15 अगस्त 2008 तक के विवरण हैं. यह भारत में साझा सरकारों का दौर है. इन तीन खंडों की सामग्री का संकलन और संपादन किया है प्रमोद शाह ने.
टीएन चतुवर्दी प्रस्तावना में लिखते हैं कि इस पुस्तक में अनेक जानेमाने लोगों के विचार हैं. मसलन सर सैयद अहमद खां, जेबी कृपलानी, राममनोहर लोहिया, फिराक गोरखपुरी वगैरह. चतुवेर्दी मानते हैं कि भारत में दो सभ्यताओं के मिलन से ही भारतीय पुनर्जागरण जन्मा. विचारों की बाढ़ एवं आत्ममंथन ने देश में एक नया माहौल बनाया. नयी जागरूकता आयी. यह पुनर्जागरण सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, शैक्षणिक और अंतत: राजनीतिक था. आगे चल कर इसी प्रक्रिया के गर्भ से कांग्रेस पैदा हुई. धीरे-धीरे भारत राष्ट्र के रूप में आकार लिया. अंग्रेजों की अपनी कूटनीति थी. राजनीति की नस पर धर्म का हाथ पड़ने लगा. अंदर से टूट-फूट और बिखराव के बीच पनपे. भारत बंटा. आज भी सांप्रदायिक मुद्दे -सवाल उठते-उभरते रहे हैं. इन सभी प्रक्रियाओं को समझने के लिए प्रमोदजी की यह पुस्तक अनूठी है.
तीनों खंडों से लगता है कि सभी लेखों के संकलन के पीछे एक स्पष्ट दृष्टि है. लेखक या संपादक ने कहीं कोई विचार न थोपा है, न प्रतिपादित किया है. जस की तस धर दीन्ही चदरिया शैली में लेखक ने इस समस्या के इतिहास, अतीत, संदर्भ को देश के सामने रखने की कोशिश की है, ताकि इस जटिल सवाल पर एक तटस्थ और सम्यक विचार हो सके. इन लेखों को पढ़ने से आभास होता है कि लेखक ने कितना श्रम किया होगा. इस विषय पर न जाने कितने लेख, विचार, और पुस्तकें लेखक ने पढ़ीं होंगी. फिर एक दृष्टि के तहत छांटा होगा. इसके बाद श्रेष्ठ लेखों का यह संकलन सामने है, ताकि इस समस्या को सही दृष्टि से निरखा-परखा जा सके
पुस्तक के लेख – इस पुस्तक में 1857 से 2008 के बीच के लगभग उन सभी चिंतकों के विचार हैं जिन्होंने इस समस्या पर गहराई से विचार किया है. मसलन फीरोजबख्त अहमद, एम जे अकबर, जावेद आनंद, मुबारक खान आजाद, मिर्जा समीउल्लाह बेग, स्वप्न दासगुप्ता, बालेंदु दधीच, अतर फारूकी, राजमोहन गांधी, सी आर ईरानी, प्रभा जगन्नाथन, प्रेम शंकर झा, प्रभाष जोशी, मधु पूर्णिमा किश्वर, युवराज कृष्णा, सईद नकवी, कुलदीप नैयर, बाबूराव पटेल, अरविंद राजागोपाल, साजिद रशीद, के एफ रुस्तमजी, शैलेंद्र सक्सेना, राजदीप सरदेसाई, झाबरमल्ल शर्मा, अरुण शौरी, खुशवंत सिंह, गणेश शंकर विद्यार्थी वगैरह.
नौकरशाहों में पीसी एलेक्जेंडर, एन गोपालास्वामी अय्यंगर, कर्नल रिचर्ड बिर्च, जनरल जान हियरसे, लार्ड माउंटबेटेन, लार्ड वेबेल, मेहरचंद महाजन, वी शंकर, जोगिंदर सिंह, एलएम सिंघवी, शशि थुरूर, विलियम वेडरबर्न के लेख हैं.विचारकों और शिक्षाविदों में – अमलान दत्ता, एस आबिद हसैन, सर सैयद अहमद खान, टीबी मैकाले, पंडित मदनमोहन मालवीय, केएन पण्णिकर, डा.एस राधाकृष्णनन, डा.एमडी सिद्दीकी के लेख हैं.
जानेमाने लेखकों में अज्ञेय, एम फ्रांसिस अब्राहम, सैयद फीरोज अशरफ, डा.धर्मवीर भारती, नीरद सी चौधरी, असगर अली इंजीनियर, डेविड फ्रावले, अनूप गाड़ोदिया, एनजी गहलोत, केएन गोविंदाचार्य, मुजफ्फर हसैन, डा.मोहम्मद हनीफ शास्त्री खान, डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र, डॉ विद्यानिवास मिश्र, एजी नूरानी, किशन पटनायक, प्रेमचंद, अमृता प्रीतम, राही मासूम रजा, भीष्म शाहनी, डॉ रामविलास शर्मा, डॉ विजय बहादुर सिंह, निर्मल वर्मा वगैरह के लेख हैं.
संकलन में कवि और चित्रकारों के लेख हैं. जानेमाने राजनेताओं के भी लेख हैं. मसलन शेख अब्दुल्ला, लालकृष्ण आडवाणी, डा.बीआर आंबेदकर, डॉ एमए अंसारी, क्लेमेंट रिचर्ड एटली, मौलाना आजाद, व्योमेश चंद्र बनर्जी, सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर, स्टैफोर्ड क्रिप्स, मोरारजी देसाई, आचार्य नरेन्द्र देव, डा.वीएन गाडगिल, गोपालकृष्ण गोखले, एस वजीर हसन, मोहम्मद अली जिन्ना, प्रकाश करात, मधु लिमये, महात्मा गांधी, डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी, प्रो हीरेन मुखर्जी, केएम मुंशी, सरोजनी नायडू, जयप्रकाश नारायण, पं जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लाला लाजपत राय, चक्रवर्ती राजगोपालचारी, पीवी नरसिंह राव, डॉ कर्ण सिंह, महाराजा हरि सिंह, हरकिशन सिंह सुरजीत, स्वामी चिन्मयानंद, सैयद शहाबुद्दीन, पुरुषोत्तम दास टंडन, बाल गंगाधर तिलक, बदरूद्दीन तैयबजी, पं दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, सीताराम येचुरी, बहादुरशाह जफर वगैरह.
जानेमाने धार्मिक और आध्यात्मिक लोगों के लेख-विचार भी इस संकलन में हैं. आचार्य महाप्रज्ञ, विनोबा भावे, जे कृष्णमूर्ति, मौलाना मदूदी,मौलाना वहीदुद्दीन खान , डॉ जाकिर नायक, ओशो, पी परमेश्वरम, हनुमान प्रसाद पोद्दार, सिस्टर निवेदिता, महर्षि अरविंद, स्वामी दयानंद, स्वामी रंगनाथानंद, स्वामी श्रद्धानंद, स्वामी विवेकानंद, सैयद अब्दुल्ला बुखारी, मोहम्मद वजीउद्दीन वगैरह.
भारत के राष्ट्रपति रहे लोगों के लेख भी इस संकलन में हैं – एपीजे अब्दुल कलाम, केआर नारायणन, राजेंद्र प्रसाद, डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णनन. इसी तरह जानेमाने वकीलों, न्यायमूर्तियों, क्रांतिकारियों, इतिहासकारों, राष्ट्रविदों, उद्योगपतियों, फिल्म, सेना, समाज-सुधारकों और इस समस्या पर विचार करनेवाले विदेशी लेखकों के लेख भी इस संकलन में हैं.