-हरिवंश-
मशहूर संडे टाइम्स में विदेशी संवाददाता रहे. फिर प्रतिष्ठित प्रकाशन गार्जियन से जुड़े. उत्कृष्ट खोजी पत्रकारिता का नमूना है, यह किताब. इसमें महत्वपूर्ण नक्शे हैं. इलस्ट्रेशंस (रेखाचित्र) हैं. दुर्लभ तसवीरें और स्तब्ध करनेवाले दस्तावेज हैं. बीस अध्याय हैं. लगभग 100 पेजों में इस पुस्तक के प्रमुख नायकों (खलनायक?) का ब्यौरा है. संक्षिप्त शब्दों की सूची है. नोटस् (विवरण/ टिप्पणी) हैं. बिब्लियोग्राफी (ग्रंथ-सूची) है और इंडेक्स (सूची) है.
कहां से हमलावर आये? वे कौन थे? कई किस्तों में भारत, पाकिस्तान के हर सवाल – संदेह को सबूतों से मिटाता रहा है. फिर भी पाकिस्तान ने फरमाया है कि अब तक भारत के सबूत पुख्ता नहीं हैं. पाकिस्तान को लेकर भारत के नेताओं और शासक वर्ग में भ्रम की स्थिति है. पाकिस्तान किस हाल में है? वह कितना खतरनाक हो चुका है? भारत के नेता इस चर्चा से भागते हैं. शायद वोट बैंक के कारण. वे सोचते हैं कि इस चर्चा से कहीं मुसलमान नाराज न हो जायें.
पर पाकिस्तान, भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा तो है ही, खुद पाकिस्तान की बहुसंख्यक जनता अपना जीवन खतरे में महसूस करती है. पाकिस्तान के पत्रकारों, सजग नागरिकों और साहसिक राजनेताओं के सहयोग से यह पुस्तक तैयार हुई. पुस्तक में पाकिस्तान के अनेक जानेमाने शासकों के उद्धरण हैं. बयान हैं. अनेक पाकिस्तानी नागरिकों ने गुमनाम रहकर तथ्य दिये हैं. पाकिस्तान, भारत, इजराइल, यूरोप और दक्षिण एशिया के सैकड़ों महत्वपूर्ण लोगों से बातचीत है.
पाकिस्तान ने कैसे षडयंत्र और ब्लैक मार्केटिंग से न्यूक्लीयर नेटवर्क बनाया. फिर इस्लामाबाद से कैसे यह ईरान, लीबिया और नार्थ कोरिया तक जा फैला. पाकिस्तानी परमाणु बम के जनक डॉ अब्दुल कादिर खां का बयान है कि पाकिस्तान सुई बनाने में भी अक्षम था, पर अब वह पाकिस्तान भारत के हर शहर पर परमाणु हथियार से हमला करने की तकनीक से लैस है. खां को पाकिस्तान में ‘फादर आफ द बम’ माना जाता है.
1972 में यह खां, हॉलैंड में एक टेक्नीकल ट्रांसलेटर थे. वहां ब्रिटेन, डच और जर्मन वैज्ञानिकों के एक समूह ने क्लासीफाइड (गुप्त) ब्लूप्रिंट्र तैयार किया. खां के हाथ यह दस्तावेज लग गया. 1975 में खां तीन बड़े सूटकेसों में चुरायी सूचनाएं भर कर पाकिस्तान लौटे. इस तरह खां ने यूरोप के भौतिक विज्ञानियों, उद्यमियों, इंजीनियरों और मेटलजिर्स्टों का नेटवर्क बना लिया. यह समूह पश्चिमी देशों में गोपनीय ढंग से बम बनानेवालों से भी जुड़ा था.
इस तरह खां ने चुपचाप उस समूह से सांठ-गांठ कर ली. 1977 में पाकिस्तान में तख्ता पलटा. जिया-उल-हक सत्ता में आ गये. सीआइए ने अमरीका को आगाह किया. जनरल जिया के कार्यकाल में कालाबाजारी या चोरी से परमाणविक ऊर्जा, र्इंधन और तकनीक खरीदने का अभियान सरकारी बन गया. आइएसआइ (इंटर सर्विस इनटेलिजेंस) ने इस काम को अपने हाथ में ले लिया. 79 में जिमी कार्टर राष्ट्रपति बने.
कार्टर का वादा था, धरती पर परमाणु हथियारों की संख्या घटायेंगे. पर अमरीका ने पाकिस्तान को साम्यवाद के खिलाफ आवश्यक बफर स्टेट (मध्यवत) माना. कार्टर को मनाया गया कि जनरल जिया के परमाणु संपन्न होने के सपने में दखल न दिया जाये. फिर रीगन का राज आया.
पुस्तक के तथ्य स्पष्ट करते हैं कि न्यूक्लीयर टेक्नोलॉजी का पाकिस्तान कैसे सबसे बड़ा तस्कर बना. 2001 में जार्ज बुश राष्ट्रपति बने. उन्होंने अपनी प्राथमिकता चुनी. संहार के हथियारों (वीपेंस आफ मास डिस्ट्रकशन) को नष्ट करना. फिर 9/11 की घटना हुई. अमरीका ने आंख मूंद कर पाक को मदद की. तालिबानी आतंकवादियों से लड़ने के लिए, पर मुशर्रफ के संरक्षण में अलकायदा, तालिबानी और आतंकवादी देश और संगठन बदल कर पाक पहुंच गये.
2006 में बुश अचानक काबुल पहंचे. तब राष्ट्रपति करजई ने उन्हें सारे दस्तावेज सौंपे, जिनमें प्रमाण थे कि पाक सेना और आइएसआइ ने कहां और कैसे तालिबानियों के मुल्ला उमर समेत हजारों खूंखार आतंकवादियों को छुपा रखा है. अमरीकी इनटेलिजेंस ने इसे सही पाया. राष्ट्रपति बुश ने मुशर्रफ को दस्तावेज सौंपे. मुशर्रफ ने झूठ बोला. उन्हीं दिनों पाक -अफगान सीमा के एक स्कूल में विस्फोट में 25 बेकसूर बच्चे मारे गये.
मुशर्रफ ने कहा कि यही वे आतंकवादी थे. पर सच कुछ और था. अब स्वात घाटी में तालिबानियों का खुला राज और पाक का समर्थन मुशर्रफ के झूठ को जग जाहिर कर रहे हैं. तालिबानीकरण, आतंकवाद और जंगलराज से पाकिस्तान की जनता सांसत में है. पाक के पत्रकारों ने तालिबानियों के खौफ का जो चित्रण किया है, वह कल्पना से परे है.