भारत की आत्मा के पारखी – पॉल ब्रंटन
-हरिवंश- पॅाल ब्रंटन की पुस्तकें बार-बार पढ़ता हूं. ढूंढ़ता हूं. वह अत्यंत प्रिय लेखकों में से हैं. पहले जान लें कि डॉ पॉल ब्रंटन थे, कौन? 1898 में लंदन में वह जन्मे. अंगरेजी में लिखित उनकी पुस्तकें दर्जनों भाषाओं में अनुदित हुई. हर भाषा में उनकी रचनाएं उन दिनों में भी ‘बेस्ट सेलर’ (सर्वाधिक बिकनेवाली) […]
-हरिवंश-
डॉ ब्रंटन की रुचि धर्म, रहस्यवाद और दर्शन में थी. भारत जब अंग्रेजों के लिए ‘सोने की चिड़िया’ (दोहन और लूट के संदर्भ में) था, तब एक अंगरेज पत्रकार ने ‘ओरिएंटल’ दर्शन में डुबकी लगायी. भारतीय दर्शन, अध्यात्म और जीवन पद्धति के हीरे-मोती ढूंढ़ा. तब दुनिया को बताया. वर्नाफ, कालब्रूक और मैक्समूलर जैसे भारतीय संस्कृति के अध्येताओं ने दुनिया को भारतीय ज्ञान संपदा से रु-ब-रु कराया. उसी कड़ी में पॉल ब्रंटन हैं. उन्होंने भारत समेत प्राच्य या पूर्वी देशों की अविश्वसनीय घुमक्कड़ी की. खास कर भारत में साधुओं, संतों और योगियों से मिले.
हिमालय से लेकर गंगा-गोदावरी, उत्तर -दक्षिण के सुदूरवर्ती इलाकों में गये. सच्चे संतों-योगियों की तलाश में. फिर अध्यात्म और भारत पर दर्जनों पुस्तकें लिखीं. 16 खंडों में उनके नोट बुक्स प्रकाशित हैं. सबसे पहले उनकी अत्यंत चर्चित पुस्तक ‘ए सर्च इन सीक्रेट इंडिया’ 1934 में छपी. ब्रिटेन से. अब इसका हिंदी अनुवाद ‘गुप्त भारत की खोज’ भी उपलब्ध है. बनारस के ‘मानस ग्रंथागार’ ने इसे छापा है. अन्य पुस्तकों के पुराने प्रकाशक कौन हैं, कहां उनकी सभी पुस्तकें हैं, नहीं मालूम. पर जहां-जहां उनकी कोई रचना दिखाई देती है, पहले वहीं ध्यान जाता है. हैदराबाद की इस यात्रा में डॉ पॉल ब्रंटन की एक पुस्तक मिली. ‘ए हरमिट इन द हिमालयाज’. पुस्तक कवर पर मोटे हरफों में सबसे ऊपर पॉल ब्रंटन लिखा है. उसके नीचे उल्लेख है ‘वन आफ द ग्रेटेस्ट स्प्रिचुअल एक्सप्लोर्स ऑफ द ट्वेंटीएथ सेंचुरी’ (बीसवीं सदी के महानतम आध्यात्मिक अन्वेषकों में से एक). फिर नीचे पुस्तक का नाम. इस पुस्तक को छापा है, राइडर ने. लंदन, सिडनी, आकलैंड और जोहांसबर्ग में इसके दफ्तर हैं. यह पुस्तक सबसे पहले 1937 में छपी थी. रूपा एंड कंपनी के सौजन्य से भारत में इसका वितरण हो रहा है. कीमत है 5.25 पौंड. डॉ पॉल की लगभग हर पुस्तक के बारे में उन दिनों के संसार के मशहूर पत्र-पत्रिकाओं में मुक्त भाव से प्रशंसा है.
फिर भी पवित्र भारत की तलाश में रमे -डूबे रहे. इसी कठोर साधना का परिणाम है, उनकी पुस्तकें. इस कारण उनकी पुस्तकें विशिष्ट हैं. इस नश्वर जीवन का सत्व, सार और सुगंध तलाशने वालीं. उनकी अत्यंत मशहूर पुस्तक ‘गुप्त भारत की खोज’ की भूमिका लिखने वाले फ्रांसिस यंगहस्बैंड ने लिखा कि पॉल की पुस्तक का नाम यदि ‘पवित्र भारत’ होता तो, ज्यादा सही रहता. उनके अनुसार पॉल आध्यात्मिक अनुभूति के शुद्धतम और अत्यंत निर्मल रूप का दर्शन करना चाहते थे और अंत में उनकी साध्य पूरी हुई. पर इसकी कीमत डॉ पॉल ने चुकायी. उन्होंने आरंभ में ही लिखा है, ‘कड़ाके की धूप और झुलसाने वाली लू सह कर तथा कितनी ही रातें बिना सोये हुए बिता कर इन साधुओं की खोज में मैं भटकता रहा’.
उन्हीं के शब्दों में, ‘हिंदुस्तान की पवित्र नदी, मरकत सलिला, गंगा, विशाल यमुना और रम्य गोदावरी के तटों पर इसी खोज में मैंने बहुत भ्रमण किया, देश के चारों ओर चक्कर लगाया, हिंदुस्तान ने मुझे अपने अंतस्तल में स्थान दिया और मुझ जैसे अपरिचित पाश्चात्य व्यक्ति को इस देश के लुप्त-प्राय महात्माओं में से कितनों ने ही अपनी शरण दी’.
बीच-बीच में वह भीड़ से अलग होकर (रिट्रीट) इन जगहों में जाये, अपनी आत्मा से संवाद करे. पुस्तक में 18 अध्याय हैं. कुल 196 पेज की पुस्तक है, पर अत्यंत रोचक. पॉल ब्रंटन की अंगरेजी थोड़ी क्लिष्ट है. विक्टोरियन एरा की छाप है. पर वह बिलकुल प्रवाह, संगीत और लय की भाषा में जीवन, चेतना और अध्यात्म की बातें करते हैं. इसलिए वह अत्यंत रोचक और पठनीय है. महर्षि रमण से हुई मुलाकात को जिस भावपूर्ण तरीके से उन्होंने लिखा है (‘गुप्त भारत की खोज’ में) वह चमत्कृत करता है. काश पॉल ब्रंटन की सारी पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद होता और वे सस्ते दामों पर उपलब्ध होतीं.