नयी विमानन नीति
सस्ती उड़ानों से देश के छोटे-बड़े शहरों को जोड़ने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. बीते सालों में नागरिक विमानन में व्यापक विस्तार के बावजूद छोटे शहरों और कई राज्यों की राजधानियों तक सेवा नहीं पहुंच सकी है. इस कमी को दूर करने तथा विमानन को लाभप्रद व्यवसाय बनाने के उद्देश्य […]
सस्ती उड़ानों से देश के छोटे-बड़े शहरों को जोड़ने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है. बीते सालों में नागरिक विमानन में व्यापक विस्तार के बावजूद छोटे शहरों और कई राज्यों की राजधानियों तक सेवा नहीं पहुंच सकी है. इस कमी को दूर करने तथा विमानन को लाभप्रद व्यवसाय बनाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने नयी विमानन नीति की घोषणा की है.
इसमें रिजनल कनेक्टिविटी स्कीम के तहत छोटे शहरों में हवाई सेवा उपलब्ध कराने के लिए किराये को प्रति घंटे 2,500 रुपये तक सीमित करने और टिकट रद्द कराने का शुल्क 200 रुपया निर्धारित करने के साथ-साथ राज्य सरकार के सहयोग से सस्ते हवाई अड्डे बनाने, सेवाप्रदाताओं को कई तरह के छूट देने और यात्रियों के हितों की रक्षा का प्रावधान किया गया है. सस्ती सेवाओं पर अनुदान देने से क्षेत्रीय स्तर पर विमानन व्यवसाय को प्रोत्साहन मिलेगा. विमानन कंपनियों ने इस नीति का स्वागत किया है.
हालांकि, इसलिए छोटे शहरों में हवाई अड्डे बनाने और समुचित संसाधन तैयार करने की दिशा में केंद्र और राज्य सरकारों को तेजी से कदम उठाने की जरूरत है. वर्ष 2004 में विमानन में निजी क्षेत्र को बड़े पैमाने पर प्रोत्साहित करने के बाद से इस क्षेत्र में वाणिज्य और सुविधाएं बढ़ी हैं, लेकिन अब भी बड़े शहरों और कुछ राज्यों की राजधानियों के मार्ग ही लाभप्रद हैं.
इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी तथा अधिक खर्च के कारण कंपनियां छोटे शहरों में सेवा नहीं दे पा रही थी. उम्मीद है कि नयी नीति के लागू होने तथा सरकार के संरक्षण से यह स्थिति बदलेगी. सरकार का इरादा घरेलू यात्रियों की मौजूदा आठ करोड़ की संख्या को 2022 तक 30 करोड़ करना है. भारतीय विमानन की एक बड़ी कमजोरी उसकी सीमित अंतरराष्ट्रीय सेवाएं है. अब तक नियम यह था कि ऐसी सेवाओं के लिए किसी कंपनी के पास पांच सालों का अनुभव और 20 जहाजों का काफिला होना चाहिए. नयी नीति में पांच साल की शर्त को हटा दिया गया है.
इससे दक्षिण एशियाई देशों के सहयोग से इस क्षेत्र में सेवा विस्तार की संभावना पैदा हुई है. बहरहाल, इस प्रस्तावित नीति को अंतिम रूप देने से पहले बड़े हवाई अड्डों तथा आसमान में जगह की समस्या, छोटे शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर और ईंधन पर राज्य सरकारों के शुल्क जैसे महत्वपूर्ण मसलों पर स्पष्ट राय बनाने की जरूरत है.
कंपनियों को दिये जानेवाले सरकारी अनुदान, छूट और संरक्षण के स्तर और समय-सीमा का निर्धारण भी जरूरी है. आशा है कि सरकार आम लोगों, विशेषज्ञों तथा कंपनियों के सुझावों का संज्ञान लेकर इस नीति को जल्दी साकार करेगी.