कविता की ताकत
-हरिवंश- कवर सुंदर लगा. ब्लैक पृष्ठभूमि पर सफेद रंग में शीर्षक. एक सिरे पर पीली उठती रोशनी की लौ. पुस्तक उठा ली. पलटा, नया प्रयोग लगा. कीमत पर निगाह डाली. उस समय पैसे कम थे. खरीद न सका. नाम नोट किया. दिल्ली के एक मित्र से आग्रह किया. फलां दुकान से खरीद कर भिजवा दें. […]
-हरिवंश-
कवर सुंदर लगा. ब्लैक पृष्ठभूमि पर सफेद रंग में शीर्षक. एक सिरे पर पीली उठती रोशनी की लौ. पुस्तक उठा ली. पलटा, नया प्रयोग लगा. कीमत पर निगाह डाली. उस समय पैसे कम थे. खरीद न सका. नाम नोट किया. दिल्ली के एक मित्र से आग्रह किया. फलां दुकान से खरीद कर भिजवा दें. इस तरह पुस्तक हाथ लगी. नाम है ‘लीडिंग फ्राम विदिन’ (अर्थ है, अंदर से नेतृत्व). इस शीर्षक के नीचे लिखा है ‘पोएट्री दैट सस्टेंड द करेज टू लीड’ (कविता जिसने साहस या दृष्टि दी, टिके रहने के लिए). इसका संपादन दो लोगों ने किया है.
एक संपादक हैं, सैम एम इंट्राडोर. दूसरी हैं, मेगान स्क्रिबनर. सैम प्रोफेसर हैं. केलाग नेशनल लीडरशीप फेलो (अमेरिका) रहे हैं. मेगान संपादक हैं. वह कई पुस्तकों की लेखिका हैं. दोनों प्रयोगधर्मी हैं. प्रकाशक हैं, जाशीवाश, सैन फ्रांसिसको (अमेरिका). पुस्तक का कापीराइट है, द सेंटर फार करेज एंड रिनियूअल, (साहस और इसके पुनर्जीवन के लिए कार्यरत केंद्र). अनोखी संस्था. पुस्तक की कीमत है, 1000 रूपये.
इस संकलन में 93 कविताएं हैं. एक-एक कविता के साथ, एक निजी संक्षिप्त टिप्पणी. हर टिप्पणी में एक सामान्य पहलू कि कैसे इस कविता ने चुनौतियों में, संघर्ष में, दुख में, अंधेरे में, न सिर्फ अंदर की लौ जलाये रखा बल्कि टूटने नहीं दिया. यह प्रयोग ही इस संकलन को विशिष्ट बनाता है. बचपन में ही कविता के बारे में सुना था. ‘आह से उपजा होगा गान’. सामान्य पाठक के लिए अंदर की कशिश, पीड़ा, बेचैनी को जहां स्वर मिले, वही कविता है. कविता, करुणा, भाव, मन, हृदय की भाषा है. दिमाग, प्रबंधन, व्यवसाय, नफा-नुकसान, बाजार और दुनिया का दांवपेंच समझता है. अपनी पृष्ठभूमि अर्थशास्त्र यानी मस्तिष्क की रही है, पर मन को ताकत तो कविता और साहित्य से ही मिलता है.
इस अर्थ में बाजार और करुणा का द्वंद्व सनातन है. मन और मस्तिष्क का फर्क. इसी तरह इस संकलन में अलग-अलग पृष्ठभूमि के लोगों ने निजी भाव लिखे हैं कि कैसे कविताओं ने (या उनकी प्रिय कविता ने) जीवन की चुनौतियों-संघर्षों में उन्हें टिके रहने और सफल होने की ताकत दी. यह कहने-लिखनेवाले कौन हैं? व्यवसाय, शिक्षा, कानून, राजनीति, धर्म व मेडिसिन (उपचार की दुनिया) की दुनिया के जाने-माने लोग.
अमेरिकी कांग्रेस की अनेक मशहूर हस्तियां. पीटर सेंग जैसे मशहूर बिजनेस गुरु. प्रख्यात प्रोफेशनलस (जिनका रिश्ता बाजार और मस्तिष्क की दुनिया से है) ने अपनी पसंदीदा कविता के साथ रोचक और प्रेरक निजी भावों को शब्द दिया है. कविताएं, किन लोगों की हैं? टी एस इलिएट, मेरी ओलिवर, वर्ड्सवर्थ, रूमी, पाब्लो नेरूदा, रिल्के, राबर्ट फ्रास्ट, लार्ड टेनिसन जैसे मशहूर और दुनिया में स्थापित ज्ञात कवियों की. वे कविताएं जो देश की भौगोलिक सीमाओं को पार कर हर मुल्क में, अलग-अलग जाति, परिवेश, धर्म, नस्ल के लोगों को प्रेरित करती रही है. निजी संकट, दुख में उत्साह, ऊर्जा और दृष्टि देती रही है. लोगों के अनुभव पढ़ते हुए बहुत पहले पढ़ी-सुनी ये पंक्तियां याद आयीं.
उधार की रोशनी काम नहीं आयेगी
खुद प्रकाश बनना / जलाना होगा
यानी अपनी चुनौतियों, संकट में खुद राह ढूंढ़ना. सारांश कि आत्मदीपो भव. अपने लिए खुद दीपक (प्रकाश) बनना. यह दीपक बनने, निजी स्तर पर प्रकाश ढूंढ़ने में इन कविताओं की क्या भूमिका रही, यही लिखा है जाने-माने लोगों ने. मशहूर कवियों की अपनी पसंदीदा कविताएं और उन कविताओं ने कैसे ऊर्जा, प्रेरणा दी और अंधेरे में राह दिखायी. इसके निजी अनुभव-विवरण. यह प्रयोग ही इस संकलन को विशिष्ट और पठनीय बनाता है.
पुस्तक की भूमिका लिखी है मैडिलिन के अलब्राइट ने. अलब्राइट अमरीका की सेक्रेटरी आफ स्टेट (विदेश मंत्री) रहीं हैं. भूमिका लिखी है पार्कर जे पामर ने. पुस्तक के अंत में इस विशिष्ट प्रयोग पर राय व्यक्त की है, डेविड व्हाइते ने. सभी अपने-अपने क्षेत्र के स्थापित- मशहूर लोग हैं. अलब्राइट अपनी भूमिका के अंत में लिखती हैं, सही सवालों और मुद्दों पर नेतृत्व चमत्कार कर सकता है, यह हमने देखा है. कम से कम असंभव को संभव के दायरे में पहुंचा सकता है. हमारे आसपास नेतृत्व के अनंत अवसर पसरे-बिखरे हैं. हम में से हर एक में नेतृत्व की गहरी क्षमता है. मन में, भावों में. इन दोनों के बीच तालमेल बनाना या पुल बनाना ही पुस्तक का उद्देश्य है.
संपादक द्वय का विचार है कि समाज के हर वर्ग के स्थापित लीडर (कारपोरेट वर्ल्ड, विख्यात सर्जन, मशहूर राजनीतिज्ञ, विख्यात कानूनविद, शिक्षाविद) इस संकलन में उपस्थित हैं. पग-पग पर कठिनाइयों-संघर्षों से गुजरते हुए, जिनका जीवन चुनौतियों की आग से निकल कर इस्पात बना है.
संपादकों ने ऐसे लोगों से आग्रह किया, अपने व्यस्त समय से कुछ क्षण निकालें और बतायें अंधेरे में, मुसीबतों में आपको अपने अंदर कहां से ताकत, प्रेरणा या रोशनी मिली? किन कविताओं ने उन्हें टूटने नहीं दिया. डूबने नहीं दिया. झुकने या खत्म होने नहीं दिया? भय, अकेलापन, अलगाव, निराशा, पस्ती में भी टिकाये रखा. इसी प्रयास का परिणाम है, यह संकलन. कविताएं कैसे असर करती है, इस पर कीट्स की एक पंक्ति इसी पुस्तक में है. बरछा या भाला जैसे अंदर से गुजरे, वैसे ही कविताओं का असर होता है. वे टूटते हुए को, बिखरते हुए को अंदर से ऊर्जा देती है, बचाती है.
राबर्ट एफ केनेडी (जूनियर) ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि कैसे उनके परिवार, इतिहास में दर्ज उनके भाइयों को कविताओं से प्रेरणा मिलती थी. अनेक मशहूर कवियों – कविताओं के नाम उन्होंने गिनाये हैं. पर अपनी पसंदीदा कविता चुनी है, अल्फ्रेड लार्ड टेंशन की ‘यूलिसेस’ को. यह विश्व मशहूर कविता है, जिसकी अंतिम पंक्तियों का आशय है, ‘समय और काल ने कमजोर बना दिया, पर संकल्प अटूट है. संघर्ष के लिए, तलाश के लिए, कुछ करने-पाने के लिए, पर आत्मसमर्पण या हथियार डालने के लिए नहीं?’
यह संकलन पढ़ रहा था, तो 2002-2004 के बीच की एक घटना याद आयी. विदेश से लौट रहा था. एम्सटर्डम एयरपोर्ट पर ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ पढ़ने को मिला. उन्हीं दिनों बहुराष्ट्रीय कंपनी इनरान दिवालिया हुई थी. अमेरिकन काम (कंपनी) डूबी थी. पश्चिम के समाज में बहस चल रही थी कि ऐसी संस्थाओं में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों (सेंटर आफ एक्सेलेंस) से पढ़ कर प्रतिभाएं आती हैं.
श्रेष्ठ मस्तिष्क. फिर भी बेईमानी, घोटाले, लूट और यह दिवालियापन क्यों? एक प्रोफेसर ने लिखा था कि व्यक्ति को संस्कार, मूल्य वगैरह मन, दिल से मिलते हैं. दिल जिसे साहित्य और कविता ही तराशती-समृद्ध करती है. इसलिए दुनिया की प्रतिभाएं मस्तिष्क से न चलें, कविताएं और साहित्य पढ़ें, तो वे समृद्ध , बेहतर और स्तरीय होंगी. बहस यह थी कि प्रबंधन, बाजार, नफा-नुकसान वगैरह जहां पढ़ाये जाते हैं (सेंटर आफ एक्सेलेंस), वहां साहित्य और मूल्यपरक चीजें भी पढ़ायी जायें. तब से अमेरिका के कई मशहूर संस्थानों में गांधी, गीता और साहित्य भी शामिल किये गये.क्या भारत में साहित्य को ले कर शासकों, प्रबुद्धजनों में कोई दृष्टि है.