अलाव टाइम डिबेट पर भी दीजिए कान

।। पुष्यमित्र।। (पंचायतनामा, रांची) आदरणीय रवीश जी, आप बड़े-बड़े लोगों को चिट्ठियां लिखते हैं. मुझ जैसे पत्रकारों के लिए तो आप ही बड़े हैं, सो आपको ही चिट्ठी लिख रहा हूं. साथ ही इसकी प्रति आदरणीय अर्णव जी, पुण्य प्रसून वाजपेयी जी और दीपक चौरसिया जी को भी दे रहा हूं. आप लोगों ने इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 20, 2014 3:57 AM

।। पुष्यमित्र।।

(पंचायतनामा, रांची)

आदरणीय रवीश जी, आप बड़े-बड़े लोगों को चिट्ठियां लिखते हैं. मुझ जैसे पत्रकारों के लिए तो आप ही बड़े हैं, सो आपको ही चिट्ठी लिख रहा हूं. साथ ही इसकी प्रति आदरणीय अर्णव जी, पुण्य प्रसून वाजपेयी जी और दीपक चौरसिया जी को भी दे रहा हूं. आप लोगों ने इस देश को बहस की परंपरा दी है. हम दिन में चार बार बड़े लोगों को बहस करते हुए सुनते हैं कि मोदी नहीं आ रहे हैं, तो क्यों नहीं आ रहे हैं या राहुल गांधी प्रत्याशी नहीं बनेंगे, तो क्यों नहीं बनेंगे. और उस बहस में आप लोग मॉनिटर की भूमिका में रहते हैं. आप सब की बहसें सुन कर, हम लोग उस पर फेसबुक पर रिसर्च करते हैं और कोशिश करते हैं कि रिसर्च की कॉपी आप लोगों की नजर में भी आ जाये. बहरहाल, चिट्ठी लिखने का मुद्दा यह है कि पिछले दिनों जब गांव गया था, तो मुङो लगा था कि एक हफ्ते तक आप लोगों की बहस से कैसे दूर रह पाऊंगा? कैसे पता चलेगा कि बिन्नी महाशय किसके एजेंट हैं या 17 जनवरी को राहुलजी अनाउंस होंगे या नहीं?

मगर जब गांव पहुंचा तो देखा कि वहां भी आपके प्राइम टाइम डिबेट जैसी डिबेट होती है. ठंड और कुहासे से भरे दिन में यह डिबेट अलाव के किनारे होती है, जिस हम बिहार के लोग घूरा कहते हैं. यह ठीक है कि वहां बहस करने वाले लोग जाने-माने एक्सपर्ट नहीं होते, मगर उन अनजाने एक्सपर्ट के तर्क सुनेंगे तो आपको भी लगेगा कि बेकार दुबे जी, चौबे जी को एक्सपर्ट के नाम पर बिठाते हैं. गांव के सिंह साहब और महतो जी भी कम बड़े एक्सपर्ट नहीं है. उनको भी मालूम है कि इस बार लालू जी और नीतीश जी में कौन भारी पड़नेवाला है. उनका भी एनालिसिस कहता है कि बिहार में ‘आप’ हवा पटना से बाहर नहीं बह रही और कांग्रेस के साथ जो गया सो गया. और पासवान जी की खुशामद करने का कोई फायदा नहीं है. उनके नाम पर तो उनके गांव शहरबन्नी का दलित भी उनको ‘भोट’ नहीं देगा, जहां उनकी कृपा से सेल का गेस्ट हाउस बन गया है. सीट का नक्शा, जात का परसेंटेज, कैंडिडेट और उसका मैनेजर सब लोगों को मुंहजबानी पता है.

तो आप लोगों से अनुरोध है कि एक बार इस अलाव टाइम डिबेट के लिए भी टाइम स्लॉट फिक्स कीजिए. कौन बनेगा मुख्यमंत्री टाइप नहीं, जहां माइकवाला एक आदमी रहता है और बोलनेवाला पांच सौ. खाली झौं-झौं होते रहता है. किसी भी गांव के एक अलाव को चुनिए और चुपके से वहां का डिबेट लाइव करके देखिए कि कितना मजा आता है. आजकल तो दिन भर डिबेटे चलता है. ठंढी के मौसम में सूरज भगवान सब छुटिया खतम करने पर तुल गये हैं तो लोग भी घूरा तापने के बदले और क्या करें. धान कटके घर आ गया है. गेहूं के खेत में कुछ खास काम नहीं है, तो अलाव तापने से बेहतर क्या है. फिर देश के लिए बहस भी तो करनी है.

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