योग की वैश्विक गूंज
नेपोलियन के विजय अभियान पर केंद्रित विक्टर ह्यूगो के एक संस्मरण ‘द हिस्ट्री ऑफ ए क्राइम’ में एक वाक्य आता है- ‘नथिंग इज स्ट्रांगर दैन एन आयडिया, हूज टाइम हैज कम.’ इसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शब्दों में कहें तो जिस विचार का समय आ गया हो, उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक […]
नेपोलियन के विजय अभियान पर केंद्रित विक्टर ह्यूगो के एक संस्मरण ‘द हिस्ट्री ऑफ ए क्राइम’ में एक वाक्य आता है- ‘नथिंग इज स्ट्रांगर दैन एन आयडिया, हूज टाइम हैज कम.’ इसे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के शब्दों में कहें तो जिस विचार का समय आ गया हो, उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती.
योग भी एक ऐसा ही ताकतवर विचार है, जिसका समय आ चुका है और इसे अब कोई नहीं रोक सकता. योग की इस ताकत को भांप कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र में नयी सरकार के गठन के कुछ ही समय बाद, 27 सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा. प्रधानमंत्री के मन में था कि योग का ज्ञान समूची मानवता के कल्याण के लिए है और अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के लिए कैलेंडर में एक दिन निर्धारित कर पूरी दुनिया इस बात की तस्दीक करे. संयुक्त राष्ट्र में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक बहुमूल्य उपहार है.
इसकी परंपरा पांच हजार साल पुरानी है. यह मन और शरीर, विचार और कर्म, संयम और उपभोग के बीच एकता, मनुष्य और प्रकृति के बीच साहचर्य तथा स्वस्थ और कल्याणमय जीवन की एक सम्यक दृष्टि है. योग का मतलब सिर्फ व्यायाम नहीं होता, बल्कि अपने अस्तित्व के भीतर एकता, विश्व और प्रकृति के साथ एकाकार का अनुभव करना योग है. योग हमारी जीवनशैली को बदल कर और चेतना को जाग्रत करके हमारे कल्याण में सहायक सिद्ध हो सकता है. इसलिए आइये, हम अंतरराष्ट्रीय योग दिवस अपनाने की दिशा में कदम बढ़ायें.’
प्रधानमंत्री के इस कथन के पौने दो साल के भीतर दो बातें बड़ी साफ-साफ नजर आ रही हैं. एक तो यह कि 21 जून को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस के रूप में अपना लिया गया है और लगभग पूरी दुनिया में इससे संबंधित आयोजन किये जा रहे हैं. दूसरे, इस अवधि में भारत सहित कई देशों में योग का विचार हैरतअंगेज तेजी के साथ एक उत्पाद में बदला है और योग से जुड़े सेवा और सामानों की कारोबारी दुनिया में भारी इजाफा हुआ है.
एक आकलन के मुताबिक, महज एक साल के भीतर योग का सेवा-उद्योग 50 फीसदी तक बढ़ा है, योग करनेवाले लोगों की संख्या में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है और देश में योग प्रशिक्षकों की मांग भी 35 से 40 फीसदी तक बढ़ गयी है. इस बढ़त को देखते हुए अचरज नहीं कि देश का मानव संसाधन विकास मंत्रालय योग को उच्च शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बना कर ज्यादा से ज्यादा संख्या में घरेलू तथा विदेशी खपत के लिए ट्रेनर तैयार करने की अपनी योजना पर तेज कदमों से चल पड़ा है.
योग का बढ़ता बाजार इस बात की सूचना है कि इससे जुड़े तमाम पक्ष यानी योग के कारोबारी और उपभोक्ता इसे तमाम दुखों की जादुई दवा मान कर बरत रहे हैं. जो योग से जुड़ी सेवाओं और सामानों का कारोबार कर रहे हैं, उन्हें भरोसा है कि बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के भीतर ज्यों-ज्यों अधिकाधिक उत्पादन और उपभोग पर जोर बढ़ेगा, लोग त्यों-त्यों उससे तनावग्रस्त होकर निदान के लिए योग को अपनाएंगे. इसलिए योग को निदान ही नहीं, एक पूरी जीवनशैली यानी कपड़े, भोजन, जूते, सैर-सैपाटे के विचार से जोड़ कर इससे जुड़े कारोबार के क्षेत्रों में इजाफा किया जा रहा है.
योग के उत्पादों से अलग, जो शेष काॅरपोरेट जगत है वह अपने कर्मचारियों के लिए योग की कक्षाएं लगा रहा है और अपने दैनंदिन कामकाज के भीतर योगाभ्यास को शामिल कर रहा है, क्योंकि उसे उम्मीद है कि ऐसा करने से कर्मचारियों का स्ट्रेस कम होगा, कार्य-कौशल और उत्पादकता बढ़ेगी, कंपनी का कामकाज ज्यादा सुचारु, संगत और वर्धनशील होगा. कर्मचारीगण योगाभ्यास को अपना रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कुर्सी पर बैठ कर कंप्यूटर के कीबोर्ड के सहारे आठ-दस घंटे काम करने से कंधे, अंगुली, रीढ़ की हड़्डी ही नहीं, बल्कि हृदय की गति और पेट की अंतड़ियों की पाचन-शक्ति पर पड़नेवाले दुष्प्रभावों से निपटने के लिए योग से कारगर कोई औषधि नहीं है.
इन सबसे अलग एक बड़ी दुनिया उन लोगों की भी है, जो कमतर आय-अर्जन की क्षमता के कारण ‘ट्वेंटी फोर इनटू सेवन’ चलनेवाले उत्पादन और उपभोग के चक्र से किंचित दूर है. यह व्यापक जन-समुदाय भी अनिश्चित भविष्य और सिकुड़ते रोजगार के अवसरों के बीच मन और शरीर के रोगों, जिनमें मधुमेह और रक्तचाप से लेकर अवसाद और उन्माद तक शामिल हैं, के उपचार के लिए किसी-न-किसी योग-गुरु या प्रशिक्षक की शरण में जाना चाहता है, जा रहा है.
हालांकि, इस नजरिये से देखें तो योग से चारो तरफ गुंजायमान होता यह बिल्कुल ही नया समय है, जिसमें योग का अर्थ जीवन की भोग-वृत्ति का निषेध और संपूर्ण जगत से अपने आत्म की एकता को महसूस करना नहीं, बल्कि अनवरत भोग के लिए अपने मन और शरीर को तैयार करना और तंदुरुस्त रखना हो गया है.