सबसे खुली अर्थव्यवस्था

रक्षा, नागरिक उड्डयन और फार्मा सहित अर्थव्यवस्था के नौ अहम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के लिए दरवाजे पूरी तरह खोलने का संदेश साफ है- मोदी सरकार भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने और इसके जरिये रोजगार बढ़ाने के वायदों पर अब तेजी से अमल करना चाहती है. प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 22, 2016 6:15 AM
रक्षा, नागरिक उड्डयन और फार्मा सहित अर्थव्यवस्था के नौ अहम क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के लिए दरवाजे पूरी तरह खोलने का संदेश साफ है- मोदी सरकार भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने और इसके जरिये रोजगार बढ़ाने के वायदों पर अब तेजी से अमल करना चाहती है.
प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी ‘मेक इन इंडिया’ मुहिम से बीते दो वर्षों में निवेश बढ़ा जरूर, लेकिन अपेक्षा के अनुरूप नहीं. ऐसे में इस मुहिम की राह आसान करने के उद्देश्य से लिया गया यह फैसला निश्चित रूप से साहसिक और ऐतिहासिक है. खुद पीएम ने कहा कि भारत अब दुनिया की सबसे खुली अर्थव्यवस्था बन गया है. हालांकि, विदेशी कंपनियों के लिए देश के सभी दरवाजे खोलने के मसले पर अर्थशास्त्रियों और राजनीतिक दलों में कभी एक राय नहीं बन पायी है. इस समय भी एक ओर भारतीय उद्योग जगत ने मोदी सरकार के फैसले से बड़े पैमाने पर निवेश और रोजगार बढ़ने की उम्मीद जतायी है.
वहीं दूसरी ओर, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ही सहयोगी संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने रक्षा, रिटेल और फार्मा में एफडीआइ आसान बनाने को आम लोगों के साथ धोखा बताया है. मंच के मुताबिक, इससे बहुत सी घरेलू कंपनियां बंद हो जायेंगी और लोगों की नौकरियां छिनेंगी. उधर, कांग्रेस और वाम दलों सहित कई विपक्षी पार्टियों को यह भी चिंता है कि खासकर रक्षा क्षेत्र में सौ फीसदी विदेशी निवेश से देश की सुरक्षा को खतरा पैदा होगा.
सरकार ने रक्षा क्षेत्र में निवेश के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी लाने की शर्त भी हटा दी है, जबकि अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी ही किसी देश को रक्षा-बाजार में अग्रणी और सरहद की रक्षा में ताकतवर बनाती है. ध्यान दें, तो कई क्षेत्रों में एफडीआइ के खिलाफ ऐसी ही चिंता भाजपा भी जताती रही थी, जब वह विपक्ष में थी. यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में रिटेल में एफडीआइ की सीमा बढ़ाने के खिलाफ भाजपा ने न केवल देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया था, बल्कि संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी दिया था.
तब वरिष्ठ भाजपा नेता सुषमा स्वराज ने जहां मनमोहन सरकार के इस कदम को ‘छोटे दुकानदारों और कारोबारियों के लिए मौत की घंटी’ करार दिया था, वहीं अरुण जेटली ने अपने भाषणों और लेख में खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ के खतरे गिनाये थे. जाहिर है, देशहित से जुड़े इस अहम फैसले पर सरकार को अन्य दलों एवं संगठनों की चिंताओं का संतोषजनक जवाब देना चाहिए. साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे फैसलों से पूरे देश में फैले छोटे कारोबारियों की रोजी-रोटी पर संकट न आने पाये.

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