कोई जिंदगी को कितना भी हसीन क्यों न बनाये, हर किसी की उम्मीदों पर खरा क्यों न उतरे, वह इस दुनिया से जाने के बाद कुछ गिले-शिकवे पीछे छोड़ ही जाता है.कुछ इसी तरह हमारे बीच से दबे कदम चली गयीं बांग्ला सिनेमा की महानायिका पद्मश्री सुचित्र सेन.
उनके लाखों चाहनेवालों और उनके परिजनों के मन में उनकी फिल्म ‘आंधी’ का यह गीत एक कसक बन कर दस्तक दे रहा है : तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं, तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी नहीं.. 1952 में फिल्मों में पदार्पण करनेवालीं सुचित्र सेन को सिनेमा में उनके योगदान के लिए, 1972 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से नवाजा गया था.
हिंदी और बांग्ला सिनेमा में उन्होंने अपनी अदाकारी से चाहनेवालों के दिलों पर राज किया. सुचित्र सेन हमारे बीच न रह कर भी, हमेशा हमारे दिलों में अमर रहेंगी. शत-शत नमन.
आनंद कानू, सिलीगुड़ी