बंदी पर लगे पाबंदी

रोज-रोज के बंद से आम लोग तंग हैं. कभी टीपीसी की बंदी तो तभी माओवादियों की बंदी. इस बंदी ने झारखंड के विकास के द्वार को ही बंद कर रखा है. इसका सबसे ज्यादा नुकसान आम जनों को ही होता है. बंद तो झारखंड में आम बात हो गयी है. कहते हैं धौनी के स्टेट […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 27, 2016 5:47 AM
रोज-रोज के बंद से आम लोग तंग हैं. कभी टीपीसी की बंदी तो तभी माओवादियों की बंदी. इस बंदी ने झारखंड के विकास के द्वार को ही बंद कर रखा है. इसका सबसे ज्यादा नुकसान आम जनों को ही होता है.
बंद तो झारखंड में आम बात हो गयी है. कहते हैं धौनी के स्टेट के नाम से झारखंड को जाना जाता है. लेकिन, अब तो बंदी का उदाहरण झारखंड को दिया जाता है. ट्रकों को जला देना, मजदूरों को पीटना, विकास कार्य रोक देना इनकी आदत-सी हो गयी है. कभी-कभी पुलिस भी इस बंदी को महत्व दे देती है.
हालात तो यह हो गये हैं कि लोग पुलिस से ज्यादा बंदी को महत्व देते हैं. लोग झारखंड में आने से पहले पूछते हैं – बंदी तो नहीं है? सरकार को इस बंदी पर पाबंदी लगाते हुए उपद्रवियों के खिलाफ कदम उठाना चाहिए़
मो अलीशानी, चतरा

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