महत्वपूर्ण सदस्यता

एक जिम्मेवार परमाणु एवं मिसाइल शक्ति-संपन्न देश के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्वीकृति के बावजूद भारत को कुछ महत्वपूर्ण संबंधित समूहों की सदस्यता नहीं मिल सकी है. ऐसे में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में 35वें सदस्य के रूप में भारत के शामिल होने से इस स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है. इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 28, 2016 7:14 AM
एक जिम्मेवार परमाणु एवं मिसाइल शक्ति-संपन्न देश के रूप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक स्वीकृति के बावजूद भारत को कुछ महत्वपूर्ण संबंधित समूहों की सदस्यता नहीं मिल सकी है.
ऐसे में मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (एमटीसीआर) में 35वें सदस्य के रूप में भारत के शामिल होने से इस स्थिति में उल्लेखनीय बदलाव आया है. इस रिजीम की सदस्यता के बाद भारत के लिए परमाणु अप्रसार के नियमों के तहत उच्च-स्तरीय और अत्याधुनिक मिसाइल तकनीक का आयात-निर्यात करना अधिक आसान हो जायेगा. साथ ही, हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए भी यह बहुत लाभदायक साबित हो सकता है.
हालांकि, भारत 2008 से ही अपनी इच्छा से इस रिजीम के कायदों का पालन कर रहा है, जो उसकी दावेदारी का ठोस आधार भी बना. यह रिजीम एक स्वैच्छिक बहुपक्षीय नियंत्रण समूह है, जिसका उद्देश्य 500 किलोभार को 300 किमी से अधिक ले जाने की क्षमता रखनेवाले मिसाइलों और ड्रोन/स्वचालित हवाई वाहनों के प्रसार को रोकना है. अप्रैल, 1987 में स्थापित इस रिजीम ने महाविनाश के हथियारों के प्रसार को रोकने की दिशा में सफलतापूर्वक काम किया है.
हालांकि चीन इस समूह का औपचारिक सदस्य नहीं है, पर 1991 में उसने रिजीम के मूल नियमों को मानने पर सहमति दे दी थी. कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि एमटीसीआर में चीन और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत के शामिल होने के मसले पर भारत और चीन परस्पर कूटनीतिक सहयोग कर सकते हैं.
रिजीम की सदस्यता से एनएसजी, आस्ट्रेलिया ग्रुप और वाजनर व्यवस्था में भारत के शामिल होने की संभावनाएं भी बढ़ी हैं. उल्लेखनीय है कि यह रिजीम पहली बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रक समूह है, जिसने अपने दरवाजे भारत के लिए खोले हैं. बहरहाल, एमटीसीआर की सदस्यता को एनएसजी या अन्य समूहों की सदस्यता के मामले से सीधे जोड़ कर देखना उचित नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय संगठनों और समूहों के अपने-अपने निर्दिष्ट उद्देश्य और कार्य-क्षेत्र होते हैं. कूटनीति और राजनीति के संदर्भ भी संगठनों के लिहाज से बदलते हैं. जाहिर है, एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल पाने और एमटीसीआर की सदस्यता मिल जाने को सफलता या असफलता के पैमाने से देखना उचित नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय रंगमंच पर कूटनीति की जटिलताओं के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराना देशों की दीर्घकालिक प्रयासों का नतीजा होता है. एमटीसीआर के संस्थापक सदस्य देशों की संख्या महज सात थी जो अब 35 हो गयी है. एमटीसीआर की सदस्यता की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद अब भारत के सामने चुनौती है कि वह अमेरिकी जनप्रतिनिधियों को ड्रोन के निर्यात के लिए तैयार करे, जो हमारी सुरक्षा जरूरतों के लिए महत्वपूर्ण है.

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