प्रधानमंत्री की प्रतिबद्धता
नजरिया साफ हो तो राह भी सूझती है, मंजिल भी तेजी से नजदीक आती दिखती है. और नजरिया साफ होना इस बात पर निर्भर करता है कि मंजिल या भविष्य को लेकर आप कितने आशावादी हैं. शासन के दो साल पूरे कर चुकी एनडीए सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को यही दो बातें […]
नजरिया साफ हो तो राह भी सूझती है, मंजिल भी तेजी से नजदीक आती दिखती है. और नजरिया साफ होना इस बात पर निर्भर करता है कि मंजिल या भविष्य को लेकर आप कितने आशावादी हैं. शासन के दो साल पूरे कर चुकी एनडीए सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी की कार्यशैली को यही दो बातें विशिष्ट बनाती हैं. बीते दो वर्षों में केंद्र सरकार ने देश और विदेश के मोर्चे पर जो ऊर्जा दिखायी है, उसके पीछे भारत के भावी स्वरूप को लेकर प्रधानमंत्री के साफ नजरिये और आशावाद की ही ताकत है.
मोदी के नजरिये की स्पष्टता उनकी बातों की बेबाकी में भी साफ पढ़ी जा सकती है. एक अंगरेजी न्यूज चैनल को दिया गया प्रधानमंत्री का विशेष इंटरव्यू भी इस बात की पुष्टि करता है. इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने अपने शासन की फिलॉसफी समझाते हुए कहा है- ‘विकास को लेकर मेरा मापदंड बेहद सीधा है कि गरीबों में भी सबसे गरीब व्यक्ति को विकास से कैसे फायदा पहुंचाया जाये. मेरे आर्थिक एजेंडे के केंद्र में गरीब व्यक्ति है.
गरीब को इस तरह मजबूत बनाना होगा कि वह गरीबी को हराने की इच्छाशक्ति रखे.’ और इसी नजरिये के अनुरूप उनका मानना है कि ‘जनधन, प्रधानमंत्री फसल बीमा, स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी स्कीमें गरीबों को मजबूत करने और जीवन की गुणवत्ता बदलने के लिए हैं. जनधन योजना का मकसद सिर्फ गरीब का खाता खुलवाना नहीं है, बल्कि उसे यह अहसास दिलवाना भी है कि वह देश के इकोनॉमिक सिस्टम का हिस्सा है. जिस बैंक को कभी वह दूर से देखा करता था, अब उसमें दाखिल हो सकता है.’ यानी एक तरफ सिस्टम में गरीब को दाखिल करना, तो दूसरी तरफ सिस्टम की बढ़वार बनाये रखना- प्रधानमंत्री की कार्ययोजना के ये दो छोर हैं. सिस्टम की बढ़वार की जरूरत को ही आगे रख कर उन्होंने कहा कि एक ऐसे देश में जहां 80 करोड़ लोग 35 साल या इससे कम उम्र के हैं, नौकरियों की बेहद मांग होनी स्वाभाविक है और नौकरियां तभी आयेंगी जब निवेश आयेगा और उसका इस्तेमाल इंफ्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में होगा.
उन्होंने बताया कि मुद्रा योजना के अंतर्गत छोटे-मोटे स्वरोजगार में लगे लोगों को तकरीबन सवा लाख करोड़ रुपये बिना गारंटी के इसी सोच के साथ दिये गये हैं कि छोटे व्यवसायी और कारोबारी अपना काम फैलायेंगे, तो एक की जगह दो और दो की जगह चार लोगों को रोजगार मिलना शुरू होगा.
ऐसे में अचरज नहीं कि कार्यकाल के दो साल पूरे होने पर मोदी सरकार ने नारा गढ़ा है- ‘देश बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है.’ इस नारे को सुन कर उम्मीद बंधती है कि बदलना बेहतरी के लिए हो रहा है और आगे बढ़ना देशों की पांत में भारत को अग्रणी बनाने के लिए! आगे बढ़ने की राह आसान बने, इसके लिए वैश्विक मंच पर देश की साख लगातार बढ़ना और सरहद पर अमन कायम होना जरूरी है. ऐसे में भारत को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) की सदस्यता मिलना महत्वपूर्ण उपलब्धि है.
प्रधानमंत्री ने इसका कुछ श्रेय पिछली सरकारों को भी देते हुए इंटरव्यू में बड़ी बेबाकी से स्वीकार किया कि ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सीट और एससीओ, एमटीसीआर व एनएसजी की सदस्यता पाने की कोशिशें काफी अरसे से हो रही थीं, चाहे कोई भी सरकार सत्ता में रही हो. हमारी सरकार उसी सिलसिले को आगे बढ़ा रही है और हमारी कामयाबी यह है कि हमने एससीओ और एमटीसीआर की सदस्यता हासिल कर ली है.’ दूसरी ओर, सीमा पर पाक की नापाक हरकतों के लिए जहां उन्होंने दो-टूक लहजों में चेतावनी दी, वहीं इस हकीकत को भी स्वीकार किया कि पाकिस्तान में चुनी हुई सरकार से बात की जाये या दूसरे तत्वों से, यह तय नहीं है.
हाल के दिनों में भाजपा के कुछ बड़बोले नेता जिस तरह से अनर्गल प्रलाप के जरिये खुद को सरकार और पार्टी के नियंत्रण से परे दिखाने की कोशिश करते रहे हैं, उस पर प्रधानमंत्री ने देरी से ही सही, लेकिन स्पष्ट संदेश दिया है कि ‘प्रचार पाने की लालसा से की गयी बयानबाजी से कभी भी देश का भला नहीं होगा.
लोगों को बहुत जिम्मेवारी के साथ व्यवहार करना चाहिए.’ हालांकि प्रधानमंत्री की इस नेक सलाह का उनकी पार्टी के नेताओं-सांसदों पर कितना असर होगा, यह तो आनेवाला वक्त ही बतायेगा. यह भी विकास को लेकर प्रधानमंत्री के स्पष्ट नजरिये का ही परिचायक है कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में सांप्रदायिक एजेंडे के हावी होने की आशंकाओं को खारिज करते हुए उन्होंने कहा, ‘यह मेरी प्रतिबद्धता है कि ऐसा नहीं होगा. मेरा विश्वास है कि सभी समस्याओं का हल विकास के जरिये ही किया जा सकता है.’ हालांकि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं और भगवा वस्त्रधारी सांसदों ने हाल में जैसे बयान दिये हैं, उनसे प्रदेश में चुनाव से पहले सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिशें साफ दिखती हैं. फिलहाल, उम्मीद करनी चाहिए कि विकसित भारत को लेकर प्रधानमंत्री का स्पष्ट नजरिया इन नेताओं को भी सही राह दिखायेगा.