‘मिसाइल क्लब’ का सच

‘एनएसजी’ सदस्यता के लिए बावला हुआ पाकिस्तान क्यों ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता के वास्ते चुप लगा गया? जरा सोचिए. भारत ने जून, 2015 के पहले हफ्ते ‘मिसाइल क्लब’ का सदस्य बनने के लिए अर्जी दी थी. इसके एक साल बाद 27 जून, 2016 को विदेश सचिव एस जयशंकर ने ‘मिसाइल टेक्नोलाॅजी कंट्रोल रिजिम’(एमटीसीआर) की सदस्यता वाले […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2016 1:41 AM

‘एनएसजी’ सदस्यता के लिए बावला हुआ पाकिस्तान क्यों ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता के वास्ते चुप लगा गया? जरा सोचिए. भारत ने जून, 2015 के पहले हफ्ते ‘मिसाइल क्लब’ का सदस्य बनने के लिए अर्जी दी थी. इसके एक साल बाद 27 जून, 2016 को विदेश सचिव एस जयशंकर ने ‘मिसाइल टेक्नोलाॅजी कंट्रोल रिजिम’(एमटीसीआर) की सदस्यता वाले पत्र पर फ्रांस के दूत अलेक्सांद्र जिगलर, नीदरलैंड के राजदूत अलफोंसस स्टोलिंगा और लक्जमबर्ग की उप राजदूत मिस लाउरे ह्बर्टी की मौजूदगी में हस्ताक्षर किये. अब भारत ‘एमटीसीआर’ का 35वां सदस्य बन गया है.

हमें बल्ले-बल्ले करने से पहले ‘एमटीसीआर’ के मायने और उसके ‘साइड इफेक्ट’ को समझना चाहिए. बुनियादी बात है, ‘एमसीटीआर’ के सदस्य देश 300 किमी की रेंज से ज्यादा और 500 किग्रा से अधिक भार के मिसाइल नहीं बना सकते. यानी, भारत अब हजारों किमी की रेंज वाले अंतरद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) नहीं बना सकेगा. चीन-पाकिस्तान के ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता मेें दिलचस्पी न दिखाने की मुख्य वजह यही है.

अप्रैल 1987 में गठित ‘एमसीटीआर’ के सदस्य जिस बैलिस्टिक मिसाइल अप्रसार को मानते हैं, उसे ‘हेग कोड आॅफ कंडक्ट’ (हेग आचार संहिता) कहते हैं. अमेरिका व यूरोप के ताकतवर देश चाहते थे कि ‘एमसीटीआर’ के बहाने उन देशों को रोका जाये, जो अंतरद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल की रेंज को बढ़ाने और ड्रोन के प्रसार में लगे हुए हैं. उनमें चीन, भारत, ईरान, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया, इजराइल निशाने पर थे. हम ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता के बदले इजराइल और चीन की नीति क्यों नहीं अपना सकते थे? इजराइल, रोमानिया, स्लोवाक रिपब्लिक ने ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता नहीं ली. बस, इतना माना है कि प्रक्षेपास्त्र निर्यात के जो नियम हैं, उसका वे पालन करेंगे.

पिछले एक दशक का रिकाॅर्ड देखें, तो चीन, पाकिस्तान, इजराइल, ईरान, उत्तर कोरिया जैसे देशों ने लगातार बैलिस्टिक मिसाइलों की रेंज बढ़ायी है. अमेरिका के पास 13 हजार किमी की दूरी तक की अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) है. रूस के पास अधिकतम 12 हजार 600 किमी की रेंज का ‘आइसीबीएम’ है. इजराइल ‘जेरिचो-3’ के बूते 11 हजार 500 किमी की मारक क्षमता रखता है. चीन ने 15 हजार किमी तक रेंजवाली मिसाइल ‘डीएफ-41’ हासिल कर ली है, पर उसकी भूख मिटी नहीं है. चीन, मिसाइलों की मारक क्षमता बढ़ाता जा रहा है, साथ-साथ पाकिस्तान जैसे मित्र के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम में सहयोग कर रहा है.

31 जनवरी, 2015 को भारत ने ‘अग्नि-पांच’ का तीसरा परीक्षण किया था. इसकी मारक क्षमता आठ हजार किमी तक है. इसके कुछ महीने बाद 15 मई, 2016 को भारत ने ‘सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल’ का सफल परीक्षण किया था. भारत का यह प्रक्षेपास्त्र दुश्मन के मिसाइल को सीमा में घुसने से पहले उसे ध्वस्त करने में सक्षम है. अमेरिका, इजराइल और रूस के बाद भारत अब दुनिया का चौथा देश है, जिसके पास मिसाइल रक्षा कवच प्रणाली है. अब सवाल है कि क्या ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता लेने में भारत ने जल्दबाजी दिखा दी, अथवा ओबामा के दबाव में यह सब हुआ? पिछले साल इटली ने ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता को लेकर भारत की शिकायत की थी, मगर इस बार अमेरिका ने आंख दिखायी, तो इटली को चुप हो जाना पड़ा.

पिछले साल की शुरुआत में ‘अग्नि-पांच’ मिसाइल परीक्षण की सफलता को देख कर पाकिस्तान और चीन में घबराहट थी कि भारत की मारक क्षमता बढ़ती जा रही है. ‘डीआरडीओ’ में ‘आर्मामेंट रिसर्च बोर्ड’ के अध्यक्ष एसके सालवान ने अप्रैल 2016 में बयान दिया था कि अगली तैयारी 10 हजार किमी तक मार करनेवाली अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण की है. इस बयान से अमेरिका और यूरोपीय देशों के कान खड़े हुए थे. भारत से सोलह हजार किमी की दूरी पर बसा अमेरिका कभी नहीं चाहेगा कि एशिया में चीन की तरह एक और शक्ति ‘इंटर कांटिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल’ की ताकत के साथ खड़ी मिले. उससे पहले भारत को ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता के बहाने नकेल पहनाना जरूरी हो गया था. बहुत कम लोग मानेंगे कि अति उत्साह में भारत के ‘आइसीबीएम’ कार्यक्रम की बलि चढ़ गयी. ‘एमसीटीआर’ की सदस्यता के लिए थोड़ा रुकना चाहिए था. कम-से-कम अगले टेस्ट तक, जिसके बारे में ‘डीआरडीओ’ में ‘आर्मामेंट रिसर्च बोर्ड’ के अध्यक्ष एसके सालवान ने बयान दिया था!

पुष्परंजन

ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक

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