अस्वाभाविक स्थिति में मौत होने के बाद शव का पोस्टमार्टम कराया जाना सामान्य प्रक्रिया है. पर, अगर किसी एक शव के पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी करने में 20 घंटे से अधिक का वक्त लग जाता है, तो यह बहुत जरूरी हो जाता है कि प्रशासनिक कार्यशैली का पोस्टमार्टम भी अवश्य कर लिया जाये.
जर्मन महिला इनग्रीड के साथ भारत आये उनके पति की भागलपुर में अचानक मौत हो गयी. उनके शव के पोस्टमार्टम में 20 घंटे से अधिक समय लगना और कागजी प्रक्रिया पूरी करने के नाम पर पेच-प्रपंच से खिन्न हो इनग्रीड भागलपुर में ही पति का शव छोड़ कर स्वदेश लौट गयीं. समाचार पत्रों में जब यह खबर छपी, तो मंगलवार को (मौत के 42 घंटे बाद) उनके पति के शव को जर्मनी भेजा गया. इनग्रीड के जर्मन वापस जाने के निर्णय को सामान्य परिघटना के रूप में नहीं लेना चाहिए. यह अत्यंत गंभीर बात है. हमारी कार्यशैली पर सवाल है.
भारत में विधवा हो चुकी इनग्रीड के मिजाज से स्पष्ट है कि कैसे उनका समाज हमारी तुलना में समय को अधिक महत्व देता है. उनके समाज में अनुशासन का मोल क्या है, यह बात समझने के लिए इनग्रीड का रोष काफी है. सवाल है कि क्या जिन लोगों को इनग्रीड के पति की लाश के पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूरी करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी होगी, उन्हें पता नहीं था कि विदेशी होने के चलते उनका मामला बाकी मामलों से अलग था? उनकी मौत के बाद इनग्रीड को एक महिला होने के नाते हमसे सहानुभूति और तत्परता की अपेक्षा क्यों नहीं रखनी चाहिए? यह तो हमारा नैतिक और सामाजिक दायित्व भी था कि हम विदेशी मेहमान और महिला होने के चलते इनग्रीड का खास ध्यान रखते.
अगर ऐसा करने में वैधानिक व प्रशासनिक प्रावधान आड़े आ रहे हों, तो भी इस मामले से सबक सीखना चाहिए. ऐसी कानूनी व प्रशासनिक अड़चनें दूर करने के लिए जरूरी कदम उठाये जाने चाहिए. पर, अपने परिजनों की मौत का दंश ङोलते लोगों को कागजी खानापूर्ति के नाम पर और दंश दिया जाये, ऐसी स्थिति स्वीकार्य नहीं होनी चाहिए. इसलिए यह और भी जरूरी है कि हम अपने कामकाज के तौर-तरीके का भी शीघ्रता से पोस्टमार्टम कर इसमें आयी खामियों का पता लगायें, ताकि उन्हें अति शीघ्र दूर भी किया जा सके.