24 घंटे का बाजार
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने व्यावसायिक परिसरों, दुकानों, रेस्त्रां, सिनेमाघरों, बैंकों आदि को चौबीसों घंटे और सालोंभर खोलने की अनुमति संबंधी कानून बनाने पर विचार-विमर्श किया है. प्रस्तावित विधेयक पर सलाह के लिए एक मसौदा राज्यों को भेजा जा रहा है. हालांकि, इसकी हैसियत सिर्फ दिशा-निर्देश की होगी और इसे लागू करना राज्यों के अधिकार-क्षेत्र में होगा. […]
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने व्यावसायिक परिसरों, दुकानों, रेस्त्रां, सिनेमाघरों, बैंकों आदि को चौबीसों घंटे और सालोंभर खोलने की अनुमति संबंधी कानून बनाने पर विचार-विमर्श किया है.
प्रस्तावित विधेयक पर सलाह के लिए एक मसौदा राज्यों को भेजा जा रहा है. हालांकि, इसकी हैसियत सिर्फ दिशा-निर्देश की होगी और इसे लागू करना राज्यों के अधिकार-क्षेत्र में होगा. प्रस्तावित कानून के अंतर्गत फैक्टरियों को छोड़ कर अन्य सभी कारोबार व व्यावसायिक गतिविधियां संचालित होंगी, जो फैक्टरी एक्ट के दायरे से बाहर हैं तथा जिनके कर्मचारियों की संख्या दस या अधिक है.
आर्थिक मामलों के कई जानकारों और व्यावसायियों ने आशा जतायी है कि इससे कारोबार बढ़ने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे. साथ ही, इससे व्यावसायिक गतिविधियों के नियमन की विसंगतियों को दूर करने में मदद मिलेगी. हालिया वर्षों में जीवनशैली और उपभोग के स्वरूप में बदलाव ने ऐसी पहल की जरूरत पैदा की है. इस कानून की महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इसमें महिलाओं को रात में भी काम करने की अनुमति दी गयी है. सर्वे बताते रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विस्तार के बावजूद श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी कम हो रही है.
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के हालिया अध्ययन के अनुसार, 2004 से 2011 के बीच आर्थिक वृद्धि की दर कमोबेश सात फीसदी रही, पर इस अवधि में श्रमशक्ति में महिलाओं की भागीदारी 31 फीसदी से गिर कर 24 फीसदी के आसपास आ गयी. संगठन ने 2013 में कामकाजी महिलाओं के अनुपात के लिहाज से भारत को सबसे निचले 11 देशों में रखा था. ऐसे में महिलाओं को रात में काम करने की अनुमति देना एक व्यावहारिक कदम कहा जा सकता है. लेकिन, इसके लिए उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और जरूरी सुविधाओं के साथ-साथ कार्यस्थल पर सकारात्मक माहौल बनाने को प्राथमिकता देना जरूरी होगा.
फिलहाल ऐसा नहीं हो पाने तथा सामाजिक संकीर्णताओं के कारण ही श्रमशक्ति में महिलाओं की संख्या पर्याप्त नहीं है, जो कि दीर्घकालिक आर्थिक विकास के लिहाज से शुभ संकेत नहीं है. हालांकि, श्रम मंत्रालय ने महिलाओं की सुरक्षा और सुविधाओं का ध्यान रखने का भरोसा दिया है. उम्मीद है कि सरकारें इस आश्वासन को वास्तविक रूप देने के लिए हरसंभव प्रयास करेंगी.