कब रुकेगी ये दास्तां?

इनसानों की रूह में हैवानियत हावी होती जा रही है. लोग प्रेम रस से परे नफरत की एक अलग दुनिया बसाने चले हैं. ऐसी दुनिया जहां इनसान तो होंगे, पर शायद इनसानियत विदा हो चुकी होगी. जरूरत सिर्फ खूनी रंजिशों को आतंकी करतूत करार देने का नहीं, बल्कि उन वजहों को तलाशने का है जो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 4, 2016 3:20 AM
इनसानों की रूह में हैवानियत हावी होती जा रही है. लोग प्रेम रस से परे नफरत की एक अलग दुनिया बसाने चले हैं. ऐसी दुनिया जहां इनसान तो होंगे, पर शायद इनसानियत विदा हो चुकी होगी. जरूरत सिर्फ खूनी रंजिशों को आतंकी करतूत करार देने का नहीं, बल्कि उन वजहों को तलाशने का है जो समाज में भ्रामक व विनाशक परिस्थितियों को पनपने का मौका देती हैं. लगभग हर हफ्ते इस धरा का कोई न कोई हिस्सा रक्तरंजित होता रहा है.
बीते दिनों से आतंकी हमलों की संख्या में लगातार तेजी हो रही है. आंकड़ों की बानगी को तफसील से समझें तो डर लगने लगेगा. वकत का तकाजा यह है कि समूची दुनिया के अमनपसंद लोग प्रबल इच्छाशक्ति से इस भयानक मुसीबत का सामना करें.
आदित्य शर्मा, दुमका

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