14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

धनरोपनी महोत्सव का ख्याल

गिरींद्र नाथ झा ब्लॉगर एवं किसान पिछले तीन सालों से सक्रिय रूप से किसानी कर रहा हूं. इस दौरान कई बार ख्याल आया कि क्यों न धनरोपनी महोत्सव मनाया जाये. ऐसे लोगों को खेत में उतारा जाये, जो हैं तो माटी से दूर, लेकिन जिनका मन माटी से जुड़ा है. खेत की तरह ही मुझे […]

गिरींद्र नाथ झा

ब्लॉगर एवं किसान

पिछले तीन सालों से सक्रिय रूप से किसानी कर रहा हूं. इस दौरान कई बार ख्याल आया कि क्यों न धनरोपनी महोत्सव मनाया जाये. ऐसे लोगों को खेत में उतारा जाये, जो हैं तो माटी से दूर, लेकिन जिनका मन माटी से जुड़ा है. खेत की तरह ही मुझे इंटरनेट कि दुनिया से लगाव है. खासकर वेब की दुनिया के उन अड्डों को खंगालना मुझे अच्छा लगता है, जिसे वे लोग चला रहे हैं, जो अपनी तमाम व्यस्तताओं के बीच अपने शौक को बचाये रखने के लिए कुछ रचनात्मक काम कर रहे हैं. धनरोपनी महोत्सव में ऐसे ही लोगों को शामिल करने का मन है. खेती बाड़ी के साथ लिखते हुए ऐसे कई लोगों के संपर्क में आया, जिन्हें गाम-घर की दुनिया से खूब लगाव है.

पूर्णिया में पिछले तीन साल से खेती बाड़ी में सक्रिय रहने की वजह से अलग-अलग क्षेत्र के कई लोगों से मुलाकात होती रही है. एक किसान के तौर पर मैं उन लोगों को खोजता हूं, जिनका मन गाम-घर की दुनिया में रमता है. इसी कड़ी में मेरी मुलाकात एक युवा आइपीएस अधिकारी निशांत कुमार तिवारी से होती है.

निशांत को फोटोग्राफी का शौक है, वे लेखक हैं, जिनकी किताबें ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित हो चुकी हैं, वे ब्लॉग भी लिखते हैं, लेकिन जिस चीज की वजह से मैं उनकी तरफ खींचा चला गया, वह है उनका ‘गांव कनेक्शन’. रविवार को छुट्टी के दिन उनका गांव के समीप दौरा था.

दोपहर में काम के बाद उनका फोन आया कि वे गांव घूमना चाहते हैं. वे अपने तमाम व्यस्तताओं से समय निकाल कर गांव पहुंचते हैं और अपने कैमरे की सहायता से घंटों प्रकृति के संग गुफ्तगू करते हैं. उन्हें देख कर मैं उनके प्रकृति-प्रेम में डूब जाता हूं.

मुझे अपने प्रिय फणीश्वर नाथ रेणु याद आने लगते हैं. उनके पात्र सुरपति राय और भवेशनाथ याद आने लगते हैं. परती परिकथा में रेणु लिखते हैं कि भवेशनाथ परती के विभिन्न रूपों का अध्ययन करने आये हैं. कैमरे का व्यू फाइंडर उनकी अपनी आंख है. भवेश मन ही मन सोचते हैं, तीस साल ! बस , तीस साल और! इसके बाद तो सारी धरती इंद्रधनुषी हो जायेगी. तब तक रंगीन फोटोग्राफी का भी विकास हो जायेगा. झक-झका-झक-झका!

निशांत तिवारी जब अपने कैमरे से खेत-खलिहान, प्रवासी पक्षियों के झुंड और पुराने पेड़ में पक्षियों के घोंसलों को कैद कर रहे थे, उस वक्त मेरे मन में रेणु की लिखी बातें चल रही थी, जैसे ही वर्तमान में दाखिल होता हूं, तो लगता है- हां, रेणु ने ठीक ही कहा था, गांव से जुड़े लोग समय निकाल कर जरूर आयेंगे.

इस तरह के लोगों से लंबी बातें करते हुए हम अंचल के और करीब आ जाते हैं. बाबूजी के फोटो एलबम पलटते वक्त एक तसवीर हाथ आयी थी. वह तसवीर एक खेत की है, जिसमें बाबा नागार्जुन हैं, फणीश्वर नाथ रेणु हैं और फारबिसगंज के बिरजू बाबू हैं. सबसे मजेदार बात यह है कि सभी धनरोपनी कर रहे हैं. सभी के पैर कीचड़ से सने हैं. यह तसवीर देख कर इस किसान का मन एक बार फिर से खेत में एक उत्सव मनाने के लिए तड़प उठता है.

पिछले साल एक अमेरिकी जोड़ा डेविड और लिंडसे फ्रेनसेन गांव आया था. उस वक्त खेत में मक्का था. धनरोपनी के बारे में हमने जब उन्हें बताया, तो वे भी इसे लेकर उत्सुक दिखे. ग्राम्य जीवन ऐसी ही छोटी-छोटी चीजों में सुख तलाशता आया है.

निशांत तिवारी जैसे लोगों का गांव के प्रति लगाव को देख कर एक उम्मीद बंधती है कि ग्राम्य जीवन को एक नया रूप जरूर मिलेगा. ऐसे में एक अलग अंदाज में धनरोपनी महोत्सव तो बनता ही है. इस आद्रा नक्षत्र के बाद खेत के कादो में हम जरूर करेंगे धनरोपनी महोत्सव. आप आ रहे हैं न!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें