कालेधन पर सख्ती का असर

भारतीय धनकुबेरों का विदेशों में जमा कालाधन हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के शुभचिंतकों के लिए बड़ी चिंता का सबब रहा है. इसकी एक झलक 2014 के लोकसभा चुनावों में भी दिखी, जब विदेशों से कालाधन वापस लाने के नरेंद्र मोदी के वादे ने मतदाताओं को रिझाने में बड़ी भूमिका निभायी. अपने दो वर्षों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 5, 2016 6:29 AM
भारतीय धनकुबेरों का विदेशों में जमा कालाधन हाल के वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के शुभचिंतकों के लिए बड़ी चिंता का सबब रहा है. इसकी एक झलक 2014 के लोकसभा चुनावों में भी दिखी, जब विदेशों से कालाधन वापस लाने के नरेंद्र मोदी के वादे ने मतदाताओं को रिझाने में बड़ी भूमिका निभायी.
अपने दो वर्षों के कार्यकाल में मोदी सरकार द्वारा कालेधन के खिलाफ में विभिन्न स्तरों व मंचों पर की गयी पहल के कुछ नतीजे अब सामने आने लगे हैं. खबर आयी है कि स्विट्जरलैंड के बैंकों में 2015 के अंत में जिन देशों के नागरिकों का सर्वाधिक धन जमा था, भारत उनमें तेजी से नीचे खिसक कर 75वें स्थान पर पहुंच गया है.
इस सूची में भारत 1996 से 2007 तक शीर्ष 50 देशों में, जबकि 2014 में 61वें स्थान पर था. स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक- स्विस नेशनल बैंक- की ओर से जारी ताजा आंकड़ों के मुताबिक, 2015 के अंत में स्विस बैंकों में विदेशियों के कुल करीब 98 लाख करोड़ रुपये जमा थे, जिनमें से करीब 25 फीसदी यूके, जबकि 14 फीसदी अमेरिकी नागरिकों के थे. यहां जमा भारतीयों का धन 33 फीसदी कम होकर 8,392 करोड़ रुपये रह गया है, जो स्विस बैंकों में जमा विदेशी नागरिकों के कुलधन का 0.1 फीसदी है. भारत इस सूची में अब न केवल ब्रिक्स देशों, बल्कि पाकिस्तान से भी पीछे हो गया है.
दरअसल, कालाधन जमा करनेवालों के लिए स्विट्जरलैंड दुनिया का सबसे सुरक्षित पनाहगाह माना जाता रहा है. हालांकि, हाल के वर्षों में कई देश अपने नागरिकों के स्विस बैंकों में जमा धन का ब्योरा उपलब्ध कराने के लिए स्विट्जरलैंड सरकार पर दबाव बनाते रहे हैं. मोदी सरकार ने भी स्विट्जरलैंड के साथ सूचनाओं के आदान-प्रदान पर विशेष ध्यान दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्विट्जरलैंड के राष्ट्रपति जोहान श्नाइडर अम्मान के बीच जेनेवा में गत 6 जून को हुई बैठक में भी कालेधन के खिलाफ लड़ाई में सहयोग पर बात हुई. इसके एक हफ्ते बाद स्विट्जरलैंड का प्रतिनिधिमंडल भारतीय वित्त मंत्रालय के अधिकारियों से मिलने भारत आया. इस मुलाकात के बाद दोनों देशों की ओर से एक महत्वपूर्ण उम्मीद जतायी गयी कि उनके बीच कालेधन के मामले में सूचनाओं के स्वतः आदान-प्रदान की शुरुआत 2018 से हो सकती है.
अब भारतीयों का कालाधन स्विट्जरलैंड से निकल कर किसी और देश में न जमा हो, या फिर किसी अघोषित रास्ते से निवेश के रूप में भारत आकर सफेद धन न बन जाये, इसके प्रति भी भारत सरकार और वित्तीय एजेंसियों को सतत चौकस रहना चाहिए.

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