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एनएसजी : पहल और जोखिम

विदेश नीति का निर्माण सतत जारी रहनेवाली प्रक्रिया का हिस्सा है. सामान्यतया इसे पक्षपाती राजनीति का विषय नहीं होना चाहिए. लेकिन, लोकतांत्रिक देश अपनी विदेश नीति की दशा और दिशा का विश्लेषण करना चाहिए. तो क्या भारत को एनएसजी का सदस्य बनने की कोशिश करनी चाहिए? मेरा जवाब शर्त आधारित ‘हां’ है. सदस्य बनने के […]

विदेश नीति का निर्माण सतत जारी रहनेवाली प्रक्रिया का हिस्सा है. सामान्यतया इसे पक्षपाती राजनीति का विषय नहीं होना चाहिए. लेकिन, लोकतांत्रिक देश अपनी विदेश नीति की दशा और दिशा का विश्लेषण करना चाहिए. तो क्या भारत को एनएसजी का सदस्य बनने की कोशिश करनी चाहिए? मेरा जवाब शर्त आधारित ‘हां’ है. सदस्य बनने के लिए भारत की हालिया कोशिश क्या इस लक्ष्य को हासिल करने का सही रास्ता है? मेरा जवाब ‘नहीं’ में है.

यदि एनएसजी की सदस्यता का मकसद भारत का कूटनीतिक स्तर पर मूल्यांकन करना होता, तो प्रधानमंत्री द्वारा किये गये आयरलैंड, मैक्सिको और स्विट्जरलैंड जैसे देशों के तूफानी दौरों के महत्व का आकलन किया जा सकता है. लेकिन, शुरुआत से ही यदि जिसका नतीजा संदेहास्पद समझा गया था, तो हमारे प्रधानमंत्री को इसकी सदस्यता हासिल करने के लिए इस मसले को राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का विषय बनाने और इस दिशा में आगे बढ़ने की क्या जरूरत थी?

अमेरिका के साथ 2008 में सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर होने के बाद से ही एनएसजी द्वारा भारत को अनेक छूट हासिल है. भले ही हमारे सभी न्यूक्लियर फैसिलिटीज न्यूक्लियर सुरक्षा के दायरे में नहीं आते हैं, इसके बावजूद हमें सिविलियन न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और उपकरणों के व्यापार में शामिल होने की मंजूरी मिल गयी थी. आनन-फानन में बनायी गयी योजना, जिसकी सफलता तय नहीं थी, का एक अन्य पहलू यह है कि 2008 में एनएसजी देशों द्वारा भारत को अपवाद के तौर पर जो छूट मुहैया करायी गयी थी, उन पर भी अब ग्रहण लगता दिख रहा है.

मैं इसकी टाइमिंग, मान्यताओं और मेथोडोलॉजी को लेकर ज्यादा गंभीर हूं. यह समय गलत था, क्योंकि ऐसा कोई संकेत नहीं था कि चीन इसमें नहीं टपकेगा. चीन के साथ हमारे हालिया संबंध ज्यादा उत्साहजनक नहीं हैं. जिस वक्त शी जिनपिंग भारत में हमारे अतिथि के रूप में आये थे, उस वक्त भी चीन की ओर से हमारे क्षेत्र में घुसपैठ की बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया था. अरुणाचल प्रदेश के लोगों के लिए चीन अब भी नत्थी वीजा की जिद पर अड़ा है. मसूद अजहर जैसे अातंकी के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में होनेवाली कार्रवाई में वह रोड़े अटका रहा है. पाक अधिकृत कश्मीर में वह सड़क निर्माण समेत बुनियादी ढांचों के विकास में व्यापक पैमाने पर निवेश कर रहा है. हमें ऐसा क्यों सोचना चाहिए कि एनएसजी की सदस्यता के मामले में चीन हमारे अनुरोध को स्वीकार कर लेगा, जबकि पाकिस्तान हमारे इस कदम का जोर-शोर से विरोध करने में जुटा था और वह स्वयं इसकी सदस्यता हासिल करना चाहता था?

यह मान लेना कि अमेरिका इस डील में हमारे लिए मददगार होगा, सही नहीं था. जनवरी, 2015 में बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बातचीत के दौरान भले ही स्नेह से उन्हें उनके पहले नाम ‘बराक’ से रिकॉर्ड 19 बार पुकारा हो, लेकिन हमारे प्रधानमंत्री को यह समझना चाहिए कि उस दौरान ओबामा का कार्यकाल आखिरी दौर में चल रहा था. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति की सीमाओं को आप समझ सकते हैं.

यह मान लेना गलत था कि हमारा विरोध करनेवाला चीन अकेला होगा. 48 देशों के समूह में करीब सात देशों (चीन के मुताबिक नौ देशों) ने हमारी उम्मीदवारी को रोकने का काम किया, जिसमें स्विट्जरलैंड भी शामिल था, जहां हाल ही में माेदी गये थे. एनएसजी एक क्लब है. इसकी सदस्यता के नियम हैं. इनमें से एक यह है कि उस देश को पक्षपाती एनपीटी पर हस्ताक्षर किये होना चाहिए. चूंकि भारत के लिए एनपीटी पर हस्ताक्षर का कोई सवाल नहीं है, इसलिए सदस्यता के हमारे आवेदन को पहले सदस्य देशों द्वारा तय किये गये मानदंडों पर खरा उतारने की जरूरत थी. भारत को इसमें अपवाद के तौर पर शामिल करते हुए पाकिस्तान को इससे दूर रखा जाये, इसके लिए दीर्घकालीन कूटनीति अपनानी होती है.

मैं नहीं मानता कि भारत को चीन के समक्ष घुटने टेकने की जरूरत है. अन्य देश उसी देश की इज्जत करते हैं, जो अपनी इज्जत खुद करता है. अमेरिका और जापान के प्रति हमारे बढ़ते झुकाव से चीन यदि कुढ़ता है, तो ठीक है. लेकिन, अगर भारत यह चाहता है कि चीन उसके साथ बेहतर कदमताल मिलाये, तो इसके लिए रणनीतिक योजना के साथ आगे बढ़ना होगा. मौजूदा समय में चीन से व्यापक मतभेद कायम करते हुए हमने खुद को अलग-थलग कर लिया है. इसका दुखद पहलू यह है कि पाकिस्तान के एनएसजी में दाखिल होने की राह को हमने आसान बना दिया है. हमें तत्काल अपनी सदस्यता के लिए इतनी जल्दबाजी करने की जरूरत नहीं थी. जैसा कि श्याम शरण आगाह कर चुके हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि अभी हमने जो किया है, उससे हमें 2008 के एनएसजी के खास नियमों के तहत शर्तों पर आधारित मिल रही छूट जारी रहेगी.

पवन के वर्मा

पूर्व राज्यसभा सदस्य

pavankvarma1953@gmail.com

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