जीवन की गरिमा के पक्ष में फैसला

फांसी की सजा जीवन का अंत तो करती ही है, वह जीवन की उम्मीदों का भी अंत करती है. कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह होता है कि मानवता को कलंकित करनेवाले अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा देना, समाज को कठोर संदेश देने के लिए जरूरी होता है, […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2014 4:23 AM

फांसी की सजा जीवन का अंत तो करती ही है, वह जीवन की उम्मीदों का भी अंत करती है. कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाने के पीछे सबसे महत्वपूर्ण तर्क यह होता है कि मानवता को कलंकित करनेवाले अपराधों के लिए मृत्युदंड की सजा देना, समाज को कठोर संदेश देने के लिए जरूरी होता है, ताकि भविष्य में इनकी पुनरावृत्ति न हो.

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक ऐतिहासिक फैसले में भारतीय जेलों में लंबे समय से बंद 15 अपराधियों की मृत्युदंड की सजा को उम्रकैद में बदलना थोड़ा विरोधाभासी लग सकता है. लेकिन, इस फैसले को वास्तव में हर इनसान के जीवन की गरिमा सुरक्षित करने की सुप्रीम कोर्ट की प्रतिबद्धता का प्रमाण माना जाना ज्यादा उचित होगा. सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिये गये ‘जीवन के अधिकार’ का अर्थ-विस्तार किया है और इसे गरिमापूर्ण जीवन से जोड़ा है.

जीवन की गरिमा का ख्याल रखते हुए सर्वोच्च अदालत ने दया याचिकाओं पर अत्यधिक और बेवजह देरी को आधार मानते हुए 15 अपराधियों को जीवनदान देने का निर्णय लिया है. इस आदेश का मतलब यह कदापि नहीं है कि दोषियों के अपराध को कम या छोटा मान लिया गया है. दरअसल इसे कानून का सकारात्मक और सराहनीय हस्तक्षेप माना जा सकता है. खासकर इसलिए क्योंकि यह मृत्यु से ज्यादा जीवन के पक्ष में खड़ा है. अदालत का यह कहना महत्वपूर्ण है कि जीवन का अधिकार मुजरिम के पास फांसी के फंदे पर लटकाये जाने तक रहता है.

यह फैसला भारतीय जेलों में बंद मृत्युदंड प्राप्त कैदियों के लिए इस लिहाज से महत्वपूर्ण है कि इसने दया याचिकाओं के संबंध में एक दिशा-निर्देश भी दिया है और ऐसी याचिकाओं पर यथाशीघ्र फैसला लेने को कहा है, क्योंकि जीवन को लेकर अनिश्चितता की यह अविध बेहद यंत्रणादायक होती है. हालांकि एक तरह से, कोर्ट का फैसला सरकार के लिए भी थोड़ी राहत देनेवाला है, क्योंकि कई मामलों की राजनीतिक संवेदनशीलता को देखते हुए ही फैसला लेने में इतनी देरी की गयी. उम्मीद की जानी चाहिए कि आनेवाले समय में सरकार दया याचिकाओं पर फैसला लेने में तत्परता दिखायेगी और उन्हें राजनीति के तराजू पर तौलने से परहेज करेगी.

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