विस्थापन का संकट
रोजी-रोटी और बेहतर जीवन की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाने की प्रवृत्ति मानव सभ्यता के मूल में है. लेकिन, बीते कुछ सालों से खासकर प्राकृतिक आपदाओं ने बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर किया है. हालिया रिपोर्टों के मुताबिक, वर्ष 2015 में 113 देशों के करीब दो करोड़ लोगों […]
रोजी-रोटी और बेहतर जीवन की तलाश में एक जगह से दूसरी जगह जाने की प्रवृत्ति मानव सभ्यता के मूल में है. लेकिन, बीते कुछ सालों से खासकर प्राकृतिक आपदाओं ने बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापन के लिए मजबूर किया है. हालिया रिपोर्टों के मुताबिक, वर्ष 2015 में 113 देशों के करीब दो करोड़ लोगों को बेघर होना पड़ा था, जिनमें आधे से अधिक भारत, चीन और नेपाल के हैं. अगर इसमें हिंसक घटनाओं के कारण पलायन के लिए विवश हुए लोगों को जोड़ लें, तो यह संख्या करीब तीन करोड़ हो जाती है.
भारत में सिर्फ बाढ़ और चक्रवात की वजह से पिछले साल 36.6 लाख लोगों को दूसरी जगह शरण लेनी पड़ी. यह संख्या चीन सहित दुनिया के किसी भी देश में हुए विस्थापन से ज्यादा है. देश में दो सालों के भयावह सूखे से करीब 33 करोड़ लोग प्रभावित हुए और लाखों आजीविका के लिए बड़े शहरों का रुख करने पर मजबूर हुए हैं. ऐसे पलायन से न सिर्फ लोगों की आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होती हैं, बल्कि शहरों पर बेजा दबाव भी बढ़ता है.
जाहिर है, आपदाओं से तो अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता ही है, पलायन भी विकास की गति को बाधित करता है. बाढ़, सुखाड़ और जलवायु परिवर्तन से पैदा होनेवाले संकटों के समाधान के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों के साथ-साथ स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर भी समयबद्ध कार्ययोजना के साथ ठोस कदम उठाने की जरूरत है. जलवायु परिवर्तन पर बनी वैश्विक मिलिट्री एडवाइजरी कौंसिल के तीन सदस्य देशों- भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश- के वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने कुछ दिनों पहले ही साझा बयान में सीमा पर तनाव खत्म कर प्राकृतिक आपदाओं का मिल कर सामना करने का आह्वान किया है.
लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि बाढ़ और सूखे की निरंतरता के बावजूद सरकारी स्तर पर आपदाओं से निपटने की समुचित तैयारी का अभाव हर साल बना रहता है. पीड़ितों के पुनर्वास और राहत के नाम पर घोषणाएं ज्यादा होती हैं, काम कम. तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, लापरवाही और अदूरदर्शिता ने इस स्थिति को और विकट बना दिया है.
आज जरूरत इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें विस्थापित लोगों के लिए तुरंत राहत के साथ-साथ उनके गांव-कस्बे के नजदीक रोजगार की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए कारगर प्रयास करें, ताकि उन्हें दर-ब-दर न भटकना पड़े तथा वे अर्थव्यवस्था में सकारात्मक योगदान दे सकें. विकास की योजनाओं में इन पहलुओं को प्राथमिकता देना जरूरी है.