पिछले कुछ वर्षो में हुए कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय सव्रेक्षणों के नतीजों में कहा गया था कि 1991 में आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से देश के अंदर और बाहर कालेधन का आकार तेजी से बढ़ा है. योगगुरु बाबा रामदेव ने पिछले साल कहा था, देश के अंदर और बाहर एक से डेढ़ हजार लाख करोड़ रुपये का कालाधन है. अगर इस धन को वापस लाया जाये, तो हर गांव को विकास के लिए दो सौ करोड़ रुपये मिल सकेंगे.
इससे देश के गांवों और गरीबों की तकदीर बदल जायेगी. हाल के वर्षो में सीबीआइ और आयकर विभाग के कई छापों में भी यह बात सामने आयी थी कि देश के रिश्वतखोर अधिकारियों के घरों के गद्दों, डिब्बों या बैंक लॉकरों में बड़ी मात्र में नकदी बंद है. ऐसे में 2005 से पहले छपे नोटों को पहली अप्रैल, 2014 से वापस लेने का रिजर्व बैंक का फैसला उम्मीद जगानेवाला है. अगर 1970 के दशक के शुरू में एक हजार रुपये के नोटों को वापस लेने के फैसले को छोड़ दें, तो यह अपने तरह का पहला निर्णय है.
विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक ऐसा जाल है, जिसके जरिये कम-से-कम देश के अंदर नकदी के रूप में छिपा कर रखे गये करीब 11,000 करोड़ रुपये अप्रैल से जून, 2014 के बीच बाजार में आ जायेंगे, जिससे सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था में नयी जान आयेगी. इतना ही नहीं, आरबीआइ के इस कदम से नकली नोटों के प्रचलन पर भी कुछ हद तक अंकुश लगने की उम्मीद है. माना जा रहा है कि बाजार में इस समय मौजूद ज्यादातर नकली नोट 2005 से पहले छपे नोटों की नकल हैं, जो प्रचलन से बाहर हो जायेंगे. 2005 के बाद छपे नोटों में सुरक्षा फीचर्स की अधिकता के कारण नकली नोटों की पहचान भी आसान होगी.
रिजर्व बैंक की एक नीति यह भी है कि साफ-सुथरे नोट प्रचलन में रहें. इससे लेन-देन, एटीएम से निकासी और रख-रखाव में आसानी होती है. आये दिन कटे-फटे, पुराने नोटों के लेन-देन को लेकर दुकानों पर नोंक-झोंक देखने को मिलती है. यह स्थिति तब है, जबकि रिजर्व बैंक ने 2012-2013 में 14.1 अरब गंदे नोट प्रचलन से बाहर किये हैं, जो नोटों की कुल संख्या के 20 प्रतिशत से अधिक है. ऐसे में रिजर्व बैंक के इस महत्वपूर्ण एवं साहसिक फैसले के आर्थिक परिणामों पर लोगों और विशेषज्ञों की निगाह रहेगी.