बड़े धोखे हैं इस राह में
राजनीति की सफाई के मकसद से कीचड़ में उतरे अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम सांसत में फंस गयी है. कीचड़ में उनके पांव ठीक तरह से जम भी नहीं पाये थे कि ततैया के छत्ते में हाथ दे बैठे. ऐसे में चहुंओर से डंक पड़ना लाजिमी था. दिल्ली के तख्त के पास पुलिस की बागडोर […]
राजनीति की सफाई के मकसद से कीचड़ में उतरे अरविंद केजरीवाल और उनकी टीम सांसत में फंस गयी है. कीचड़ में उनके पांव ठीक तरह से जम भी नहीं पाये थे कि ततैया के छत्ते में हाथ दे बैठे. ऐसे में चहुंओर से डंक पड़ना लाजिमी था. दिल्ली के तख्त के पास पुलिस की बागडोर नहीं रहने के कारण सोमनाथ भारती सरीखे प्रकरण तो होने ही थे, पर वे थोड़े जल्दी ही हो गये.
दो ध्रुवों के मकड़जाल में फंसी भारतीय राजनीति चंद घाघ और कांइया सियासतदानों के बीच फंस कर रह गयी थी. केजरीवाल ने केवल उसे मुक्त कराने की एक झलक क्या दिखा दी कि लोग उन पर टूट पड़े. यह बात सही है कि इतनी जल्दी उन्हें सहयोगी दल के खिलाफ मोर्चा नहीं खोलना था, लेकिन यह भी सच है कि इसके लिए उकसाने का काम सहयोगी दल ने ही किया है.
दयानंद कुमार, गिरिडीह