मनोरोग के कारण
पिछले दिनों आपने खबर छापी कि रांची के दो सरकारी अस्पतालों, सीआइपी और रिनपास में रोजाना 600 से 800 मनोरोगी पहुंच रहे हैं, जिसके कारणों को तलाशने के लिए चिकित्सक प्रयासरत हैं. अत: प्रभात खबर के इस मंच से मनोरोगी के कारणों को (जो अनुभव पर आधारित है) उन चिकित्सकों तक पहुंचाने का प्रयास करना […]
पिछले दिनों आपने खबर छापी कि रांची के दो सरकारी अस्पतालों, सीआइपी और रिनपास में रोजाना 600 से 800 मनोरोगी पहुंच रहे हैं, जिसके कारणों को तलाशने के लिए चिकित्सक प्रयासरत हैं.
अत: प्रभात खबर के इस मंच से मनोरोगी के कारणों को (जो अनुभव पर आधारित है) उन चिकित्सकों तक पहुंचाने का प्रयास करना चाह रहा हूं. पुराने जमाने में ग्रामोफोन हुआ करते थे, जिसमें पतली धारियों वाली रिकार्ड में सुई लगा कर गाने सुने जाते थे.
किसी-किसी रिकॉर्ड में तकनीकी गड़बड़ी के कारण, सुई के एक ही स्थान पर अटक जाने से आगे का गाना रुक जाता था, फिर उसे वहां से हटा कर आगे कर दिया जाता, तब गाना पूरा हो पाता था. ठीक यही स्थिति मनोरोगी के दिमाग (मन) पर घटित होती है.
क्योंकि आम आदमी का दिमाग (मन) चौबीस घंटे के अंदर अनगिनत स्थानों पर भटकता (आता-जाता) रहता है, लेकिन जब वह किन्हीं बातों को लेकर फंस (अटक) जाता है, तब वह मनोरोगी हो जाता है. वैसे मेरा मानना है कि दवा देकर शारीरिक इलाज के साथ-साथ उसकी मानसिकता पर चोट की जाये तो और ज्यादा लाभ होने की संभावना है.
महाबीर साहू, हटिया