वीर विनोद छाबड़ा
व्यंग्यकार
चाय…! चाय…! चाय…! चाय वाले की आवाज सुन कर आंख खुली. ट्रेन खड़ी है. स्टेशन का नाम शाहजहांपुर है. बंदा अतीत में गुम हो गया…!बंदा दिल्ली से लौट रहा है. बला की गरमी है और ऊपर से लखनऊ मेल में तिल रखनेभर की भी जगह नहीं है. रिजर्वेशन है नहीं और टीटीइ महोदय ने एक अदद सीट देने से हाथ खड़े कर दिये, मने ब्लैक भी फुल्ल है.
जनरल में किसी तरह घुस गया. फिर बंदे ने कुछ नहीं किया. भीड़ ही उसे ठेलती रही. हड्डियों का चूरमा बन गया. जैसे-तैसे बाथरूम के पास पैर टिकानेभर की जगह मिली. मुरादाबाद आते-आते भीड़ थोड़ी छंटी. उसकी सांस वापस आयी. वहीं फर्श पर बैठने को थोड़ी सी जगह मिल गयी.
ट्रेन की खुली खिड़कियों और दरवाजों से आती पहियों की गड़गड़ाहट और ट्रेन के वेग से कटती हवा की आवाज. कोई एक-दूसरे तक को नहीं सुन पा रहा है. सामने नव-ब्याहता दूल्हा-दुल्हन बैठे हैं. उनके पोषाक से कस्बाई पृष्ठभूमि की घोषणा हो रही है. दुल्हन गज भर घूंघट में है.
दुल्हन का सिर घूंघट के भीतर तेज-तेज हिल रहा है, मानो ट्रेन की रफ्तार से मुकाबला कर रही है. दुल्हन ऊंचा-ऊंचा कुछ बोल भी रही है, लेकिन वह क्या कह रही है, ट्रेन के शोर में कुछ सुनाई नहीं दे रहा है. असहाय दूल्हा अपने हाथों के इशारे से ही दुल्हन से शांति की अपील कर रहा है. परंतु, वह दूल्हे को कंधे पर हाथ तक नहीं रखने दे रही है, मानो करंट मार रही है. उसकी नाराजगी का कारण शायद इतनी भीड़ में सफर करना रहा हो या फिर उसकी मर्जी के विरुद्ध ससुराल जाने की विवशता रही हो!
बंदा दूल्हा-दुल्हन की रूठा-रुठौव्वल का यह नजारा देख मंद-मंद मुस्कुरा रहा है. बढ़िया टाइम पास है. सिर्फ बंदा ही नहीं, दर्जनभर दूसरी आंखें भी उन पर टिकी हुई हैं. और वो दोनों बेचारे जाने-अनजाने टैक्स-फ्री एंटरटेनमेंट की सामग्री बने हैं. बड़ा तरस आता है उन पर.
अचानक बंदे की निगाह सामने लिखी इबारत की ओर गयी. लिखा था- सावधान! ट्रेन में ज्वलनशील पदार्थ लेकर चलना सख्त मना है. और दूल्हा-दुल्हन ठीक उसी के नीचे बैठे हैं. बंदे को जोर की हंसी आयी.
कुछ और लोग भी हंसने लगे. दूल्हे को यों तो अहसास था कि वह सबके निशाने पर है, लेकिन सबको इस तरह हंसते देख चौकन्ना हो गया. दुल्हन भी कुछ सनक गयी. उसके सिर का जोर-जोर से हिलना-डुलना बंद हो गया. दूल्हा समझ गया कि ऊपर कुछ लिखा है. उसने खड़े होकर पढ़ा और फिर वह भी जोर-जोर से हंसने लगा. फिर उसने दुल्हन के कान में कुछ कहा. दुल्हन का सिर फिर जोर-जोर से हिलने लगा. दूल्हे ने इशारे से बताया कि दुल्हन हंस रही है.
तभी ट्रेन रुकी. बरेली स्टेशन है. चाय…! चाय…! चाय…! आवाज सुन कर ‘च्यास’ लग आयी. बंदे ने सबको चाय पिलायी, दूल्हा-दुल्हन को भी. लगा हम सब एक परिवार हैं.
कुछ ही देर में ट्रेन चल दी. ट्रेन के हिचकोले लेते ही दुल्हन अपने दूल्हा के कंधे पर सिर कर रख कर न जाने कब सो गयी. बंदे की भी आंख लग गयी.
चाय…! चाय…! चाय…! बंदे की नींद खुली. सवेरा होने को था. हरदोई स्टेशन है. सहसा उसकी निगाह सामने गयी. दूल्हा-दुल्हन वहां नहीं थे. जाने किस स्टेशन पर उतर गये? बगल में बैठे मुसाफिर ने बंदे के चेहरे पर लिखा प्रश्न पढ़ लिया. बोला- ज्वलनशील पदार्थ पीछे शाहजहांपुर उतर गया. ट्रेन चल दी. बंदा वर्तमान में लौटा. पीछे छूट गया शाहजहांपुर…