चिंता आगामी पीढ़ी की!
वक्त की नजाकत का हवाला दे कर हम उन कामों को धड़ल्ले से किये जा रहे हैं, जो निश्चित रूप से कभी न कभी पूरी मानव जाति के सर्वनाश का कारण बनेंगी. क्या हम और हमारा समाज उन त्रासद भरे परिणामों की परिकल्पना करने में समर्थ नहीं, जब आनेवाली पीढ़ी निढाल पड़ी हमें कोस रही […]
वक्त की नजाकत का हवाला दे कर हम उन कामों को धड़ल्ले से किये जा रहे हैं, जो निश्चित रूप से कभी न कभी पूरी मानव जाति के सर्वनाश का कारण बनेंगी. क्या हम और हमारा समाज उन त्रासद भरे परिणामों की परिकल्पना करने में समर्थ नहीं, जब आनेवाली पीढ़ी निढाल पड़ी हमें कोस रही होगी.
हालात तो अभी ही डरावने हैं. प्रकृति एक छोर थामे लगातार अपने जुल्मों का हिसाब लेने लगी है, तो वहीं विनाशलीला के दूसरे छोर की डोर मानव जाति के हाथों में है, जो हर रोज खून की रंगरेलियां खेल रहे हैं. न तो उन्हें इनसानियत सूझ रही है और न ही खुदा का खौफ. इस समय हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जब भारी व भयानक बदलाव होने के आसार अपने चरम पर है. ऐसे में चिंतनीय पहलू यह है कि हमारी पीढ़ी को क्या हम ऐसा भविष्य दे पायेंगें, जिनसे उन्हें हम पर फख्र हो.
आदित्य शर्मा, दुमका