राजनीति में पारदर्शिता

चंदे, फंडिंग और आंतरिक लोकतंत्र के बारे में सूचना उपलब्ध न कराने पर छह राष्ट्रीय दलों के शीर्ष नेताओं को केंद्रीय सूचना आयोग ने तलब किया है. सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के प्रति दलों के रवैये को देखते हुए आयोग पहले भी कह चुका है कि ये अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को तो आरटीआइ से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 19, 2016 7:35 AM

चंदे, फंडिंग और आंतरिक लोकतंत्र के बारे में सूचना उपलब्ध न कराने पर छह राष्ट्रीय दलों के शीर्ष नेताओं को केंद्रीय सूचना आयोग ने तलब किया है. सूचना का अधिकार (आरटीआइ) कानून के प्रति दलों के रवैये को देखते हुए आयोग पहले भी कह चुका है कि ये अन्य सार्वजनिक संस्थाओं को तो आरटीआइ से बंधा देखना चाहते हैं, लेकिन खुद इससे नहीं बंधना चाहते, जबकि सार्वजनिक संस्थाओं के कामकाज पर दलों का नियंत्रण और असर भरपूर है.

कानून के जानकार ध्यान दिलाते रहे हैं कि जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम के अंतर्गत प्रत्येक राजनीतिक दल को देश के संविधान के प्रति निष्ठावान होना जरूरी है, तभी उनका पंजीकरण मान्य होता है. मान्यताप्राप्त दल के लिए जरूरी है कि वह संवैधानिक प्रावधानों के तहत मांगी जानकारी लोगों को मुहैया कराये. हालांकि विधिवेत्ताओं का यह तर्क दलों के गले नहीं उतरता. दलों को आरटीआइ के दायरे में लाने की कोशिशें केंद्रीय सूचना आयोग ने भी की हैं और सुप्रीम कोर्ट ने भी. लेकिन, इन कोशिशों को दलों ने बड़ी चतुराई से टाला है. आयोग ने पहले 2013 में, फिर मार्च 2015 में राजनीतिक दलों को ‘सार्वजनिक प्राधिकरण’ घोषित करते हुए उन पर आरटीआइ कानून को बाध्यकारी करार दिया.

दलों ने जब इस पर एेतराज जताया, तब सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई, 2015 में छह राष्ट्रीय दलों बीजेपी, कांग्रेस, एनसीपी, सीपीआइ, सीपीआइ (एम) और बीएसपी से पूछा कि वे अपनी आमदनी, खर्च, चंदे और दानदाताओं के ब्योरे सार्वजनिक क्यों नहीं करना चाहते? इस पर दलों का गोलमटोल जवाब था कि अगर वे अपने को सार्वजनिक प्राधिकरण मान लें और हर सूचना सार्वजनिक करने लगें, तो उनके कामकाज में रुकावट आयेगी. लेकिन, भले ही राजनीतिक दल अपनी हर सूचना को सार्वजनिक न करें, लेकिन देश-विदेश से हासिल चंदों के स्वरूप व स्रोत, चुनाव खर्च, टिकट बंटवारे और आंतरिक चुनाव से संबंधित सूचनाओं को परदे के पीछे रखना लोकतंत्र के लिए घातक है.

सभी जानते हैं कि इन बातों का गहरा रिश्ता देश में व्याप्त राजनीतिक भ्रष्टाचार और कालेधन की समस्या से है. ऐसे में आरटीआइ से बचने की कोशिशों के बजाय, राजनीतिक दल यदि जरूरी सूचनाओं को सार्वजनिक करने का निर्णय लेते हैं, तो यह न केवल देश हित में होगा, बल्कि दलों की अपनी विश्वसनीयता भी बढ़ेगी.

Next Article

Exit mobile version