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संसद सत्र से उम्मीदें

सोमवार से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र के दौरान देश हित के कई महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने और जनहित के अहम मुद्दों पर सारगर्भित बहसों की उम्मीद है. सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक तथा राज्यसभा में कश्मीर के मसले पर हो रही चर्चा से फिलहाल सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र […]

सोमवार से शुरू हुए संसद के मॉनसून सत्र के दौरान देश हित के कई महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने और जनहित के अहम मुद्दों पर सारगर्भित बहसों की उम्मीद है. सत्र से पहले हुई सर्वदलीय बैठक तथा राज्यसभा में कश्मीर के मसले पर हो रही चर्चा से फिलहाल सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आशा व्यक्त की है कि संसद में सभी पार्टियां देश को नयी दिशा देने के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम करेंगी. राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने भी भरोसा दिलाया है कि देश, जनता और व्यापार के हित में वे किसी भी विधेयक को समर्थन देने के लिए तैयार हैं. लोकसभा से मंजूर हो चुका वस्तु एवं सेवा कर विधेयक फिलहाल राज्यसभा में लंबित है. इसके कुछ प्रावधानों पर सरकार और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के बीच का टकराव भी अब खत्म होता दिख रहा है.
संसद हमारे देश की सबसे बड़ी पंचायत है, जिस पर देश की दशा-दिशा के बारे में अहम फैसले लेने की जिम्मेवारी है. लेकिन, पिछले सत्रों में संसद का अच्छा खासा समय हंगामे और शोरगुल के कारण बर्बाद हो गया था. इस कारण कई विधेयक लंबित हैं, जबकि कुछ विधेयक समुचित चर्चा के बिना ही जल्दबाजी में पारित कर दिये गये थे.
अब मॉनसून सत्र में जीएसटी विधेयक के अलावा कर्जों की वसूली, व्हिसल ब्लोअरों की सुरक्षा, बाल मजदूरी, उच्च पेशेवर शैक्षणिक संस्थानों आदि से जुड़े कई विधेयकों पर निर्णय होना है. कश्मीर में अस्थिरता और न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत की सदस्यता जैसे अहम मसलों पर भी चर्चा की उम्मीद है. उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज करने के मुद्दे पर भी विपक्ष बहस की मांग कर सकता है.
फिलहाल सरकार ने विपक्ष की चिंताओं पर चर्चा कराने का भरोसा दिया है. अब यह सत्ता पक्ष तथा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत अन्य सभी दलों के जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही है कि संसदीय मर्यादाओं और अपेक्षाओं पर खरे उतरते हुए वे संसद की कार्यवाही को उत्पादक बनाएं. संसदीय कार्यवाही बाधित होने का नुकसान सिर्फ करोड़ों रुपये की बर्बादी तक सीमित नहीं है.
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के हमारी प्रतिष्ठा तभी बनी रह सकती है, जब हमारे निर्वाचित प्रतिनिधि देशवासियों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए गंभीरता से प्रयासरत हों. दोनों सदनों में खूब बहस हो, असहमतियां दर्ज करायी जायें, टीका-टिप्पणी भी हो, पर संसद चलनी चाहिए और जरूरी काम सकारात्मक सहयोग के साथ निपटाये जायें. उम्मीद है कि यह सत्र इस लिहाज से एक आदर्श उदाहरण पेश करेगा.

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