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सुरक्षा परिषद् में सुधार

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया की कठोर आलोचना करते हुए इसमें समुचित सुधार की मांग की है. इस विश्व संस्था में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने मौजूदा व्यवस्था को ‘गुप्त ब्रह्मांड’ की संज्ञा दी है और कहा है कि इसमें प्रयुक्त गोपनीयता और सर्वसम्मति के सिद्धांतों के […]

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की प्रतिबंध लगाने की प्रक्रिया की कठोर आलोचना करते हुए इसमें समुचित सुधार की मांग की है. इस विश्व संस्था में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन ने मौजूदा व्यवस्था को ‘गुप्त ब्रह्मांड’ की संज्ञा दी है और कहा है कि इसमें प्रयुक्त गोपनीयता और सर्वसम्मति के सिद्धांतों के कारण सदस्य राष्ट्र अपनी जवाबदेही से मुक्त हो जाते हैं.
सुरक्षा परिषद् में प्रतिबंधों से संबंधित 26 समितियां हैं, जो हर साल करीब एक हजार फैसले लेती हैं, लेकिन इनकी बैठकों का कोई भी विवरण सदस्य देशों या मीडिया से साझा नहीं किया जाता है. पारदर्शिता की कमी के कारण विभिन्न देशों द्वारा अक्सर इन निर्णयों को लागू नहीं किया जा सकता है. भारत पहले भी आतंकी सरगनाओं और संगठनों पर पाबंदी नहीं लगाने के परिषद् की इन समितियों के रवैये पर सवाल उठा चुका है.
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक नीति बनाने की भारत की दो दशक पुरानी मांग भी संयुक्त राष्ट्र में लंबित है. इस महीने के शुरू में भारत की ओर से फिर से एक संशोधित प्रस्ताव दिया गया है. पारदर्शिता की कमी और राष्ट्रों के रुख के सार्वजनिक न होने के खतरों को रेखांकित किया जाना जरूरी है. आतंकी अजहर मसूद पर रोक लगाने की भारत की मांग एक समिति में खारिज कर दी गयी, तो एक अन्य समिति में मुंबई हमले के साजिशकर्ता जकीउर रहमान लखवी की पाकिस्तान में रिहाई पर कार्रवाई का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया गया. दक्षिण सूडान में जारी गृह युद्ध भी भारत की चिंता को जायज ठहराता है, जहां दो हजार से अधिक भारतीय शांति सैनिक तैनात हैं.
यदि संयुक्त राष्ट्र की निर्णय-प्रक्रिया में खुलापन होगा और सकारात्मक पहलों को रोकनेवाले देशों की हकीकत दुनिया के सामने जाहिर होगी, तो इससे हिंसक संघर्षों और आतंक के विरुद्ध कदम उठाने में मदद मिलेगी तथा वैश्विक शांति की दिशा में आगे बढ़ा जा सकेगा. भारत समेत दुनिया के अनेक देश आज हिंसा और आतंक से त्रस्त हैं.
इसलिए इनके समाधान की चिंता भी व्यापक स्तर पर की जानी चाहिए. यदि संयुक्त राष्ट्र की प्रणाली ही इस प्रयास में बाधक बनेगी, तो दुनिया में शांति स्थापित करने और संपूर्ण मानवता को विकास तथा समृद्धि के मार्ग पर अग्रसर करने के संकल्प पूरे नहीं हो सकेंगे. उम्मीद की जानी चाहिए कि सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों के साथ अन्य देश भी भारत की चिंता पर सकारात्मक विचार कर कार्य-प्रणाली में सुधार के ठोस प्रयासों की ओर सक्रिय होंगे.

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