ठुल्ले का मतलब

डॉ सुरेश कांत वरिष्ठ व्यंग्यकार अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से उस ‘ठुल्ले’ शब्द का अर्थ बताने के लिए कहा है, जो उन्होंने पिछले दिनों पुलिसवालों के लिए इस्तेमाल किया था. पुलिस की नौकरी में आकर भी अभी चिकने घड़े न बन पाये एक नादान पुलिसकर्मी ने इसका इतना बुरा माना कि उन पर मानहानि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 22, 2016 5:38 AM
डॉ सुरेश कांत
वरिष्ठ व्यंग्यकार
अदालत ने दिल्ली के मुख्यमंत्री से उस ‘ठुल्ले’ शब्द का अर्थ बताने के लिए कहा है, जो उन्होंने पिछले दिनों पुलिसवालों के लिए इस्तेमाल किया था. पुलिस की नौकरी में आकर भी अभी चिकने घड़े न बन पाये एक नादान पुलिसकर्मी ने इसका इतना बुरा माना कि उन पर मानहानि का मुकदमा ही दायर कर दिया. जबकि पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने इस पर बिलकुल अलग तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त कर अपने उचित घड़े होने का परिचय दिया. ‘गर्व से कहो, हम हिंदू हैं’ की तर्ज पर उन्होंने अपने महकमे वालों को हिदायत दी कि गर्व से कहो, हम ठुल्ले हैं! उन्होंने आपस में भी एक-दूसरे ठुल्ला कह कर ही पुकारने की नसीहत भी दी.
पुलिसवालों को ठुल्ला तो अब तक व्यापक रूप से कहा जाता रहा है, पर एक तो वह गर्व से नहीं कहा जाता रहा और दूसरे, पुलिसवालों द्वारा आपस में एक-दूसरे से भी नहीं कहा जाता रहा. किसी भी पुलिसवाले को दूसरे पुलिसवाले से ऐसा कुछ कहते नहीं सुना गया कि अजी ठुल्ले जी, जाओ खोमचेवाले से हफ्ता वसूल कर लाओ.
राष्ट्रकवि ने ठीक ही कहा है कि जिसको न निज गौरव तथा निज देश का अभिमान है, वह नर नहीं है पशु निरा, और मृतक समान है.
इसमें भी आदमी को निज देश का अभिमान न भी हो, जो कि प्राय: नहीं ही होता, तो भी निज गौरव का तो होना ही चाहिए. बड़े अधिकारी की हिदायत के बाद यह उम्मीद बंधी कि अब पुलिसवाले भी निज गौरव का अभिमान कर रिश्वत आदि लेते हुए रंचमात्र भी शर्मिंदा नहीं होंगे. मैं अलबत्ता बचपन से ही हर ठुल्ले को इज्जत देता आया हूं, इतनी कि उसे देखते ही बिना किसी बात के डर जाया करता था. यही तो सबसे बड़ी कमाई है जनता की निगाह में पुलिस की.
संभवत: ठुल्लों के ही डर से ‘ठुल्ला’ शब्द शब्दकोशों में नहीं मिलता. कुछ लोग इसका संबंध निठल्ले से बताते हैं, जिससे मैं सहमत नहीं हो पाता. ठुल्ले रात-दिन और सर्दी-गर्मी-बरसात हर मौसम में जितनी कठिन ड्यूटी देते हैं, देश में शायद ही कोई देता हो. जब हम त्योहार की छुट्टी में घरों में आराम से बैठे खुशी-खुशी त्योहार मना रहे होते हैं, तब भी वे त्योहारजनित दंगे-फसाद रोकने की ड्यूटी निभा रहे होते हैं.
और सुविधाओं के नाम पर इन बेचारे ठुल्लों के पास क्या होता है- बाबाजी का ठुल्लू, बल्कि कई बार तो वह भी नहीं होता. तभी तो एक बार किसी चोर को पकड़ने के लिए भेजे गये सिपाही घसीटामल ने लौट कर थानेदार को बताया कि सर, चोर तो नहीं पकड़ा जा सका, पर मैं उसके हाथों के निशान ले आया हूं. थानेदार ने पूछा कि कहां, तो घसीटामल ने बताया कि अपने गाल पर.
अलबत्ता पुलिसवाले थुलथुल जरूर होते हैं. उनकी यह विशेषता अभी हाल ही में तब विशेष रूप से सामने आयी, जब ‘उड़ता पंजाब’ फिल्म की रिलीज के अवसर पर मचे हल्ले में कुछ बदमाशों ने पंजाब के दो आमने-सामने विचारमग्न खड़े पुलिसवालों की एक तसवीर सोशल मीडिया पर वायरल कर दी, जिसमें उनकी विशाल तोंदें एक-दूसरे से जुड़ी थीं और जिसका शीर्षक दिया गया था ‘जुड़ता पंजाब’. हो सकता है, किसी भाषावैज्ञानिक ने कभी उनका यही थुलथुलापन देख उन्हें ‘थुल्ला’ नाम दे दिया हो, जो धीरे-धीरे घिसने के बजाय मुटा कर ‘ठुल्ला’ हो गया हो.
ऐसे में सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री अदालत को क्या जवाब देंगे? और इससे भी बड़ा सवाल यह कि बिना सोचे-समझे किसी के भी बारे में कुछ भी कह देनेवाले हमारे नेताओं के लिए भी क्या अब अपने कहे का अर्थ जानना-बताना जरूरी होगा? फिर तो नेता बनने का आकर्षण ही क्या रहेगा, सिवाय काली कमाई के?

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