बीते 16 दिनों से कश्मीर घाटी हिंसा, तनाव, कर्फ्यू और बंद से त्रस्त है. मृतकों की संख्या 46 तक पहुंच चुकी है. संसद के दोनों सदनों में कश्मीर पर चर्चा के बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घाटी का दौरा भी किया है. संतोष की बात है कि संसद में सत्ता पक्ष समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने मौजूदा हालात पर गंभीरता से बहस में हिस्सा लिया और कश्मीर में अमन की बहाली पर जोर दिया. सरकार की ओर से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने माना कि स्थिति बेहद खराब और निराशाजनक है.
गृह मंत्री ने संसद को बताया कि केंद्र जम्मू-कश्मीर सरकार के साथ मिल-जुल कर कोशिश कर रही है कि सुरक्षाबलों द्वारा बल-प्रयोग में संयम बरता जाये. इन दोनों मंत्रियों के पाकिस्तान की शरारत का उल्लेख करने पर सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने उचित ही इंगित किया कि सरकार भाषण तो कर रही है, पर पाकिस्तान को रोकने का सही प्रयास नहीं कर रही है. कश्मीर के मसले पर सबसे अहम सवाल वहां के लोगों के भरोसे से जुड़ा हुआ है.
भारत और भारत की सरकार में उनके भरोसे को बहाल करने के उद्देश्य के साथ सरकार को आगे बढ़ना चाहिए. राज्य में भाजपा और पीडीपी की संयुक्त सरकार है. पीडीपी की ओर से सांसद मुज्जफर बेग ने सलाह दी कि सरकार कश्मीर में अपनी सैनिक ताकत का नहीं, बल्कि अपनी नैतिक ताकत का इस्तेमाल करे. मौजूदा सरकार के साथ पिछली सरकारों की बड़ी कमी यह रही है कि घाटी में अशांति के माहौल में तो वे अमन-चैन बहाल करने तथा बातचीत का दौर शुरू करने की चर्चा करती हैं, पर सामान्य स्थितियों में कश्मीर उनके जेहन से उतर जाता है. वर्ष 2008 के बाद से ऐसा होते हुए लगातार देखा गया है.
पिछले साल राज्य में चुनाव के बाद एक बड़ा मौका मिला था, जब कश्मीरी जनता के साथ समुचित संवाद स्थापित करने का सिलसिला शुरू किया जा सकता था. हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुए प्रदर्शनों पर अत्यधिक बल-प्रयोग फिलहाल ऐसी संभावना को समाप्त कर दिया है. सरकार को असंतोष दूर करने के लिए खुले मन से कश्मीरियों के पास जाना चाहिए ताकि स्थिरता के प्रयास के लिए सही वातावरण तैयार हो सके. जोर-जबर्दस्ती से या दबाव बना कर कुछ समय के लिए नियंत्रण स्थापित तो किया जा सकता है, पर यह दीर्घकालिक नहीं होगा और जल्दी ही एक और विस्फोटक माहौल की चुनौती हमारे सामने आ खड़ी होगी. ऐसे में सहानुभूति ही भरोसे की कुंजी है.