लता व सचिन को यह सम्मान क्यों!

आकार पटेल कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया भारत रत्न हमारे देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है. महज प्रतिभा और प्रसिद्धि के कारण क्रिकेट खिलाड़ियों और फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को इस सम्मान को देना एक भूल है. ऐसा करने से इस सम्मान की प्रतिष्ठा कम होती है और इसके गलत इस्तेमाल की संभावना […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2016 5:43 AM
आकार पटेल
कार्यकारी निदेशक, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया
भारत रत्न हमारे देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है. महज प्रतिभा और प्रसिद्धि के कारण क्रिकेट खिलाड़ियों और फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों को इस सम्मान को देना एक भूल है. ऐसा करने से इस सम्मान की प्रतिष्ठा कम होती है और इसके गलत इस्तेमाल की संभावना भी रहती है.
क्रिकेट खिलाड़ियों और फिल्मी सितारों को राज्यसभा की सदस्यता देने के मामले में भी ऐसा ही होता है. मैं इस संदर्भ में यहां दो नामों का उल्लेख करूंगा. पहला नाम है सचिन तेंडुलकर का और दूसरा लता मंगेशकर का. इन दोनों में से कोई भी भारत रत्न पाने का हकदार नहीं है और दोनों ने ही अपनी लोकप्रियता का गलत फायदा उठाया है.
सचिन इन दिनों अपने पुराने व्यापारिक हिस्सेदार को रक्षा मंत्री से मिलवाने को लेकर सुर्खियों में हैं. उन्होंने डिफेंस एरिया के निकट किसी व्यावसायिक निर्माण के सिलसिले में अपने दोस्त को रक्षा मंत्री से मिलवाया था. जब इस मुलाकात की खबर बाहर आयी, तो सचिन ने एक बयान जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि इस प्रकरण में उनका कोई भी व्यावसायिक हित नहीं है. हो सकता है कि ऐसा हो भी, परंतु भारत रत्न जैसे प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किसी हस्ती का किसी मंत्री के सामने इस तरह के व्यावसायिक उद्देश्य से जाना क्या उचित है?
सचिन को राज्यसभा में एक सदस्य के रूप में अपना पहला प्रश्न पूछने में तीन साल का लंबा समय लगा था. तीन साल कहने से मेरा अर्थ यह है कि वे इस अवधि में अधिकतर समय राज्यसभा के सत्रों और कार्यवाही से अनुपस्थित रहे.
पिछले साल दिसंबर में आयी एक रिपोर्ट के अनुसार सचिन ने राज्यसभा की मात्र छह प्रतिशत कार्यवाही में ही भाग लिया है, और उन्होंने अभी तक किसी भी बहस में अपनी भागीदारी दर्ज नहीं की है. लेकिन, उनके पास अपने दोस्तों और व्यापारिक हिस्सेदार के व्यावसायिक हितों के लिए रक्षा मंत्री से मिलने का समय है? मैं ऐसे लोगों को भारत रत्न दिये जाने के कतई पक्ष में नहीं हूं.
भारत रत्न से सम्मानित होने के बाद भी सचिन बीएमडब्ल्यू जैसे ब्रांड के लिए विज्ञापन करते रहे थे. क्या सार्वजनिक जीवन जीनेवाली हस्तियों के लिए ऐसा करना सही है, विशेष रूप से सचिन जैसे धनाढ्य व्यक्तित्व के लिए? निश्चित तौर पर यह एक शर्मनाक और सम्मान को ठेस पहुंचानेवाली बात है. हम जब इस तरह के लोगों को भारत रत्न देते हैं, तब हम उनकी प्रतिभा का सम्मान तो जरूर कर रहे होते हैं, लेकिन हम उनके सामाजिक योगदान की अनदेखी करते हैं, जबकि किसी भी नागरिक सम्मान को देने का असल उद्देश्य यही होता है.
सचिन ने पहले भी अपने रुतबे का अनुचित इस्तेमाल किया है, जब उन्हें उपहार में फेरारी कार मिली थी. तब उन्होंने सरकार से आयात कर से छूट देने का अनुरोध किया था. आखिरकार करदाताओं के पैसों को अरबपतियों के हाथ का खिलौना क्यों बना देना चाहिए?
बहरहाल, अदालत को उन्हें कर देने के लिए मजबूर करना पड़ा. जब उन्होंने मुंबई के बांद्रा में शानदार कोठी बनवायी, तो सरकार से निवेदन किया कि उन्हें अपवादस्वरूप तय सीमा से अधिक निर्माण कर सकने की छूट दी जाये. उन्हें ये छूट क्यों दी जानी चाहिए? हममें से कोई इस तरह की इजाजत नहीं मांगता है. सचिन का ऐसी छूट मांगना एक स्वार्थपूर्ण बात है.
बीते 13 जून को रिपोर्ट छपी थी कि सचिन ने बंगाल के एक विद्यालय को 76 लाख रुपये दान में दिया है. इस खबर ने मेरे अंदर दिलचस्पी पैदा कर दी, क्योंकि उनकी यह पहल उनके पूर्ववर्ती स्वार्थपूर्ण व्यवहार के अनुकूल नहीं थी. जब मैंने इस बारे में गहराई से पड़ताल की, तो मुझे पता चला कि उन्होंने जो धन बतौर ‘दान’ दिया है, वह उनका पैसा है ही नहीं. स्कूल को दिये गये पैसे दरअसल उनके राज्यसभा फंड के पैसे हैं. इसका मतलब यह हुआ कि यह देश का पैसा है और इसे ‘दान’ नहीं किया जाता और ऐसा कर सचिन किसी पर दया नहीं कर रहे हैं.
सचिन कोई मुहम्मद अली जैसे नहीं हैं, जिन्हें उनके अन्याय और नस्लवाद के विरुद्ध निरंतर संघर्ष करने के कारण से नागरिक सम्मान मिला था. और, अली अपनी विचारधारा की वजह से जेल जाने को भी तैयार रहते थे. कभी आपने सुना है कि सचिन ने मुश्किल परिस्थितियों में किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोई भी सार्थक बात कही हो? नहीं. उनका अधिकतर समय तो सामान बेचने में चला जाता है.
प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर को 2001 में भारत रत्न दिया गया था. इसके कुछ वर्षों बाद उन्होंने कहा कि अगर उनके घर के पास पेडर रोड पर फ्लाइओवर बनता है, तो वे देश छोड़ कर दुबई चली जायेंगी.
वे और उनकी बहन आशा भोसले ने फ्लाइओवर निर्माण का इतना विरोध किया है कि यह फ्लाइओवर अभी तक नहीं बन सका है. अप्रैल, 2012 में आयी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि राज्यसभा में उपस्थित रहने के मामले में सबसे खराब रिकॉर्ड लता का रहा है. ये आंकड़े सचिन और लता की बेपरवाही को इंगित करते हैं. मेरी नजर में यह देश का अपमान है. क्या भारत रत्न से सम्मानित व्यक्तित्वों से ऐसे व्यवहार की उम्मीद की जाती है? क्या उन्हें अपने व्यक्तिगत हितों और स्वार्थ को दूसरों के हितों से ऊपर रखना चाहिए?
यह बहुत हास्यास्पद बात है कि ऐसे लोगों को उनकी प्रतिभा के कारण सम्मानित किया गया है, न कि उनके सामाजिक योगदान की वजह से. क्या इन लोगों को इनकी प्रतिभा की वजह से कुछ अधिक ही सम्मानित नहीं कर दिया गया है? इन लोगों ने स्वयं को बहुत समृद्ध बनाया है.
यह सही भी है. इन लोगों ने खूब धन और लोकप्रियता कमाया है. वे सार्वजनिक जीवन में समुचित व्यवहार के द्वारा हमारा सम्मान कमा सकते थे, लेकिन ये लोग इसके प्रति बेपरवाह रहे. इन लोगों ने संसद में भी गंभीरता से अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं की. कितनी बार सचिन ने अपने मैच छोड़े हैं या विज्ञापनों की शूटिंग छोड़ी है? सरकारें अक्सर लोकप्रियता से प्रभावित हो जाती हैं और ऐसे लोगों को सम्मान देकर अपने आप को सौभाग्यशाली समझती हैं. यह भी है कि बहुधा ऐसे लोगों के लिए बड़े पैमाने पर लॉबिंग की जाती है.
यह सब बंद होना चाहिए. हमें लोगों की प्रतिभा और उनके योगदान को एक-दूसरे से अलग-अलग करके देखना चाहिए. महज सामाजिक योगदान देनेवालों को ही राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा जाना चाहिए.

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