महाशक्तियों का सियासी खेल
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सरगरमी के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी के आंतरिक ई-मेल और अन्य दस्तावेजों को चुराने का मामला कंप्यूटरों के हैकिंग का शरारती मामला भर नहीं है. पार्टी ने सीधे इसके लिए रूस को दोषी ठहराया है. तकनीकी विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इशारे पर लंबे समय […]
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की सरगरमी के बीच डेमोक्रेटिक पार्टी के आंतरिक ई-मेल और अन्य दस्तावेजों को चुराने का मामला कंप्यूटरों के हैकिंग का शरारती मामला भर नहीं है. पार्टी ने सीधे इसके लिए रूस को दोषी ठहराया है.
तकनीकी विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इशारे पर लंबे समय से ऐसी हरकतें होती रही हैं. सच्चाई जो भी हो, पर एक-दूसरे देश की आंतरिक राजनीति में वैश्विक महाशक्तियों के दखल का मामला नया नहीं है. इसी साल मई में अमेरिकी खुफिया संस्था सीआइए के द्वारा फिलिपींस के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की चर्चा ने इस देश में अमेरिकी हस्तक्षेप के इतिहास की याद करा दी थी.
फिलिपींस में 1980 के दशक में अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन तथा 1990 के दशक में राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के इशारे पर राष्ट्राध्यक्ष बदले गये. लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में तख्तापलट की अनेक घटनाओं में अमेरिका का सीधा हाथ होना प्रामाणिक ऐतिहासिक तथ्य हैं. कहीं लोकतांत्रिक सरकारों को अपदस्थ कर सैनिक तानाशाही स्थापित की गयी, तो कहीं अधिनायकवादी शासनों को हटा कर लोकतांत्रिक मुखौटों वाली कठपुतली सरकारें लायी गयीं. रूस, पहले बतौर सोवियत संघ, भी अंतरराष्ट्रीय राजनीति के इस खतरनाक खेल में सीमित ही सही, पर अपनी भूमिका निभाता रहा. अब शीत युद्ध के बाद के वैश्विक रंगमंच पर तकनीक सबसे महत्वपूर्ण हथियार बना है.
हैकिंग, सर्विलांस और लीक के जरिये राजनीतिक प्रभाव बढ़ाने की जुगत लगायी जा रही है. सीआइए के लिए तकनीकी काम कर चुके एडवर्ड स्नोडेन ने दो साल पहले खुलासा किया था कि अमेरिकी राष्ट्रपतियों जॉर्ज बुश और बराक ओबामा के इशारे पर अमेरिकी एजेंसियां दुनिया के बड़े नेताओं के फोन और इंटरनेट की जासूसी करती हैं. अन्य देशों को लोकतंत्र, मानवाधिकारों और नीतियों पर सीख देनेवाली इन महाशक्तियों का ऐसा आचरण वैश्विक राजनीति और कूटनीति के लिए बेहद खतरनाक है. इस खेल में राजनेताओं के साथ कॉरपोरेट ताकतें, मीडिया और राजनीतिक प्रबंधकों की भी कुटिल भूमिका है.
ताजा खुलासे इस जरूरत को फिर से रेखांकित करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गिने-चुने ताकतवर देशों के ऐसे रवैये का विरोध करना चाहिए ताकि सही मायनों में लोकतांत्रिक विश्व की स्थापना हो सके.