पाक की कूटनीतिक शरारत

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण से इस्लामाबाद में चल रही सार्क देशों के गृहमंत्रियों की बैठक से जुड़ी उम्मीदों को बहुत झटका लगा है. इस बैठक में दक्षिण एशिया में आतंकवाद से निबटने और सुरक्षा के मामलों में परस्पर सहयोग पर विचार-विमर्श होना था, पर मेजबान नवाज शरीफ ने कश्मीर पर अपना घिसा-पिटा […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 5, 2016 6:03 AM
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के भाषण से इस्लामाबाद में चल रही सार्क देशों के गृहमंत्रियों की बैठक से जुड़ी उम्मीदों को बहुत झटका लगा है. इस बैठक में दक्षिण एशिया में आतंकवाद से निबटने और सुरक्षा के मामलों में परस्पर सहयोग पर विचार-विमर्श होना था, पर मेजबान नवाज शरीफ ने कश्मीर पर अपना घिसा-पिटा राग छेड़ कर आगे की चर्चाओं की राह अवरुद्ध कर दी है.
सदस्य देशों द्वारा यह बहुत पहले ही तय किया जा चुका है कि सार्क बैठकों में विवादास्पद द्विपक्षीय मसलों को नहीं उठाया जाना चाहिए. एक तो शरीफ ने इस परिपाटी का उल्लंघन किया है, दूसरे उन्होंने अपने बयान से पाकिस्तान के कट्टरपंथी और अतिवादी समूहों, जिनमें ऐसे गिरोह भी शामिल हैं जिनकी आतंकी गतिविधियों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय बार-बार चिंता जता चुका है, को तुष्ट करने की कोशिश की है.
बैठक में भारतीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उचित ही कहा है कि आतंकियों को गौरवान्वित करना ठीक नहीं है और ऐसे तत्वों को, चाहे वे राज्य के कहने पर हिंसा को अंजाम देते हों या फिर किसी अतिवादी विचार से ग्रस्त होकर सक्रिय हों, शह और समर्थन देने की नीति भी बंद होनी चाहिए. उन्होंने सभी सदस्य देशों से आतंकी प्रवृत्तियों के विरुद्ध कठोर रुख अपनाने का आह्वान किया है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को इन बातों पर गंभीरता से आत्ममंथन और आत्मचिंतन करना चाहिए.
पाकिस्तान अगर सचमुच एक सार्वभौम लोकतंत्र होने का दावा करता है, तो उसे यह समझ लेना चाहिए कि ऐसे हिंसक गुटों का दबाव उसके अपने शासन के लिए खतरनाक है. ऐसे माहौल में आतंकवाद का विरोध करने और उसके खिलाफ एकजुट होकर लड़ने का नवाज शरीफ का आह्वान भी एक मजाक ही है. कश्मीर के बहाने हिंसा की तरफदारी करना तथा अतिवादी तत्वों के इशारे पर बयान देने से उसका अगंभीर रवैया ही सामने आता है.
यह इसलिए और भी चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि ये गिरोह खुद पाकिस्तानी नागरिकों को भी निशाना बनाने से नहीं चूक रहे हैं. बीते करीब एक दशक से पाक की राजनीति में लोकतंत्र की मजबूती के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन अगर नवाज शरीफ और अन्य पाकिस्तानी नेता लश्करे-तय्यबा, जैशे-मोहम्मद और हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे चरमपंथी और आतंकी गिरोहों के इशारे पर चलने लगेंगे, तो यह प्रक्रिया निश्चित रूप से बाधित होगी.
यह जगजाहिर है कि कश्मीर की चिंता पाकिस्तान की एक कूटनीतिक चाल भर है और वह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देकर अपनी खामियों को छुपाने की कोशिश करता है. पाकिस्तान को अपनी खतरनाक शरारतों से बाज आना चाहिए. दक्षिण एशिया में शांति के लिए यह जरूरी शर्त है.

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