शिशु के लिए महत्वपूर्ण है स्तनपान
डॉ आलोक रंजन सीनियर प्रोग्राम आॅफिसर, न्यूट्रिशन, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन माता के गर्भवती होने और बच्चे के दूसरे जन्मदिन के बीच की अवधि में दुनियाभर में लाखों निर्दोष जानें चली जाती हैं. भारत में पांच साल से कम आयु में ही मरनेवाले करीब आधे बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. विडंबना है कि […]
डॉ आलोक रंजन
सीनियर प्रोग्राम आॅफिसर, न्यूट्रिशन, बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन
माता के गर्भवती होने और बच्चे के दूसरे जन्मदिन के बीच की अवधि में दुनियाभर में लाखों निर्दोष जानें चली जाती हैं. भारत में पांच साल से कम आयु में ही मरनेवाले करीब आधे बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं. विडंबना है कि कई बच्चों को एक बहुत सामान्य उपाय से बचाया जा सकता है और वह है अधिक से अधिक स्तनपान. माता का दूध शिशु के पोषण का बेहतरीन साधन है. इसमें मौजूद पोषक और रोग-निरोधक तत्व शिशु में प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं.
अध्ययनों से साबित हुआ है कि जन्म के एक घंटे के भीतर तथा जन्म के छह महीने तक स्तनपान कराने से बच्चे के जीने और उसके विकास की संभावना बढ़ती है, माताओं का जीवन सुरक्षित होता है तथा बाद में मोटापा और डायबिटीज की आशंका कम होती है. अधिक समय तक स्तनपान से माता की बैद्धिक क्षमता से परे बच्चों और किशोरों की मानसिक क्षमता में भी वृद्धि होती है. यह भी महत्वपूर्ण है कि कुछ महिलाओं में बीमारियों को छोड़ दें, तो लगभग हर माता स्तनपान कराने की क्षमता रखती है.
विभिन्न स्वास्थ्य लाभों तथा संभावित आर्थिक असर के बावजूद भारत में जन्म के एक घंटे के भीतर और छह माह तक स्तनपान करानेवाली महिलाओं की संख्या करीब आधी ही है. इस स्थिति के सामाजिक-सांस्कृतिक कारण भी हैं और हमारी स्वास्थ्य प्रणाली में भी कुछ समस्याएं हैं. सामाजिक संदर्भ में, रिश्तेदारों की सलाह और कुछ रीति-रिवाज स्तनपान के मातृ आत्मविश्वास या चिकित्सकीय लाभों को किनारे कर देते हैं. नतीजा, माताएं देखभाल के निर्देशों का पालन नहीं करती हैं.
अक्सर स्तनपान के महत्व को समझनेवाली माताएं समुचित जानकारी के अभाव में इसके लाभों से वंचित रह जाती हैं. कुछ मामलों में माता के बीमार पड़ने या घरेलू जिम्मेवारी के कारण भी स्तनपान में व्यवधान पड़ता है. बिहार में हुए एक व्यापक सर्वेक्षण में पाया गया है कि मई और जुलाई के गर्म महीनों में अधिक पानी पीने से स्तनपान की दर में काफी कमी आ जाती है. कुछ स्त्रियां उठने-बैठने में मुश्किल और सहयोग की कमी के चलते स्तनपान रोक देती हैं. यह भी पाया गया है कि जो माताएं अपने पहले बच्चे के जन्म के दौरान सफलतापूर्वक स्तनपान नहीं कराती हैं, वे बाद में भी स्तनपान की कोशिश कम ही करती हैं. यह भी कि पहले शिशु को निर्देशानुसार स्तनपान करानेवाली महिलाएं बाद में उस उत्साह को बरकरार नहीं रख पाती हैं.
शिशु के जन्म से पहले और बाद के महत्वपूर्ण क्षणों में स्तनपान कराने के तौर-तरीकों में सहयोग देकर स्वास्थ्य सेवा तंत्र में सेवाप्रदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. लेकिन इस तंत्र में ज्ञान-कौशल की कमी है. स्वास्थ्य सेवाप्रदाताओं के पास सैद्धांतिक जानकारी तो है, पर यह संभव है कि उन्हें समुचित प्रशिक्षण नहीं मिला हो. साथ ही खतरे से भरा गर्भाधान, लंबे समय तक अस्पताल में रहना, मानसिक बीमारी और शिशु का कम वजन जैसे कुछ अन्य कारणों से भी स्तनपान शुरू करने में देरी होती है.
स्तनपान के सकारात्मक परिणाम स्पष्ट हैं. हमें इससे संबंधित चुनौतियों का सामना करने के लिए सही व्यवस्था बनाने पर ध्यान देना होगा. इस तथ्य को रेखांकित करते हुए 2013 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने बच्चों को स्तनपान कराने के संबंध में राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी किया था.
इसमें परामर्श की भूमिका पर पूरा जोर दिया गया था. आशा और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा परिवारों और समुदायों को परामर्श देने में अग्रणी भूमिका इसका बड़ा उदाहरण है. इनकी उपस्थिति में यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि परामर्श सिर्फ माताओं को ही नहीं, बल्कि परिवारजनों को भी दिया जाये. नवजात शिशु की माता को समुचित मातृ अवकाश मिलना ठीक से स्तनपान कराने में बहुत मददगार सिद्ध होगा.
स्तनपान को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि इसे पोषण और बच्चों के खान-पान के मसलों से अलग कर देखा जाता है, जबकि इस पर सार्वजनिक स्वास्थ्य का पूरा ध्यान होना चाहिए, क्योंकि इससे रोगों के प्रतिरोध, शिशु मृत्यु दर रोकने तथा बच्चे के विकास में मदद मिल सकती है.
चूंकि इसमें कोई खर्च नहीं होता, इसलिए इसे अन्य कुछ स्वास्थ्य-आर्थिक सूचकों के बराबर महत्व नहीं मिलता है.आज विश्व स्तनपान सप्ताह के आयोजन के अवसर पर हमें ध्यान रखना होगा कि स्तनपान सतत विकास के कुछ लक्ष्यों को पूरा करने में उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है.
यह एक बहुत असरदार उपाय है, जिससे कीमती जानें बचायी जा सकती हैं तथा उत्पादक भावी पीढ़ी तैयार करने में इससे मदद मिल सकती है. स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए सभी संबद्ध पक्षों – परिवार, समुदाय, प्रभावशाली समूह, नौकरशाही और नीति-निर्धारकों – के सहयोग और निरंतर प्रयासों की आवश्यकता है.
(अनुवाद : अरविंद कुमार यादव)