आपकी क्रांति अमर रहे, सड़कों पर

।। जावेद इस्लाम।।(प्रभात खबर, रांची) आया राम गया राम का पत्र क्रांतिवीर के नाम हे दिल्ली के क्रांतिवीर, भारत की भावी तकदीर/ बहुनर बकमाल जी, श्री श्री अरविंद केजरीवाल जी. आपके चरणों में सादर प्रणाम, कोटि कोटि चरणवंदन! आशा है आप प्रसन्न होंगे और अपनी सरकार के साथ दिल्ली के किसी सड़क -चौराहे पर धरनासन्न […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 29, 2014 4:15 AM

।। जावेद इस्लाम।।
(प्रभात खबर, रांची)

आया राम गया राम का पत्र क्रांतिवीर के नाम हे दिल्ली के क्रांतिवीर, भारत की भावी तकदीर/ बहुनर बकमाल जी, श्री श्री अरविंद केजरीवाल जी. आपके चरणों में सादर प्रणाम, कोटि कोटि चरणवंदन!

आशा है आप प्रसन्न होंगे और अपनी सरकार के साथ दिल्ली के किसी सड़क -चौराहे पर धरनासन्न होंगे. लोकतंत्र की कोई नयी इबारत लिख रहे होंगे. सबसे बड़ी कोर्ट ने दिल्ली पुलिस पर राज्य के नियंत्रण की मांग को लेकर आपके 36 घंटे के धरने पर प्रतिकूल टिप्पणी कर के संविधान के प्रति अपनी अनभिज्ञता का ही प्रमाण दिया है. वह तो आप हैं कि अपनी हाजिर जवाबी से यह बता दिया कि संविधान आपने भी पढ़ा है. और संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि कोई सरकार सड़क पर धरना नहीं दे सकती. भला बताइए, जज महोदय लोग अदालत परिसर के बाहर कहीं भी कोर्ट लगा सकते हैं तो जनता की चुनी सरकार कहीं भी आसन क्यों नहीं जमा सकती?

आपने ठीक ही घोषणा की है कि आपकी सरकार अपना ऐतिहासिक जन लोकपाल बिल अब रामलीला मैदान में, जनता के बीच लायेगी. वाजिब भी है. जन लोकपाल जनसभा में ही आना चाहिए, विधानसभा में नहीं. आपका सफर सड़क से शुरू होकर सदन तक पहुंचा है, तो सदन से पलट कर फिर सड़क पर क्यों नहीं आ सकता? सदन भी आपका और सड़क भी आपकी. सुधि जन आप की राजनीति को सड़क छाप अराजकता कहते हैं, तो कहते रहें. आप सड़क पर ही जमे रहिए और सड़क जाम किये रहिए.

दिल्ली और देश ने कभी क्रांति देखी ही नहीं. 1857 में एक क्रांति हुई थी, वह भी असफल. आपकी क्रांति अमर रहे और सड़कों पर समर रहे. राजनीति की नयी तीसरी धारा गढ़ने की अभी कोई जल्दबाजी नहीं. इसके लिए माथापच्ची क्या करनी! आपकी क्रांति को पहले दिल्ली से देश तक जाना और जानना जरूरी है. अगर इसे दिल्ली विधानसभा में कैद कर दिया गया, तब तो हो चुकी देश में क्रांति! दिल्ली क्रांति से आम जन ही नहीं, अभिजन भी पगला रहे हैं. कोई तो अपनी वर्दी व कुरसी, तो कोई पार्टी तक छोड़ने को तैयार है, बस एक अदद टिकट की दरकार है. सुना है, संसद के टिकट के लिए पांच हजार लोगों ने ‘आप’ के पास आवेदन कर दिया है. अभी से यह हाल है तो चुनाव की घोषणा होने दीजिए, जनपथ पर लंबी कतार दिखेगी.

महाशय, एक टिकट की मेरी भी विनती है. मेरी राजनीतिक योग्यता ‘आप’ के अनुरूप है. मेरी भी कोई स्पष्ट नीति या सिद्धांत नहीं. मेरा जन्म भी सड़क पर हुआ है. सड़क पर रहना ही पसंद है. आप जिस सड़क पर चाहेंगे, मैं वहां खड़ा या पड़ा मिलूंगा. आप ‘आप’ के माई-बाप हैं. हे माई-बाप! मेरी विनती स्वीकार करें और टिकट का वरदान दें.

आपका एक टिकटार्थी-याचक, आया राम गया राम

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