पाक में क्यों हो सार्क सम्मेलन?
पुष्परंजन ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक क्वेटा हमले के हवाले से भारत को दक्षेस सदस्य देशों से विमर्श करना चाहिए कि इस बार ‘सार्क समिट’ का पाकिस्तान में होना कम-से-कम सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं होगा. हालात जिस तरह से पाक सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों के हाथ से बाहर हैं, उससे यही […]
पुष्परंजन
ईयू-एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक
क्वेटा हमले के हवाले से भारत को दक्षेस सदस्य देशों से विमर्श करना चाहिए कि इस बार ‘सार्क समिट’ का पाकिस्तान में होना कम-से-कम सुरक्षा की दृष्टि से सही नहीं होगा. हालात जिस तरह से पाक सेना और उसकी खुफिया एजेंसियों के हाथ से बाहर हैं, उससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे भी भयानक हमले भविष्य में हो सकते हैं.
सार्क सदस्य देशों के शासनाध्यक्ष अमेरिकी राष्ट्रपति जितने ताकतवर तो हैं नहीं, जिनके दौरे के वक्त सारी सुरक्षा व्यवस्था ‘सीक्रेट सर्विस’ की निगरानी में होने लगती है. पाकिस्तान इसकी कतई इजाजत नहीं देगा कि इस्लामाबाद सार्क शिखर बैठक में प्रधानमंत्री मोदी की सुरक्षा भारतीय एजेंसियों की कमांड में चली जाये.
सत्तर लोगों में से पैंतीस वकीलों की मौत से पाकिस्तान हिला हुआ है. 112 घायलों में से 32 की हालत नाजुक है, जिन्हें कराची लाया गया है.
मंगलवार को देशव्यापी हड़ताल द्वारा पाकिस्तान के वकीलों ने संदेश दिया है कि उन्हें सेना और सरकार से एक्शन चाहिए, गुमराह करनेवाले बयान नहीं. बलूचिस्तान के मुख्यमंत्री सनाउल्लाह जहरी ने राॅ का हाथ होने की बात उड़ा दी थी. जहरी का जहर उतरने में चौबीस घंटे भी नहीं लगे, जब पाकिस्तान तालिबान से संबद्ध ‘जमातुल अहरार’(जेयूए) ने क्वेटा सिविल अस्पताल के बाहर सोमवार को किये आत्मघाती विस्फोट की जिम्मेवारी ली. उसके घंटे भर बाद ‘इस्लामिक स्टेट’ की ओर से दावा किया गया कि विस्फोटक बांध कर ‘शहादत देनेवाला युवक’ उसका आत्मघाती था. बड़ी बात यह है कि ‘राॅ’ को लेकर जो दुष्प्रचार नवाज शरीफ इस बार करना चाहते थे, उसे वहां के वकीलों और निष्पक्ष पत्रकारों ने पहले ही राउंड में निरस्त कर दिया.
सेनाध्यक्ष राहील शरीफ ने ट्विट के जरिये संदेश दिया कि ऐसे हमले का मकसद 46 अरब डाॅलर की लागत से बन रहे चाइना-पाकिस्तान इकोनाॅमिक काॅरीडोर (सीपीइसी) को सफल नहीं होने देना है. ग्वादर पोर्ट क्वेटा के दक्षिण में है, जहां चीन ‘सीपीइसी’ का निर्माण कर रहा है. पाक मिल्ट्री मीडिया विंग ‘आइएसपीआर’ के अनुसार, ‘पख्तुनख्वा में आॅपरेशन ‘जर्ब-ए-अज्ब’ की सफलता के बाद आतंकी, क्वेटा के गिर्द शिफ्ट कर गये थे. राहील शरीफ ने देशव्यापी धरपकड़ अभियान चलाने का आदेश इंटेलिजेंस एजेंसियों को दिया है.
क्वेटा हमले की जवाबदेही लेनेवाले ‘जेयूए’ का उल्लेख करते हुए अमेरिका ने पिछले हफ्ते जानकारी दी थी कि यह तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से अलग हुआ ग्रुप है, जो अफगान-पाक सीमा पर सक्रिय है, जो किसी बड़े कांड की फिराक में है. चीन के लिए सबसे डरावना स्वप्न पाक-अफगान सीमा पर आइसिस का विस्तार है. उसे लगता है, जैसे-जैसे आइसिस अपनी जड़ें अफगान-बलूचिस्तान सीमा पर जमायेगा,
शिन्चियांग में उईगुर अलगाववादी मजबूत होते जायेंगे. चीन अब तक तालिबान कमांडरों को मिलाजुला कर चल रहा था, मगर ‘टीटीपी’ से अलग हुआ गुट ‘जेयूए’ और आइसिस के नये नवेले दहशतगर्द हर हाल में चीनी इंफ्रास्ट्रक्चर का विध्वंस चाहते हैं. दोनों गुटों के दहशतगर्द नहीं चाहते कि चीन बलूचिस्तान में पांव जमाये. इसलिए ‘राॅ’ को कुछ करने की जरूरत ही नहीं है.
पाकिस्तान ने ‘गुड टेररिस्ट’ के बहाने जितने जिन्न बोतल में बंद कर रखे थे, वे बाहर निकल कर उसके ही मंसूबों को तबाह करने में लग गये हैं.
यों, पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ कश्मीर की आग को सार्क सम्मेलन तक सुलगाये रखना चाहते हैं, लेकिन उनके उद्देश्यों पर पानी अफगान-बलूचिस्तान सीमा पर जमे अतिवादी फेर रहे हैं. भारत ने ‘सार्क सेटेलाइट’ का प्रस्ताव दिया था, उसे वीटो के जरिये पाकिस्तान ने ब्लाॅक किया था. उसी तरह ‘दक्षेस मोटर गाड़ी समझौते’ पर हस्ताक्षर से नवाज शरीफ ने मना किया था. दरअसल, इस बार नवाज शरीफ दक्षेस शिखर बैठक को भारत-पाक प्रतिस्पर्धा का प्लेटफाॅर्म बनाना चाहते हैं.
दक्षेस गृहमंत्रियों की इस्लामाबाद बैठक में भारत के गृह मंत्री राजनाथ सिंह के जाने का फायदा यह हुआ कि पाक की मंशा दुनिया के सामने उजागर हो गयी. राजनाथ सिंह दक्षेस गृह मंत्रियों की काठमांडो बैठक में भी थे, जहां अतिवाद एवं ड्रग व्यापार को समाप्त करने का संकल्प किया गया था. दो वर्षों में पाकिस्तान ने उस संकल्प के विपरीत कारगुजारियां की हैं.
भारत को उसका एक डोजियर तैयार कर दक्षेस सदस्य देशों को सौंपना चाहिए. प्रधानमंत्री मोदी ‘पाकिस्तान मुक्त दक्षेस’ अभियान चाह कर भी नहीं छेड़ सकते, लेकिन जोखिम वाले इलाके में जाने से परहेज तो कर ही सकते हैं!