पाक को करारा जवाब

स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन एक सामान्य भाषण नहीं होता. यह एक ओर जहां देश की जनता के साथ उनका सीधा संवाद होता है, वहीं विभिन्न देशों के राजनयिकों और मीडिया की उपस्थिति के चलते इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व भी है. कहना गलत नहीं होगा कि 70वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 17, 2016 6:15 AM
स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का संबोधन एक सामान्य भाषण नहीं होता. यह एक ओर जहां देश की जनता के साथ उनका सीधा संवाद होता है, वहीं विभिन्न देशों के राजनयिकों और मीडिया की उपस्थिति के चलते इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व भी है. कहना गलत नहीं होगा कि 70वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन दोनों ही लिहाज से अहम रहा है.
एक ओर जहां उन्होंने सरकार की उपलब्धियों का बखान करते हुए देश को बताया कि उनकी सरकार ने कार्यसंस्कृति में बदलाव की दिशा में कदम बढ़ाया है, वहीं दुनिया को यह संदेश भी दिया कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों को लेकर भारत अब गुहार और मनुहार की अपनी नीति में भी बदलाव करने जा रहा है. आतंकवाद को शह देने की पड़ोसी देश की नीतियों की आलोचना के साथ ही प्रधानमंत्री ने बलूचिस्तान, गिलगिट और पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर के लोगों का जिक्र भी किया. उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है, जबकि खुद पाक सेना द्वारा बलोची राष्ट्रवादियों के आंदोलन को दबाने के क्रम में दमनात्मक कार्रवाई की खबरें लगातार आती रही हैं.
प्राकृतिक गैस, कोयला, तांबा और सोना जैसे कीमती संसाधनों से भरे बलूचिस्तान के लोग लगातार कहते रहे हैं कि पाक हुकूमत उनके संसाधनों का दोहन कर रही है और उन्हें उनके जायज हक नहीं दे रही. बावजूद इसके, भारत इसे पाकिस्तान का अंदरूनी मामला मान इस पर टिप्पणी से बचता रहा था. ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी के संबोधन में बलूचिस्तान के जिक्र को पाकिस्तान को लेकर भारत की नीतियों में आती आक्रामकता की कड़ी में देखा जा रहा है. इससे घबराये पाकिस्तान ने निर्वासित राष्ट्रवादी बलोच नेताओं से बातचीत की पेशकश भी कर दी है. इससे पहले गृहमंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज सहित कई मंत्रियों ने भी कश्मीर को लेकर पाक के अनर्गल प्रलाप के प्रतिकार में भारत की नीतियों में बदलाव के संकेत दे दिये थे.
इससे पहले 1970 के आसपास के कुछ वर्षों को छोड़ दें, तो पाकिस्तान को लेकर आजादी के बाद से जारी भारत की रक्षात्मक नीति द्विपक्षीय संबंधों को साधने में नाकाम रही है. ऐसे में माना जा रहा है कि इसमें बदलाव के संकेत देने से पहले रणनीतिकारों ने इसके कूटनीतिक एवं सामरिक प्रभावों के बारे में गंभीरता से विचार किया होगा. इसलिए, उम्मीद करनी चाहिए कि पाकिस्तान को अब उसी की भाषा में जवाब देने के कुछ अच्छे नतीजे सामने आयेंगे.

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