इसरो की अबाध यात्रा
अंतरिक्ष के अध्ययन के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नाम विश्व की अग्रणी संस्थाओं में है. अब इसरो सूर्य की ओर उड़ान भरने की तैयारी में है. संगठन के सैटेलाइट केंद्र के निदेशक एम अन्नादुरै के अनुसार 2020 तक ‘आदित्य’ नामक मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए प्रक्षेपित करने की योजना है. […]
अंतरिक्ष के अध्ययन के क्षेत्र में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का नाम विश्व की अग्रणी संस्थाओं में है. अब इसरो सूर्य की ओर उड़ान भरने की तैयारी में है. संगठन के सैटेलाइट केंद्र के निदेशक एम अन्नादुरै के अनुसार 2020 तक ‘आदित्य’ नामक मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए प्रक्षेपित करने की योजना है. अगले साल के अंत तक या 2018 की शुरुआत में चंद्रयान परियोजना के दूसरे चरण में पूरी तरह से स्वदेशी यंत्र चांद पर उतारने की संभावना भी है. इसके लिए पहले रूस से तकनीकी मदद लेने का निर्णय हुआ था, पर इसरो स्वयं ही ऐसा यंत्र विकसित कर रहा है. ये दोनों मिशन इस लिहाज से भी बहुत महत्वपूर्ण हैं कि पिछले साल अगस्त महीने से लेकर मौजूदा महीने तक संस्थान ने 10 सैटेलाइट्स छोड़े हैं तथा आगामी तीन महीनों में चार और सैटेलाइट्स प्रक्षेपित होंगे़.
अगले तीन साल में इसरो की योजना अंतरिक्ष में 70 सैटेलाइट्स भेजने की है. इसी साल जून में श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से एक मिशन के तहत एक साथ 20 उपग्रह छोड़ कर इसरो के वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों की टीम ने दुनिया में अपनी क्षमता की धाक जमा दी थी. इन आंकड़ों से यह पता चलता है कि इसरो की टीम बहुत अधिक व्यस्तता के बावजूद अपने पेशेवर कौशल और प्रबंधन से उत्कृष्ट परिणाम दे रही है. इस संस्थान ने 47 वर्ष की अपनी यात्रा में देश की जरूरतों को पूरा करने की कोशिश तो की ही है, कई अन्य देशों के अंतरिक्ष अध्ययन और अनुसंधान में मदद भी की है.
आज इसरो दुनिया की छह सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों में शामिल है. पहले उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ से सूरज को निकट से निहारने जा रहे ‘आदित्य’ तक यह सिलसिला भारत की सबसे उल्लेखनीय उपलब्धियों में है. वर्ष 2006 में अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने एक स्वर में कहा था कि अब समय आ गया है कि भारत मानवयुक्त उपग्रह भेजना प्रारंभ करे. भारत सरकार ने इस सुझाव पर मंजूरी की मुहर नहीं लगायी है, पर इसरो अपनी क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से भविष्य की संभावना को ध्यान में रख कर जरूरी तकनीकों का विकास कर रहा है.
हालांकि इसरो की ख्याति इस आधार पर भी है कि इसकी परियोजनाओं के खर्च अन्य स्पेस एजेंसियों की तुलना में कम होते हैं, लेकिन वैज्ञानिकों की मांग के मद्देनजर सरकार को इस संस्थान को होनेवाले आवंटन में बढ़ोतरी करनी चाहिए, ताकि मिशन पूरा करने और समुचित शोध के रास्ते में कोई मुश्किल खड़ी न हो.