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भारत को बचा लो
आजादी खो गयी या मानवता सो गयी है. सियासत को ले कर चारो ओर त्राहिमाम मचा है. हम इन सबसे अनभिज्ञ अपने घरों में यह कह कर बैठे हैं कि ‘‘क्या कर सकते हैं.’’ धरती का स्वर्ग नरक बन गया है. बच्चे स्कूल को तरस रहे हैं. लोग भूख से तड़प रहे हैं. फिर भी […]
आजादी खो गयी या मानवता सो गयी है. सियासत को ले कर चारो ओर त्राहिमाम मचा है. हम इन सबसे अनभिज्ञ अपने घरों में यह कह कर बैठे हैं कि ‘‘क्या कर सकते हैं.’’ धरती का स्वर्ग नरक बन गया है. बच्चे स्कूल को तरस रहे हैं. लोग भूख से तड़प रहे हैं.
फिर भी झूठी शान में जल रहे हैं. बलूचिस्तान रो रहा है और हम चैन से सो रहे हैं. आपस में लड़ रहे हैं. घर में बहस कर रहे हैं – सरकार कहती है, हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं. बस इतना कह कर चुप हो जाती है. सत्ता ने विवश कर दिया है या सत्ता के लिए विवश हैं. हम पता नहीं किस आग में जल रहे हैं. मांएं अपने बेटों को सरहद पर खो रही हैं.
पत्नी अपने पति को मुखाग्नि दे रही है. हम खुद को डॉक्टर इंजीनियर बनाने का सपना देख रहे है. आखिर जब लोग ही नहीं रहेंगे, तो आप किसके सामने वर्चस्व दिखाओगे. मेरी आप सबसे विनती है कि आगे आएं, तभी हमारा देश पुरानी गरिमा को प्राप्त कर सकता है.
अक्षत पुष्पम, ई-मेल से
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