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खेती जलेगी या जलप्लावित होगी

बिभाष कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ s_bibhas@rediffmail.com महज ती न-चार महीने पहले हम सूखे से जलती खेती की बात कर रहे थे. अब पूरे देश की खेती जल में डूबी नजर आ रही है. खेती के लिए पानी समस्या बना हुआ है. केंद्रीय जल आयोग, बाढ़ पूर्वानुमान प्रवोधन निदेशालय द्वारा वर्ष 1953 से 2011 […]

बिभाष
कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ
s_bibhas@rediffmail.com
महज ती न-चार महीने पहले हम सूखे से जलती खेती की बात कर रहे थे. अब पूरे देश की खेती जल में डूबी नजर आ रही है. खेती के लिए पानी समस्या बना हुआ है. केंद्रीय जल आयोग, बाढ़ पूर्वानुमान प्रवोधन निदेशालय द्वारा वर्ष 1953 से 2011 तक संकलित आंकड़ों के अनुसार, पिछले 59 वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन 7.225 मिलियन हेक्टेयर भूमि और 32.430 मिलियन जनसंख्या बाढ़ से प्रभावित होती रही है. इस दौरान औसतन 3.789 हेक्टेयर की फसल प्रतिवर्ष प्रभावित होती रही है.
प्रतिवर्ष नुकसान हुई फसल का औसत मूल्य 1,118 करोड़ रुपये था. अगर आप राज्यवार आंकड़ों पर नजर डालें, तो उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 1.739 मिलियन हेक्टेयर, बिहार में 1.324 मिलियन हेक्टेयर भूमि औसतन प्रतिवर्ष प्रभावित रही. फसलों सहित मकानों और जनसुविधा बुनियादी ढांचे को हर साल औसतन 3,612 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. बाढ़ मुख्यत: उत्तर, पूर्वोत्तर और पूर्वी क्षेत्रों की समस्या है. दक्षिण में आंध्र प्रदेश ही एक मात्र राज्य है, जहां हर साल बाढ़ से नुकसान पूर्वी इलाकों की तरह होता है. अन्यथा बाढ़ की विभीषिका मुख्यत: उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में केंद्रित है.
बिहार में बाढ़ की स्थिति का जायजा लेते हुए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्र से मांग की है कि या तो फरक्का बांध को हटाया जाये या फिर गाद के बंदोबस्त की उचित पॉलिसी बने. गाद यानी कि सिल्ट वह महीन मिट्टी है, जो नदियां अपने साथ मिट्टी काट कर बहाती चलती जाती हैं. इस बात से उन्होंने बाढ़ के प्रमुख कारणों में से एक की ओर इशारा किया है.
गाद जमा होने के कारण नदियों की गहराई लगातार कम होती जाती है. बांधों के कारण नदियों के पानी का प्रवाह कम होता जाता है, जिससे गाद बहने के बजाय, नदी की तलहटी में रुक कर इकट्ठा हो जाता है. दरअसल, उत्तर प्रदेश और बिहार में बाढ़ का मुख्य कारण गंगा नदी में सालों से भारी मात्रा में गाद का जमा होना ही है. नीतीश कुमार इस मामले को बीते जुलाई महीने में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हुई 11वीं अंतर-राज्य काउंसिल की मीटिंग में भी उठा चुके हैं.
केंद्रीय जल आयोग ने 2015 में ‘भारत में जलाशयों में गाद अवसान की संग्रह पुस्तिका’ प्रकाशित की थी. पुस्तिका में दिये आंकड़ों पर नजर डालें और पश्चिमी घाट क्षेत्र में पश्चिम की ओर बहनेवाली नदियों को छोड़ दें, जहां गाद जमा होने की दर बहुत ज्यादा है, तो हिमालयी क्षेत्र तथा सिंधु-गंगा के मैदान में बहनेवाली नदियों में गाद जमा होने की दर क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर है.
हिमालयी क्षेत्र और सिंधु-गंगा का मैदान ही वह क्षेत्र है, जिसमें सभी उत्तरी राज्य- उत्तर प्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर और पूर्वी प्रदेश- आते हैं. पश्चिमी घाट क्षेत्र में जहां गाद जमा होने की दर 2.135 मिमी प्रतिवर्ष है, हिमालयी क्षेत्र और सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में यह दर क्रमश: 1.581 और 0.752 मिमी प्रतिवर्ष है. यह आंकड़े 243 रिजर्वायर के अध्ययन से तैयार किये गये हैं.
बांधों को बनाते समय 1987 में तैयार गाइडलाइन को ध्यान में रखा जाता है. लेकिन, अब जरूरी हो चुका है कि नये अध्ययनों से नये प्रकार के मानक तय किये जायें. नये अध्ययन बांधों के साथ नदियों के संबंध में भी होने चाहिए. विशेष रूप से नये अध्ययन में सिंधु-गंगा-जमुना-ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली को ध्यान में रखा जाये. गाद बंदोबस्त का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि नदियों में गाद आये ही क्यों. मिट्टी के कटाव के मुख्य कारण हैं- अंधा-धुंध वनों की कटाई और बरबादी, पशुओं द्वारा वनों और चारागाहों का अत्यधिक चरना, खेती के त्रुटिपूर्ण तरीके आदि. पानी के वेग से कटी हुई मिट्टी पानी के वेग के आधार पर अपनी दूरी तय करती है.
कटाव की वह मिट्टी, जो नदियों के रास्ते में या बांध तक पहुंचती है, वह बाढ़ का मुख्य कारण है. नदियों के रास्ते में जमी मिट्टी न सिर्फ नदियों के पानी धारण करने की क्षमता को कम करती है, बल्कि बारिश के पानी के मैदान में फैलने का कारण भी बनती है. इस प्रकार उतनी ही बारिश में साल-दर-साल बाढ़ की स्थिति बदतर और विभीषक होती जाती है. सिर्फ इतना ही नहीं, बारिश का पानी फैलने के कारण उसके सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है, फलस्वरूप बारिश का पानी उड़ कर उसी मौसम में और उसी इलाके में बार-बार बरसता रहता है.
गाद बंदोबस्त के लिए केंद्र सरकार कोई नीति बनाये, यह तो आवश्यक है ही, राज्यों को भी खेती के तरीकों, वनों और पेड़ों की कटाई आदि का अध्ययन करके उचित नीति बना कर लागू करना चाहिए. मिट्टी के कटाव का एक बहुत बड़ा कारक वनों और चारागाहों में पशुओं का चरना भी है. पशुओं के चरने के कारण वनस्पति आवरण प्रभावित होता है और इससे मिट्टी का कटाव बढ़ जाता है. पशुओं की जनसंख्या का नियंत्रण और उनको भरपूर चारा उपलब्ध कराने की भी एक मजबूत नीति होनी चाहिए.
यह संभव है कि बारिश की बूंद जहां गिरे, उसका वहीं भंडारण हो और अगर वहां पर अतिरिक्त पानी है, तो वह रिस कर नदियों में जाये, जिससे पानी का प्रवाह कम हो और वह गाद-मुक्त भी हो.
तब नदियों में बरसात के मौसम में बहनेवाला पानी गंदा न होकर साफ होगा और हम नदी की तलहटी को ऊपर से देख सकेंगे. दरअसल, बरसात में नदी में बहते पानी का गंदलापन हमारी त्रुटिपूर्ण गाद बंदोबस्त नीति का सबसे बड़ा संकेतक है.
सारी समस्या हमारे जल-जमीन प्रबंध में है. सूखा और बाढ़ आपस में रिश्तेदार हैं. और इससे जुड़ी सारी समस्याएं इंसान की खुद की बनायी हुई है. जल-जमीन बंदोबस्त की तत्काल एक समन्वित नीति चाहिए, नहीं तो साल-दर-साल खेती या तो जलती रहेगी या जलप्लावित होती रहेगी.

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