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असहमति बनाम राजद्रोह
‘पाकिस्तान नर्क नहीं है. वहां के लोग भी हमारे जैसे हैं.’- सार्क देशों के एक कार्यक्रम के सिलसिले में पाकिस्तान में तीन दिन बिता कर लौटीं कन्नड़ अभिनेत्री एवं कांग्रेस नेता राम्या के इस बयान से आप असहमत हो सकते हैं, इसके विरोध में अपनी राय दे सकते हैं, लेकिन एक वकील द्वारा अदालत में […]
‘पाकिस्तान नर्क नहीं है. वहां के लोग भी हमारे जैसे हैं.’- सार्क देशों के एक कार्यक्रम के सिलसिले में पाकिस्तान में तीन दिन बिता कर लौटीं कन्नड़ अभिनेत्री एवं कांग्रेस नेता राम्या के इस बयान से आप असहमत हो सकते हैं, इसके विरोध में अपनी राय दे सकते हैं, लेकिन एक वकील द्वारा अदालत में याचिका दायर कर राम्या पर राजद्रोह समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दायर करने की मांग करना विपरीत विचारों के प्रति बढ़ती कट्टरता का ही प्रमाण है. इससे पहले रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि ‘पाकिस्तान में जाना नर्क में जाने जैसा है.’
उनके बयान से सहमत शिकायतकर्ता का कहना है कि ‘राम्या के बयान से देशभक्तों का अपमान हुआ है.’ ऐसे में यह सवाल गैरवाजिब नहीं है कि यह कैसी देशभक्ति है, जो किसी दूसरे देश की निंदा करने से तुष्ट होती है? यह सही है कि पड़ोसी देश की सेना और सरकार की नापाक हरकतों की वजह से सीमा पर हमारे जवान शहीद होते रहे हैं, लेकिन पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर करने के उद्देश्य से उसके प्रति सद्भावपूर्ण बयान तो पिछली सरकार ही नहीं, केंद्र की नयी सरकार के मंत्री और खुद प्रधानमंत्री भी कुछ समय पहले तक देते रहे हैं.
तो क्या बदल गया, यदि किसी विपक्षी दल के किसी नेता ने ऐसी ही बात कह दी? राजद्रोह कानून (सेडिशन लॉ) किसी भी राष्ट्र की सुरक्षा के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण होता है. बात-बात में इसे लागू करना इस कानून की अहमियत कम करनेवाला साबित होगा. असहमति को राजद्रोह की श्रेणी में डाल कर कोई लोकतंत्र बचा नहीं रह सकता है. अभिव्यक्ति की आजादी और हर तरह के विचारों के प्रति सहिष्णुता की पैरोकारी हर लोकतांत्रिक देश के संविधान में की गयी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ का सपना भी तभी पूरा हो सकता है, जब हर तरह के विचारों के प्रति सहिष्णुता देश के आचार-विचार और व्यवहार में परिलक्षित होगी. अच्छी बात है कि सोशल मीडिया पर आलोचनाओं और पाकिस्तान चले जाने की सलाह के बावजूद राम्या ने अपने बयान पर कायम रहने का फैसला लिया है. खबरों के मुताबिक, अदालत इस याचिका पर 27 अगस्त को सुनवाई करेगा. उम्मीद करनी चाहिए कि अदालत का फैसला अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ लोकतंत्र को मजबूत करनेवाला होगा.
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