सहानुभूति या फिर सिर्फ राजनीति ?

दिवंगत सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी घोषित करने के बाद वापस लेने का मुद्दा पूरे झारखंड में गर्म हो गया है. झामुमो के तीन विधायकों ने पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन को इस्तीफा सौंप दिया है और धमकी दी है कि वे विधानसभा अध्यक्ष को भी इस्तीफा सौंप सकते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 31, 2014 4:06 AM

दिवंगत सुधीर महतो की पत्नी सविता महतो को राज्यसभा चुनाव में प्रत्याशी घोषित करने के बाद वापस लेने का मुद्दा पूरे झारखंड में गर्म हो गया है. झामुमो के तीन विधायकों ने पार्टी अध्यक्ष शिबू सोरेन को इस्तीफा सौंप दिया है और धमकी दी है कि वे विधानसभा अध्यक्ष को भी इस्तीफा सौंप सकते हैं. इस मामले में सिर्फ झामुमो नहीं, अन्य दल भी राजनीति करने में लगे हैं.

कुरमी समाज तो सड़क पर उतर चुका है. मामला संवेदना का है. सुधीर महतो के परिवार का झारखंड आंदोलन में काफी योगदान रहा है. निर्मल महतो उनके बड़े भाई थे. उनकी हत्या के बाद सुधीर महतो ही उनके उत्तराधिकारी थे. लंबे समय से वे झामुमो में थे. बड़ा पद भी मिला था. वे खुद भी इस साल राज्यसभा का चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन प्रत्याशी घोषित होने के पहले ही उनकी मौत हो गयी. सारा खेल तब शुरू हुआ जब अर्जुन मुंडा का बयान आया कि सुधीर महतो की पत्नी को झामुमो प्रत्याशी बनाये. यह एक ऐसा कार्ड था जिसका विरोध झामुमो के नेता नहीं कर सकते थे. सहानुभूति इतनी ज्यादा थी कि तुरंत ही शिबू सोरेन ने सविता महतो को प्रत्याशी घोषित कर दिया.

लेकिन राजद के दबाव ने झ़ामुमो को बैकफुट पर ला दिया. मथुरा महतो, विद्युत महतो और जगन्नाथ महतो जिन क्षेत्रों से आते हैं,वे महतो बहुल हैं. ऐसे भी झारखंड में महतो वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं. विधायकों को भी लगा कि यह सही मौका है. दे दिया इस्तीफा. अब ये विधायक भी फंस गये हैं. ये नेता स्पष्ट नहीं कर रहे हैं कि वे चाहते क्या हैं? अब तो नामांकन हो नहीं सकता. केडी सिंह की खाली सीट पर चुनाव बाद में होगा. ऐसे में किस आश्वासन को लेकर वे इस्तीफा वापस लें. बाबूलाल मरांडी भी राजनीति में पीछे नहीं रहे.

अगर झाविमो सविता महतो को सहयोग करना चाहता था, तो उसे पहले दिन ही बोलना चाहिए था. टिकट कटने के बाद बयानबाजी सिर्फ राजनीति ही है. सभी दल महतो वोटरों की सहानुभूति हासिल करना चाहते हैं. झारखंड मुक्ति मोरचा ने जो गलती की, वह उसमें फंस चुका है. अन्य दल उसे भुनाने में लगे हैं. बेहतर होता कि राजनीति बंद कर उनके शुभचिंतक दल और नेता कोई ऐसा रास्ता निकालते जिससे सुधीर महतो के परिवार का भला होता.

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