कथनी व करनी में फर्क मिटाना होगा
सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न राज्यों के वक्फ बोर्ड के पास मसजिद, दरगाह, सराय सरीखी चार लाख इमारतें और छह लाख एकड़ जमीन की मिल्कियत है. इस लिहाज से रेलवे और रक्षा विभाग के बाद देश में सबसे ज्यादा जायदाद राज्यों के वक्फ बोर्डो के पास है. तथ्य यह भी है कि विश्व […]
सच्चर कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न राज्यों के वक्फ बोर्ड के पास मसजिद, दरगाह, सराय सरीखी चार लाख इमारतें और छह लाख एकड़ जमीन की मिल्कियत है. इस लिहाज से रेलवे और रक्षा विभाग के बाद देश में सबसे ज्यादा जायदाद राज्यों के वक्फ बोर्डो के पास है. तथ्य यह भी है कि विश्व में सर्वाधिक वक्फ संपदा भारत में है, जिससे सालाना 163 करोड़ रुपये की आय होती है.
इस आय का अल्पसंख्यक समुदाय के कल्याण के लिए बेहतर उपयोग किया जा सकता है. शायद यही तथ्य प्रधानमंत्री के मन में रहे होंगे, जो उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रलय के अधीन राष्ट्रीय वक्फ विकास निगम का शुभारंभ करते हुए कहा कि इससे वक्फ संपदा से अर्जित आय का इस्तेमाल पारदर्शी तरीके से हो सकेगा, ताकि अल्पसंख्यक समुदाय के लिए स्कूल, कॉलेज, अस्पताल आदि खोले और चलाये जा सकें. केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) एक्ट, 2013 को अमल में लाकर पहले ही इसके लिए रास्ता साफ कर दिया था. सरसरी तौर पर देखें तो पीएम की घोषणा भलमनसाहत भरी जान पड़ती है. देश में बहुत बड़ी संपदा मंदिरों-मसजिदों में कैद है, जिनका इस्तेमाल जनकल्याण में होना चाहिए.
पर जनकल्याण सिर्फ भलमनसाहत दिखाने भर से नहीं होता. उसके लिए मनोयोग से जमीनी तैयारियां भी करनी पड़ती हैं. यह ठीक है कि वक्फ बोडरें के पास अकूत जायदाद है, पर यह भी सही है कि इस पर सर्वाधिक अवैध कब्जा सरकार का ही है. वक्फ बोडरें को जितनी आमदनी नहीं होती, उससे ज्यादा उन्हें खर्च करना पड़ता है और ऐसे में आस उन्हें सरकारी इमदाद की तरफ ही लगानी होती है. दो साल पहले आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड ने सरकार द्वारा हजरत हुसैन शाह दरगाह की जमीन बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देने के मामले में इस तथ्य की तरफ ध्यान दिलाया था.
अचरज नहीं कि पीएम जब नये निगम का शुभारंभ कर रहे थे, उस समय अल्पसंख्यक समुदाय के ही एक सदस्य ने भरी सभा में उन्हें टोकते हुए कहा कि नयी घोषणा से पहले यह भी देख लें कि पहले की घोषणाएं कारगर हो पा रही हैं या नहीं. विकास के मौजूदा दौर में आज बड़ा सवाल नीतियों में व्यक्त भलमनसाहत को जमीन पर उतारने का है और इस मामले में व्यवस्था लोगों का भरोसा खो रही है.