सिलिंडर बारह से सरकार के पौ-बारह!

।। कमलेश सिंह।। (इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक) अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब सरकार ने हमको समझाया कि सब्सिडी का जहर सर्वनाश कर देगा. वीरप्पा मोइली ने देश को बताया कि गैस सिलिंडर पर दी जानेवाली सब्सिडी से तेल कंपनियों को इतना घाटा हो रहा है कि ये अनमोल रतन कंपनियां बेमोल […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 1, 2014 4:27 AM

।। कमलेश सिंह।।

(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)

अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ, जब सरकार ने हमको समझाया कि सब्सिडी का जहर सर्वनाश कर देगा. वीरप्पा मोइली ने देश को बताया कि गैस सिलिंडर पर दी जानेवाली सब्सिडी से तेल कंपनियों को इतना घाटा हो रहा है कि ये अनमोल रतन कंपनियां बेमोल मारी जायेंगी. महंगाई से त्रस्त देश से कहा गया कि देश के लिए थोड़ा बोझ आप भी उठाइए. सस्ते में सिर्फ नौ सिलिंडर मिलेंगे. लॉजिक भी यही कहता है, जितने की खरीद है उससे कम दाम में अगर बेचेंगे, तो तेल कंपनियों की लुटिया डूब जायेगी. यदि वे कंपनियां भी सरकारी हैं, तो अंत में जनता को ही नुकसान होगा. अर्थव्यवस्था मजबूत होगी, तो सरकार कल्याणकारी योजनाओं पर पैसा खर्च कर पायेगी. इसलिए जनता मनमसोस कर, किचन में कटौती कर, तैयार हो गयी कि देश बलिदान मांगता है तो देंगे. थोड़े विरोध के बाद जब देश मान गया, तो वीरप्पा मोइली की जान में जान आयी. प्रधानमंत्री गदगद हो गये कि कितना मैच्योर हो गया है यह देश. चोट पर चोट पड़ रही है, आह करता है, पर शिकवा नहीं करता.

फिर कांग्रेस से मांग उठी कि राहुल बाबा को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाये. इतना बड़ा रिस्क पार्टी लेने के मूड में नहीं थी, तो कांग्रेसी कार्यकतरओ को तोहफे में राहुल बाबा ने एलान किया कि तीन सिलिंडर और दिये जाएं. प्रधानमंत्री वहीं बैठे थे और वीरप्पा मोइली भी. जो उन्होंने देश को समझाया था वह राहुल जी को नहीं समझाया. बस उनका हुकुम बजाया. कल ही समाचार आया कि सब्सिडी के सिलिंडर बारह होंगे. इस खबर से खुशी की लहर हमारे दिल में भी दौड़ी, पर एक बात नहीं बुझाया. अगर देश संकट में था, तो क्या वह संकट राहुलजी के एक बयान से खत्म हो गया. अगर नहीं था तो मोइली जी हमको झूठ बोल कर लूट रहे थे. दोनों तो सच हो नहीं सकते. अगर इसमें झूठ बोले, तो और कितने मामलों में झूठ बोल चुके हैं. क्या डीजल और पेट्रोल के भाव में भी कोई फाव खा रहा है? अगर पेट्रोलियम कंपनियां सचमुच दिवालियेपन की कगार पर हैं, तो फिर ये दिमागी दिवालियापन नहीं तो और क्या है कि आप तेल बेचनेवालों को कुएं में धकेल रहे हैं. और अगर दीवानापन नहीं है, तो मामला वोट के लिए ईमान बेच देने का लगता है.

आंकड़ों में ना जाएं. आंकड़े दोनों तरफ से आते हैं. तेल कंपनियों के आंकड़े बताते हैं कि दाम नहीं बढ़ाया तो बरबादी तय है, इसलिए वीर तुम बढ़े चलो. दूसरी तरफ वे हैं जो कहते हैं जरा ठहरो. ये सब जो अनगिनत टैक्स हैं, ये दाम के साथ बढ़ते हैं. फर्ज कीजिए 10 परसेंट का सेल टैक्स है. जब 40 रुपये तेल था तो सरकार चार रुपये टैक्स लेती थी और हम 44 देते थे. तेल जब 80 का हुआ तो हम 88 देते हैं, जिसमें से आठ सरकार लेती है. तेल कंपनियां तथाकथित तौर पर घाटा पूरा कर रही होती हैं और फोकट में सरकार की आमदनी दोगुनी हो जाती है. यह तो मुनाफाखोरी है. यह सिर्फ एक टैक्स का उदाहरण भर है. अगर सरकार का दिल जनता के लिए इतना पसीजता है, तो वह टैक्स कम ना करे, पर दाम के साथ दोगुना तो नहीं करे. सरकार हमको अर्थव्यवस्था का हवाला देती है. और हम जिम्मेदार नागरिक की तरह यह जिम्मेदारी अपने सर पर उठाते हैं. लेकिन दर्द-ए-सर तब असर करता है, जब सरकार में बैठे लोग खुलेआम वोट के लिए हम पर चोट करते हैं, जो गैस पर सब्सिडी के मामले में उजागर होता है.

ये घटने का घटिया मजाक मोइली को मुबारक. क्योंकि इससे साबित होता है, जब दाम बढ़े थे तब मजाक हुआ था, या अब हुआ है. मजाक महंगा पड़ सकता है. उनको भी जो करते हैं. उनको भी जो ठठाते हैं. क्योंकि खून-पसीने की कमाई पर हंसना ठीक नहीं. राज ठाकरे टोल टैक्स का खुलेआम विरोध क्यों नहीं करें, जब यह पता ही नहीं कि वह सचमुच सेवा का कर है या फिर मजाक भर है. सरकार किसी की तनख्वाह से जब टैक्स लेती है, तो बहाना होता है कि आखिर उसी से देश में सड़कें आदि बनती हैं. फिर जब वह गाड़ी खरीदता है, तो उससे रोड टैक्स लेती है. फिर जब वह गाड़ी रोड पर ले जाता है, तो टोल टैक्स लेती है. वह आदमी देते वक्त सोचता है कि आखिर मेरे कौन से टैक्स से सड़क बनती है. क्योंकि यह पूरा सिस्टम इतना धुंधला है जितना घने कोहरे में सड़क. कोहरे में दुर्घटना की संभावना बनी रहती है. टोल टैक्स का बूथ भी चपेट में आ सकता है. जैसे महाराष्ट्र में आ रहा है. सिलिंडर नौ से बारह कर कांग्रेस को अपने पौ बारह होने की उम्मीद है, पर संकेत हैं कि उन्हें नौ दो ग्यारह करवाने की तैयारी है. अगली सरकार जो भी हो, उसे टैक्स की पूरी व्यवस्था पर विचार करना होगा. क्योंकि भद्दे मजाकों की श्रृंखला टूटने वाली है, आम आदमी के सब्र के बांध के साथ.

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