राज्यसभा के लिए नाथवाणी और प्रेमचंद गुप्ता का चुना जाना यह स्पष्ट करता है कि राज्य गठन को 13 साल गुजर जाने के बाद भी झारखंड के विकास की यात्र शुरू क्यों नहीं हो सकी? बिरसा मुंडा के सपनों को उड़ान देने के लिए आज तक कुछ क्यों नहीं हुआ? झारखंड को समय-समय पर झकझोरने वाली ‘स्थानीयता’ की बलि आखिर क्यों दी गयी? चाहे क्षेत्रीय दल हो या फिर राष्ट्रीय, सबने इस राज्यसभा चुनाव में झारखंडी अस्मिता का भरपूर चीरहरण किया.
बात-बात पर स्थानीयता की हुंकार भरनेवाले हमारे माननीय विधायकों ने दो बाहरी उद्योगपतियों को राज्यसभा में भेजने की आम सहमति दे कर आखिर अपनी औकात दिखा दी. यह सिर्फ राज्यसभा चुनाव में मत देने का मामला नहीं है. यह झारखंड के सवा तीन करोड़ झारखंडियों की भावना और मान-सम्मान का सवाल भी है. इन नेताओं ने पूरे देश के सामने हम झारखंडियों को नंगा कर दिया और बता दिया कि हमारे राज्य में एक भी ऐसा आदमी नहीं है जिसे हम राज्यसभा में भेज सकें.
अफसोस की बात है कि जिस राज्य ने दुनिया का लोहे से परिचय करवाया, देश की कुल खनिज संपदा का 45} भंडार जिस राज्य में है, जिस राज्य की बदौलत देश की राजधानी जगमगाती है, हरियाणा-पंजाब-गुजरात जैसे राज्यों का विकास जिस राज्य के संसाधनों से हुआ है, वहां राज्यसभा के लायक एक भी आदमी नहीं. इस चुनाव से हम झारखंडियों ने यदि सबक नहीं लिया, तो आनेवाले समय में ये लोग हमारे पुरखों के सपनों को यूं ही बेचते रहेंगे और हम ऐसे ही देखते रहेंगे. इनकी करतूत के चलते ही सरप्लस बजट से यात्र शुरू करनेवाला राज्य आज हजारों करोड़ के कर्ज में डूब गया है. ऐसे लोगों का बहिष्कार करें, वरना आनेवाली पीढ़ी माफ नहीं करेगी.
गणेश सीटू, ई-मेल से