मलेरिया से हारता भारत

एक देश के रूप में हमारी कामयाबियां जितनी कमाल की हैं, असफलताएं तकरीबन उतनी ही हैरतअंगेज. मसलन, 67 करोड़ किमी का सफर पूरा करके पहली ही कोशिश मंगलग्रह की कक्षा में पहुंचनेवाला मंगलयान हम बना लेते हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर 62 सालों की लंबी लड़ाई के बावजूद हम मलेरिया पर अंकुश लगाने में नाकाम […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 7, 2016 6:54 AM

एक देश के रूप में हमारी कामयाबियां जितनी कमाल की हैं, असफलताएं तकरीबन उतनी ही हैरतअंगेज. मसलन, 67 करोड़ किमी का सफर पूरा करके पहली ही कोशिश मंगलग्रह की कक्षा में पहुंचनेवाला मंगलयान हम बना लेते हैं, लेकिन सरकारी स्तर पर 62 सालों की लंबी लड़ाई के बावजूद हम मलेरिया पर अंकुश लगाने में नाकाम रहे हैं.

मलेरिया से सरकारी स्तर पर जंग 1953 के अप्रैल में नेशनल मलेरिया कंट्रोल प्रोग्राम के जरिये यह विरोधाभास और भी ज्यादा चुभता है, जब देखते हैं कि मालदीव और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों ने 25 साल से भी कम की अवधि में इस रोग पर अंकुश लगाने में कामयाबी पायी है और अब विश्व-स्वास्थ्य संगठन से मलेरिया-मुक्त देश का प्रमाणपत्र हासिल कर रहे हैं.

मालदीव तो 1984 में मलेरिया-मुक्त घोषित हो चुका है, जबकि 1970-80 के दशक में मलेरिया से बेदम चली आ रही अपनी आबादी को निजात दिलाने के लिए 1990 के दशक से श्रीलंका ने जी तोड़ प्रयास किये. 2012 के बाद से वहां मलेरिया का कोई मामला नहीं आया है. कोई कह सकता है कि मलेरिया से लड़ने के मामले में हमारी उपलब्धियां कम नहीं हैं. आजादी के वक्त तैंतीस करोड़ की आबादी वाले भारत में साढ़े सात करोड़ लोग सालाना मलेरिया से पीड़ित होते थे और आज यह संख्या घट कर तकरीबन 10 लाख (2014 में) हो गयी है, जबकि देश की आबादी सवा अरब का आंकड़ा पार कर रही है.

मलेरिया निवारण और उन्मूलन के हमारे कार्यक्रम की ही देन है, जो 1995 से 2014 की अवधि में इस रोग से ग्रस्त होनेवाले लोगों की संख्या में तीन गुना (1995 में 2.93 मिलियन और 2014 में 1.10 मिलियन) कमी हुई है. बेशक यह उपलब्धि है, लेकिन इसके सहारे मलेरिया उन्मूलन के मामले में हम अपनी असफलता को नहीं ढक सकते.

देश की मात्र 11 फीसदी आबादी ही कह सकती है कि वह मलेरिया की आशंका से मुक्त-क्षेत्र में है, 67 फीसदी आबादी अब भी उन इलाकों में रहती है, जहां 1000 में कम-से-कम एक व्यक्ति मलेरिया से पीड़ित होता है, जबकि 22 फीसद आबादी के लिए यहां आंकड़ा और भी ज्यादा का है. अचरज नहीं कि 2011 से 2014 के बीच हर साल मलेरिया से मरनेवाले लोगों की तादाद 440 से ज्यादा रही है. मलेरिया-मुक्त भारत बनाने का हमारा लक्ष्यवर्ष आगे खिसक कर 2030 हो चुका है, अच्छा होगा अगर पड़ोसी श्रीलंका से कुछ सबक लेते हुए हम इस लक्ष्यवर्ष में ही कुछ कमी कर सकें.

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