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एंथ्रोपोसीन मतलब मानव युग
बिभाष कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मत है कि आइस एज के बाद बारह हजार वर्षों का स्थिर जलवायु का दौर होलोसीन, जिसके दौरान मानव सभ्यताओं का विकास हुआ, अब समाप्त हो चुका है. इस दौर की समाप्ति का कारण है मानव जाति का धरती की जलवायु में जबरदस्त […]
बिभाष
कृषि एवं आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ
वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मत है कि आइस एज के बाद बारह हजार वर्षों का स्थिर जलवायु का दौर होलोसीन, जिसके दौरान मानव सभ्यताओं का विकास हुआ, अब समाप्त हो चुका है. इस दौर की समाप्ति का कारण है मानव जाति का धरती की जलवायु में जबरदस्त हस्तक्षेप.
वैज्ञानिक नये दौर को एक नया नाम ‘एंथ्रोपोसीन’ देना चाहते हैं. द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने तो वर्ष 2011 में ही उद्घोषणा कर दी थी, ‘वैलकम टू एंथ्रोपोसीन’.
पॉल क्रुटजेन ने ओजोन परत और उस पर मानव जनित प्रदूषण का पड़नेवाले प्रभाव का अध्ययन पिछली शताब्दी के सत्तर और अस्सी के दशक में किया था. बाद में उन्हें इस शोध के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला. पॉल क्रुटजेन और यूजीन स्टर्मर ने सन् 2000 में एंथ्रोपोसीन परिघटना की अवधारणा रखते हुए बताया कि किस प्रकार मानवीय क्रिया-कलाप भूमंडलीय प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहे हैं.
इस विचार ने कई भू-वैज्ञानिकों, विशेषकर जलासीविक्ज, को इस पर सोचने को विवश किया. इन विषयों पर निर्णय इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्ट्रेटीग्राफी लेता है और जलासीविक्ज इस संस्था से जुड़े रहे हैं. इस विषय पर औपचारिक चर्चा सन् 2008 में शुरू हुई. इस परिघटना पर औपचारिक विमर्श के लिए इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्ट्रेटीग्राफी के अंतर्गत कार्यरत सबकमीशन ऑफ क्वाॅटर्नरी स्ट्रेटीग्राफी ने एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप की स्थापना की है. इस ग्रुप की जिम्मेवारी थी चालू भौगोलिक दौर (जियोग्राफिकल टाइमस्केल) में इस परिघटना पर बहस, चर्चा और इसे औपचारिकता प्रदान करने की संभावना पर विचार. एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप ने 27 अगस्त से 4 सितंबर तक दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन में संपन्न हुए पैंतीसवें इंटरनेशनल जियोलाजिकल कांग्रेस के समक्ष धरती पर हो रहे परिवर्तनों के सबूतों का सार अपनी अनुशंसाओं के साथ सौंप दिया है.
वर्किंग ग्रुप के ज्यादातर सदस्यों की राय है कि होलोसीन दौर को समाप्त मान कर एंथ्रोपोसीन दौर को मान्यता प्रदान की जाये. एंथ्रोपोसीन की अवधारणा की आलोचना में विरोधियों का कहना है कि यह अवधि बहुत ही छोटी है. लेकिन वर्किंग ग्रुप के प्रमुख सदस्य जलासीविक्ज का कहना है कि इनमें से बहुत से परिवर्तन ऐसे हैं, जिनको पलटा नहीं जा सकता, ये परिवर्तन पर्यावरण पर स्थायी निशान छोड़ते जा रहे हैं. पॉल क्रटुजेन इस दौर को औद्योगिक क्रांति से शुरू हुआ मानते हैं, लेकिन ज्यादातर वैज्ञानिक इसे पिछली शताब्दी के बीच, यानी सन् 1950, से शुरू हुआ मानते हैं.
एंथ्रोपोसीन को नया दौर माना जाये या नहीं, यह जब तय होगा तब होगा, लेकिन इतना तो तय है कि औद्योगिक क्रांति के बाद से मानव सभ्यता का पर्यावरण में हस्तक्षेप लगातार बढ़ता ही गया है.
एंथ्रोपोसीन दौर को दर्ज करने के लिए जो सबूत चिह्नित किये गये हैं, उनमें से प्रमुख हैं धरती के नये संस्तर या स्ट्रेटों में प्लास्टिक, एल्युमिनियम, कंक्रीट, कृत्रिम रेडियोन्युक्लाइड्स, फ्लाइ-ऐश के कणों की मौजूदगी, कार्बन तथा नाइट्रोजन के आइसोटोप के बनावट में परिवर्तन आदि, जो पृथ्वी पर अपनी अमिट निशान दर्ज कर देंगे. अपने अस्तितव को बनाये रखने, जीवन को आरामदायक बनाने और अपनी प्रभुसत्ता कायम रखने के लिए मनुष्य प्रकृति पर शुरू से ही नियंत्रण करता रहा है. खेती धीरे-धीरे यांत्रिक और रासायनिक कारकों के कारण मिट्टी को लगातार नुकसान पहुंचाती गयी. धान की खेती वातावरण में ढेर सारा मिथेन छोड़ती है.
इसी प्रकार पशुपालन भी मिथेन गैसों में अपना योगदान देता रहा है. मकान बनने में कंक्रीट का इस्तेमाल भी हाल में ही शुरू हुआ. आंकड़े बताते हैं कि अब तक जितना कंक्रीट का इस्तेमाल किया गया है, उसका आधा पिछले बीस सालों में हुआ है. देश अपनी प्रभुसत्ता कायम रखने के लिए बारूद आदि के इस्तेमाल की बात तो दूर, नाभिकीय हथियारों का जखीरा तक बना बैठे हैं. इसके लिए लगातार नाभिकीय परीक्षण होते रहते हैं. अपनी विस्तारवादी नीतियों के कारण मानव ने वनों की अंधाधुंध कटाई की है, जिसके कारण पृथ्वी पर रहनेवाले अन्य जीवों के रहने की जगह कम होती गयी है.
होलोसीन दौर के प्रारंभ होने के पहले किस तरह से डायनासोर धरती से गायब हुए, यह सबको पता है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो अगली कुछ शताब्दियों में वनस्पतियों और जंतुओं की आज की ज्यादातर नस्लें धरती से गायब हो जायेंगी. खनिज तेलों और ऊर्जा उत्पादन के अन्य खनिज स्रोतों का दोहन और उपयोग भी लगातार बढ़ रहा है, जिसकी बदौलत ग्लोबल वॉर्मिंग भी इस दौर में सबसे ज्यादा रही है. ग्रीन हाउस गैसों, कार्बन डाइऑक्साईड और मिथेन की वातावरण में सांद्रता चिंताजनक रूप से बढ़ती जा रही है. पूरी दुनिया में बड़े-बड़े बांध बनाये गये.
लेकिन सब कुछ इतना उदास भी नहीं है. गाइया विन्स ने नेचर जर्नल की नौकरी छोड़ कर पूरी दुनिया की सैर पर निकल पड़ीं और अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने ‘एडवेंचर्स इन दी एंथ्रोपोसीन: ए जर्नी टू दी हार्ट ऑफ दी प्लैनेट मेड’ नामक किताब लिखी. इस पुस्तक को विज्ञान की किताबों के लिए वर्ष 2015 का रॉयल सोसायटी विंटन पुरस्कार मिल चुका है.
उन्होंने भी मानवजनित विनाश-लीला देखी और दर्ज किया. लेकिन, उन्होंने यह भी देखा कि लोग अपनी तरफ से अपने छोटे-छोटे प्रयत्नों से इस धरा को सुधारने-संवारने में भी लगे हुए हैं. ऐसे लोग दुनिया भर में फैले हुए हैं. एंथ्रोपोसीन को मान्यता दिलाने के लिए वैज्ञानिकों को सिर्फ नकारात्मक हस्तक्षेप ही नहीं, सकारात्मक हस्तक्षेप भी दर्ज करना चाहिए. बल्कि उसे प्रोजेक्ट करना चाहिए, जिससे लोगों में उत्साह का संचार हो.
सृष्टि कितनी विशाल है, इसका अंदाजा किसी को नहीं है, लेकिन पृथ्वी जैसी सभ्यता वाला दूसरा ग्रह अभी तक खोजा नहीं जा सका है. इंटरनेशनल कमीशन ऑन स्ट्रेटीग्राफी क्या निर्णय लेगा, मालूम नहीं, लेकिन इतना तो निश्चित है कि मानव इस युग में एक महत्वपूर्ण ताकत बन कर उभरा है. एंथ्रोपोसीन सचमुच में मानव युग के रूप में दर्ज हो, न कि विध्वंस युग के रूप में. क्योंकि मानव इस धरा पर अकेले नहीं रह सकता.
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